एकतरफा वोट नहीं देते हैं मुस्लिम वोटर्स

मुल्क की आबादी में 15 फीसदी के हिस्सेदार मुस्लिम फिर्के के लिए आम तौर पर यह माना जाता है कि वो किसी एक पार्टी या खुसूसी कम्युनिटी के लिये वक्फ रहते हैं। वैसे भी हिंदुस्तानी वोटर्स के लिए कहा जाता है कि वो मुंसिफाना वोटींग नहीं करते लोग अपने तब्के और कम्युनिटी को देखकर वोट देते हैं।

मुस्लिम वोटर्स को लेकर यह सोच थोड़ा कट्टर है। अब तक मुस्लिम वोटर्स को किसी खास तब्के का ही वोट बैंक समझा जाता रहा है, जबकि हालात हूबहू ऐसी नहीं है। एक सर्वे में यह बात खुलकर सामने आई है कि मुस्लिम वोटर्स भी मुकामी मुद्दों को मद्देनजर रखते हुए वोट देते हैं।
मुस्लिम वोटर्स के हालात

मुस्लिमों का मुल्क की आबादी में 15 फीसदी की हिस्सेदारी है
मुल्क की 35 सीटों पर ज़्यादातर मुस्लिम आबादी रहती है।
218 सीटों पर मुस्लिमों का 10 फीसदी से ज़्यादा वोट शेयर है।

साल 2012 में उत्तर प्रदेश जैसे बड़ी रियासत में हुए सर्वे में यह बात निकलकर सामने आई थी कि अब मुस्लिम वोटर्स एकतरफा वोट नही देते है बल्कि वो मुकामी मुद्दों को बुनियाद बनाकर उम्मीदवार को तवज्जो देता है। साल 2012 के विधानसभा इंतेखाबात के दौरान माध्वी देवाशेर ने उत्तर प्रदेश की 80 में से 45 सीटों पर मुस्लिम वोटर्स का रुझान जानने की कोशिश की थी। माध्वी ने पाया कि अब मुस्लिम वोटर्स किसी एक खास तबके को वक्फ नहीं होता है। कुल मुस्लिम वोटर्स में 54 फीसदी समाजवादी पार्टी को, 20 फीसदी बहुजन समाज पार्टी को और 8 फीसदी कांग्रेस को हिमायत देता है।

आम तौर पर मुस्लिम सपा के रिवायती वोटर्स माने जाते हैं, लेकिन इसी बीच बसपा ने भी मुस्लिमों के बीच अच्छी पैठ बनाई है। बसपा की हुकूमत में फिर्कावाराना वाकियात में काफी कमी आई। साल 1989 में बसपा के मुस्लिम वोटर्स की तादाद में काफी इजाफा हुआ, जबकि सपा बमुश्किल साल 2007 के आंकड़े के आस पास रहने में कामयाब रही थी।

साल 2012 के विधानसभा इंतेखाबात से पहले भाजपा उत्तर प्रदेश में उतनी मजबूत नहीं थी। हालांकि साल 2014 में भाजपा के लिए इम्कानात मजबूत हुए । मुस्लिम वोटर्स के रुझान के वोट में बदलने की क्या इम्कान है। यह बात बेहद आसानी से कही जा सकती है कि साल 2014 में ज़्यादातर मुस्लिम वोटर्स भाजपा को वोट नहीं देने जा रहा है और वो भी ऐसी सूरत में जब भाजपा ज़्यादतर सीटों पर मजबूत हालात में दिखाई पड़ रही है। हालांकि भाजपा के खिलाफ वोट के इम्कान भी काफी कम है।

अगर उत्तर प्रदेश दो पार्टियों वाली रियासत होती तो शायद भाजपा के खिलाफ वोट करना आसान होता, लेकिन जैसा कि हमने साल 2012 में देखा है साल 2014 में हम उम्मीद कर सकते हैं कि ज़्यादातर वोटर्स भाजपा के इलावा विनर पार्टी को ही वोट देंगे लेकिन फिलहाल इस बात की सही पेशनगोई करना आसान नहीं है।