उस्व- ए‍- रसूल ( स‍०अ०व०) को अपनाया जाए

ऐ हमारे रब! हमें ना बना दे फ़ित्ना काफ़िरों के लिए और हमें बख़्श दे, ऐ हमारे रब! बेशक तू ही इज़्ज़त वाला (और) हिक्मत वाला है। बेशक तुम्हारे लिए इनमें ख़ूबसूरत नमूना है इसके लिए जो अल्लाह और रोज़ ए क़ियामत का उम्मीदवार है, और जो रुगरदानी करे (इससे) तो बिला शुबा अल्लाह ही बेनयाज़ है सब ख़ूबीयों सराहा। (सूरा अल मुमतहिना।५,६)

हज़रत इब्न ए अब्बास रज़ी० ने इसका मतलब ये बयान फ़रमाया है कि ऐ अल्लाह! कुफ़्फ़ार को हम पर मुसल्लत ना फ़रमा। फ़ित्ना की एक सूरत ये भी है कि कुफ़्फ़ार ग़ालिब आ जाऐं और उनका ये ग़लबा तुम्हें इस ग़लतफ़हमी में मुबतला कर दे कि वो हक़ पर हैं, इसलिए उनको फ़तह नसीब हुई है।

कुफ्र व शिर्क और फ़िस्क़-ओ-फ़ुजूर जिस पर वो कारबन्द हैं, यही हक़ और सच है। नीज़ कुफ्र के ग़लबा से इस फ़ित्ना का भी अंदेशा है कि बाअज़ ज़ईफ़-उल-ईमान अफ़राद इसको इस्लाम के बातिल होने की दलील बनाकर मुर्तद ना हो जाएं।

ये भी फ़ित्ना है कि मुसलमान किसी अज़ाब और तकलीफ़ से दिलबर्दाश्ता होकर कोई ऐसी हरकत ना कर बैठें, जो इस्लाम के दामन पर एक बदनुमा दाग़ बन जाए।

अल-ग़र्ज़ क़ुरान-ए-पाक के ये अलफ़ाज़ इतने जामे हैं कि फ़ित्ना की जितनी इम्कानी शक्लें हैं, इन सबका अहाता किए हुए हैं। और जब बंदा मोमिन इन कलिमात से अपने रब के हुज़ूर दुआ मांगता है तो वो गोया अपने आपको और दूसरे लोगों को गुनाँहो फ़ितनों से बचाने के लिए इल्तिजा कर रहा होता है।

इस पाकीज़ा और बेहतरीन नमूना से वही इस्तिफ़ादा कर सकता है, जो ये तस्लीम करता है कि कयामत का दिन आएगा और इसे इसकी क़ब्र से उठाकर आलिमुल गै़ब व शहादा की बारगाह में पेश किया जाएगा, जहां इससे गुज़श्ता ज़िंदगी के बारे में बाज़पुर्स होगी।

वही ऐसे नमूनों की क़ुदरत रखता है और वही इन पाकबाज़ों के नक़्श-ए-क़दम को ख़िज़र-ए-राह बनाता है।