उसवा-ए-इब्राहीमी

(मौलाना निजामउद्दीन फखरूद्दीन)कुरआन में हजरत इब्राहीम अलैहिस्सलाम का नाम 69 (उनहत्तर) मकामात पर आया है। आप की जिंदगी के मुख्तलिफ गोशो पर रौशनी डाली गई है। जगह-जगह आप के सिफात बयान किए गए हैं। आप की जिंदगी के पहलुओं को उजागर करते हुए आपकी इत्तबा का हुक्म दिया गया। आप की दाइयाना और मोमिनाना सिफात हामिल जिंदगी को बतौर उसवा (नमूना) बताकर पैरवी की ताकीद की गई। अल्लाह का इरशाद है-‘‘ तुम्हारे लिए इब्राहीम में एक अच्छा नमूना हैं।’’

आइए अब जबकि ईद उल अजहा का मुबारक मौका है हम हजरत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की मुबारक जिंदगी के चंद गोशे और मोमिनाना किरदार व सिफात पर एक नजर डालते हुए अपनी जिंदगी का भी जायजा ले और अहद करें कि आप के इन अखलाक व औसाफ को अपनी जिंदगी में पैदा करेंगे।

सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि हम अपने मआशरे को भी इन नूरानी व रूहानी औसाफ से रौशन करने की हर मुम्किन जद्दोजेहद करेंगे इसलिए कि सैयदना हजरत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की पूरी जिंदगी जद्दोजेहद का दूसरा नाम है। मआशरे की खराबियों ने आप को बेचैन कर दिया और इंसानियत की फलाह व बहबूद के लिए आप हर लम्हा कोशां रहे और हर मुम्किन तरीका और इस्तदलाल से कौम को हिदायात की तरफ बुलाते रहे और इस अजीम फरीजा-ए-मनसबी को अदा करने के लिए तकलीफों और मशक्कतों को झेलते रहे।

हजरत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने जिस सरजमीन पर आंखे खोली वह सरजमीन बाबुल (मौजूदा इराक) थी। माद्दी एतबार से यहां तरक्कियात, तिजारत व उलूम व फनून का दौर दौरा था। यहां के बाशिंदे इल्में नुजूम में महारत रखते थे और उनको फने तामीर में कमाल हासिल था। बड़े बड़े महल तामीर करते थे मगर रूहानी एतबार से जवाल के शिकार थे।

होना तो यह चाहिए था कि खुशहाली, फारिगुल बिलाली की बिना पर एक अल्लाह की इबादत करते, शुक्र अदा करते मगर इसके बरअक्स वह बदतरीन किस्म के शिर्क में मुब्तिला थे। हजारो बातिल माबूदों की परस्तिश करने लगे। बुतपरस्ती और कौबतपरस्ती में जकड़ गए।

अल्लामा सैयद सुलेमान नदवी ने तारीखुल मलल अल कदीमा, अरजुल कुरआन में लिखा है कि बाबुल की खुदाई में निकलने वाले कतबात में तकरीबन पांच हजार बुतों के मिलते है। जाहिर है जब शिर्क का गलबा हो तो दूसरी बुराइयां और खराबियां खुद ब खुद पैदा हो जाती हैं, बेहयाई आवारगी, जात पात ऊंच नीच जब्र वह कहर, जुल्म व सितम शिर्क ही की पैदावार है।

हजरत इब्राहीम अलैहिस्सलाम भला यह सब देखकर क्यों खामोश रहते। आपने दावत का अहम फरीजा अंजाम देने की ठान ली। सबसे पहले आपने अपने वालिद को दावत दी। सूरा मरियम में है कि हजरत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने अपने वालिद से कहा – अब्बा जान! आप क्यों इन चीजों की इबादत करते हैं जो न सुनती है न देखती हैं और न ही आप का कोई काम बना सकती हैं।

अब्बा जान ! मेरे पास एक ऐसा इल्म है जो आप के पास नहीं आया। आप मेरे पीछे चलें मैं आप को सीधा रास्ता बताऊंगा। अब्बा जान! आप शैतान की बंदगी न करें, शैतान तो रहमान का नाफरमान है। अब्बा जान! मुझे डर है कि कहीं आप रहमान के अजाब में मुब्तला न हो जाएं और शैतान के साथी बन कर रहें।

बाप का यह हाल था कि वह हजरत इब्राहीम अलैहिस्सलाम को झिड़कते रहते मगर इसके बावजूद आप बराबर दावत देते रहते।
हजरत इब्राहीम अलैहिस्सलाम अपनी कौम की तरफ मुतजवज्जो हुए सूरा अंकुबूत में वारिद है कि और हजरत इब्राहीम ने अपनी कौम से कहा- अल्लाह की बंदगी करो और उसी से डरो, यह तुम्हारे लिए बेहतर है, अगर तुम जानो तुम अल्लाह को छोड़कर जिनकी इबादत कर रहे हो वह तो महज बुत है और तुम एक झूट गढ़ रहे हो।

अल्लाह के अलावा जिनकी तुम इबादत कर रहे हो वह तुम्हे रिज्क देने का अख्तियार नहीं रखते। अल्लाह से रिज्क तलब करो उसी की बंदगी करो और उसी का शुक्र अदा करो उसकी तरफ तुम लौट कर जाने वाले हो।

हजरत इब्राहीम ने बादशाहे वक्त को भी एक मौका पाकर एक अल्लाह की तरफ आने की दावत दी। सूरा बकरा में हजरत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की सिफते तस्लीम व रजा को इस तरह बयान किया गया है-‘‘ जब कहा उसके परवरदिगार ने मुस्लिम हो जा’’ (हजरत इब्राहीम ने) मैं मालिके कायनात का मुस्लिम हो गया। हजरत इब्राहीम अलैहिस्सलाम को जब भी जिस बात का भी हुक्म दिया हजरत इब्राहीम ने बिला चूं चरा हुक्मे खुदावंदी के आगे सर झुका दिया। और साबित कदम रहे।

एलाने हक के जुर्म में आप को आग के हवाले किया गया, आप साबित कदम रहे। हिजरत का हुक्म हुआ चल पड़े, अहल व अयाल को सुनसान वादी में बसाने का हुक्म दिया गया तो बिला झिझक अमल कर दिखाया। अपने बेटे, बुढ़ापे का सहारा, उम्मीदों के चमन का फूल हजरत इस्माईल अलैहिस्सलाम को राहे खुदा में कुर्बान करने का हुक्म हुआ आप ने तामीले हुक्म में पसोपेश नहीं किया। सूरा सफ्फात में है कि हजरत इस्माईल जब आपके साथ दौड़ धूप करने की उम्र को पहुंच गए तो एक दिन हजरत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने उनसे कहा-बेटा मैं ख्वाब में देखता हूँ कि मैं तुझे जिबह कर रहा हूँ अब तू बता तेरा क्या ख्याल है।

हजरत इस्माईल अलैहिस्सलाम ने कहा- जो कुछ आप को हुक्म दिया जा रहा है उसे कर डालिए, आप इंशा अल्लाह मुझे साबिरों में से पाएंगे। यहां यह बात वाजेह होती है कि वाल्दैन की जिम्मेदारी है कि वह अपनी औलाद को इस तरह की तर्बियत दें कि जब भी उनको कोई हुक्म दिया जाए औलाद तामीले हुक्म की बजाआवरी में अपने लिए सआदतमंदी समझे।

नेक बख्त औलाद वही है जो अपने वालिद की फरमांबरदारी और खिदमत करें। वाल्दैन की अपनी औलाद से गफलत और औलाद की अपने वाल्दैन से बगावत तबाहकुन नतीजे पैदा करती है। सूरा सफ्फात ही में वारिद है कि हजरत इस्माईल अलैहिस्सलाम के फिदिया में जो दुम्बा भेजा गया अल्लाह ने उसको जिबहे अजीम का नाम दिया।

कुरआन मजीद ने हजरत इब्राहीम के एहसासे नदामत ‘‘तौबा इस्तगफार को इस तरह बयान किया है कि हजरत इब्राहीम अलैहिस्सलाम बड़े हलीम नर्म दिल और हर हाल में हमारी तरफ रूजूअ करने वाले थे। (सूरा हूद) सूरा नहल में आप को अल्लाह की नेमतों पर शुक्र करने वाला बताया गया।

सूरा अम्बिया में आप की इबादत गुजारी पर इस तरह रौशनी डाली गई – और हमने उन्हें वहि के जरिए नेक कामों की और नमाज कायम करने और जकात देने की हिदायत की और हमारे इबादत गुजार थे। हजरत इब्राहीम अलैहिस्सलाम बिला तफरीक मजहब व मिल्लत मेहमान की खिदमत किया करते थे। सदाकत आप की खूबी थी। सूरा मरियम में वारिद है कि बेशक वह (हजरत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ) एक रास्त बाज इंसान और नबी थे। गरज कि आज इसी नमूने और मोमिनाना सिफात की जरूरत है।