उस्मानिया दवाख़ाना के क़ब्रिस्तान में पूजा

नुमाइंदा ख़ुसूसी-अमन-ओ-सलामती और भाई चारगी-ओ-मुहब्बत के शहर हैदराबाद को एक अर्सा से कुछ शर पसंद अनासिर भगवा रंग रंगने की कोशिश कररहे हैं और मुस्लमानों के मज़हबी मुक़ामात के साथ गैरकानूनी मंदिरें बनाकर बाशिंदगान हैदराबाद को फ़िर्का वाराना फ़साद की झुलसती आग में झोंकने की नापाक साज़िशें रच रहे हैं । अपने इन ख़तरनाक अज़ाइम को बरोकार लाते हुए एक बार फिर उस्मानिया दवाखाने के वसीअ अहाता में मौजूद सौ साला क़दीम क़ब्रिस्तान के दायरा में एक दरख़्त के नीचे ज़ाफ़रानी रंग छिड़क कर और देवी देवताओं की तसावीर रख कर पूजापाट शुरू करदी गई है ।

इसी नवीत का एक वाक़िया2 009 -में रौनुमा हुआ था जब शरपसंदों ने क़ब्रिस्तान के अहाता में मौजूद एक दरख़्त की जड़ को भगवा रंग और देवी देवताओं की तसावीर के साथ मंदिर की शक्ल दे कर रसूमात शुरू करदी थीं । मालूम रहे कि इस क़ब्रिस्तान में वो तारीख़ी दरख़्त भी मौजूद है जिस पर 150 अफ़राद ने 1908 -ए-की हलाकत ख़ेज़ तुग़यानी में पनाह ली और अपनी जान बचाई थी । मूसा नदी की इस तुग़यानी ने बड़े पैमाने पर तबाही मचाई थी । आबादी का बड़ा हिस्सा ग़र्क़ाब होगया था जिस दरख़्त का हम ज़िक्र कररहे हैं इस पर एक तख़्ती आज भी आवेज़ां है और इस तख़्ती पर इजमालन इस तारीख़ी सानिहा की तफ़सील भी मकतूब है यहां दरख़्त के अतराफ़ सैंकड़ों क़ब्रें हैं और उन के दरमियान एक दरगाह भी है जो सूफ़ी बुज़ुर्ग हज़रत सय्यद सआदत बाबाऒ की दरगाह के नाम से मौसूम है ।

उस्मानिया हॉस्पिटल के एक मुलाज़िम जिन का नाम शेख अहमद है 12 साल से इस दरगाह की देख भाल और सफ़ाई का काम कररहे हैं । तुग़यानी के इस दरख़्त के अतराफ़ में 2 हज़ार गज़ का एक क़दीम क़ब्रिस्तान है । लेकिन अक्सर क़ब्रें मिस्मार करदी गई हैं । ये क़ब्रिस्तान और तारीख़ी दरख़्त उस्मानिया दवाखाने के इस गेट के करीब है जो मूसा नदी की जानिब वाक़्य है । इस जगह पर हाल ही में नया मुर्दा ख़ाना भी तामीर किया गया है । जिस के बारे में ये कहा जाता है कि मुर्दा ख़ाना की तामीर भी इस क़ब्रिस्तान की ज़मीन पर की गई है । क़ुरब-ओ-ज्वार में रहने वाले आटो ड्राईवरस हर साल इस क़ब्रिस्तान में वाक़्य सआदत बाबा की दरगाह में ग्यारहवीं शरीफ की नियाज़ भी करते हैं ।

104 साल से ये दरख़्त और क़ब्रिस्तान मूसा नदी तुग़यानी के सानिहा की यादगार अलामत बने हुए हैं । गैर मुस्लिम भाई भी यहां मदफ़ून अफ़राद उन की क़ब्रों और इस दरख़्त को अक़ीदत-ओ-एहतिराम की नज़र से देखते हैं । आज सूरत-ए-हाल ये है कि इस का कोई पुर्साने हाल नहीं रहा । इस लिये शरपसंद अनासिर की नज़रों में ये क़ब्रिस्तान खटक रहा है । तीन साल के अंदर ये दूसरा वाक़िया है जब इस क़ब्रिस्तान में इस दरख़्त के नीचे रंग फलों और तसावीर के साथ मज़हबी रसूमात शुरू की गई है । आख़िर इन फ़िर्क़ा परस्तों की नियत किया है क्यों ये क़ब्रिस्तान उन के निशाना पर है ? जब कि क़ब्रिस्तान के करीब में गैरकानूनी जगह पर एक मंदिर खड़ा है ।

क्या वो मंदिर उन के लिए काफ़ी नहीं है और अफ़ज़ल गंज पोलीस इस्टेशन इस के बिलकुल करीब ही चंद क़दम के फ़ासले पर वाक़्य है फिर भी ये साज़िशें की जा रही हैं । महिकमा पोलीस को 2009 -ए-की तरह इस बार भी अज़राह शरारत मंदिर बनाने की कोशिश करने वालों के ख़िलाफ़ सख़्त से सख़्त कार्रवाई करनी चाहीए और इस दरख़्त से मंदिर के निशानात को मिटा देने चाहीए क्यों कि बाबरी मस्जिद की शहादत के बाद क़दीम इबादतगाहों और मुक़द्दस मुक़ामात को मन-ओ-एन बरक़रार रखने के लिए एक क़ानूनी तरमीम अमल में लाई गई थी जिस में वज़ाहत की गई है कि 15 अगस्त 1947 के वक़्त जो मज़हबी मुक़ामात और तारीख़ी इमारतें जिस हालत में थीं इस हालत में इन कोबरक़रार रखा जाय । लिहाज़ा इस क़ानून के तहत भी इन अश्रार के ख़िलाफ़ सख़्त कार्रवाई होनी चाहीए क्यों कि मज़हबी अहमियत के हामिल मुक़ामात में क़ब्रिस्तान भी शामिल हैं ।

शरपसंदों को अगर मोहलत दी गई और उन की नाजायज़ सरगर्मियों से सिर्फ नज़र किया गया तो इस तारीख़ी क़ब्रिस्तान की हुर्मत ख़तम होजाएगी और सरकारी मिशनरी मुंह देखती रह जाएगी । महिकमा वक़्फ़ बोर्ड जिस का वजूद ही ओक़ाफ़ी अराज़ी के तहफ़्फ़ुज़-ओ-से अंत के लिए हुआ है , उन की बेहिसी , बे तवज्जही और मुसलसल ग़फ़लत पर जितनामातम किया जाय कम है इतने संगीन वाक़िया के बाद भी महिकमा ने कोई हिफ़ाज़ती इक़दाम नहीं किया । आज तक क़ब्रिस्तान की हिसारबंदी नहीं हो पाई है जब कि लगातार क़ब्रिस्तान की ज़मीन कम होती जा रही है । क़ब्रें मिस्मार की जा रही हैं । क़ब्रों के नाम-ओ-निशान मिटाए जा रहे हैं ।

वक़्फ़ बोर्ड और इस के ओहदेदारों की ना अहली पर अफ़सोस है । उन्हें सिर्फ अपनी रोटियां सेंकने से मतलब है। मुस्लमानों की अरबों की मालियत की ओक़ाफ़ी जायदाद तबाह-ओ-बर्बाद होरही है लेकिन उन्हें ज़र्रा भी फ़िक्र नहीं है । वक़्फ़ बोर्ड को चाहीए कि ताख़ीर किये बगैर जल्द अज़ जल्द उस्मानिया दवाखाने के मज़कूरा क़ब्रिस्तान की हिसारबंदी कराए और वहां एक बोर्ड नसब किराए जिस में ये सर अहित हो कि ये दर्ज वक़्फ़ है वर्ना इस तरह वक़फ़ा वक़फ़ा से फ़िर्क़ा परस्तों की जानिब से साज़िशें की जाएगी और वो दिन दूर नहीं जब वो इस में कामयाब भी हूजाएंगे और हम कफ़ अफ़सोस मिलते रह जाएंगे ।।