एक अनोखी पहल ‘नेकी की दीवार’ नफ़रत की भेंट चढ़ा

दिल्ली के जामिया नगर में एक इंसान की ज़रूरतमंद की मद्द के लिए की गयी अनोखी पहल को कुछ स्थानीय लोगों ने ही कामयाब नहीं होने दिया। दसवीं क्लास में पढ़ने वाला सोलह साल का अली हसनैन मुर्तुज़ा नाम के एक बच्चे ने बड़े जतन से ये दीवार बनाने की कोशिश की थी जिसका मक़सद दुनिया भर में मशहूर ‘नेकी की दीवार’ को लोगों के दिलों में जगह देना था,

मगर मुर्तुज़ा के पड़ोसी ने ही इस कोशिश को नाकाम कर दिया। आपको बता दूँ कि तक़रीबन दो महीने पहले जामिया नगर के नूर नगर इलाक़े में मुर्तुज़ा ने अपने चार-पांच दोस्तों की मदद से ‘वॉल ऑफ काइंडनेस’ की शुरूआत की थी। स्थानीय लोगों ने इसकी इस पहल की न सिर्फ़ जमकर तारीफ़ की बल्कि पूरा साथ भी दिया था। मुर्तुज़ा का कहना है कि -‘यहां के स्थानीय लोगों का मुझे पूरा सपोर्ट मिला। मुझे बहुत खुशी मिलती थी जब मैं ये देखता था कि कोई गरीब इस कंपा देने वाली ठंड में आकर अपने लिए कपड़े ट्राई करके ले जाता था,

लेकिन जब एक दिन स्कूल से लौटा तो देखा कि सारे कपड़े वा सामान सड़क पर बिखरे पड़े हैं और दीवार में लगे हैंगर को तोड़ दिया गया है. पता करने पर मालूम चला कि ये काम मेरे ही एक पड़ोसी ने की है.’ फिर वो आगे यह भी कहता है कि -‘ये तो मुझे पता था कि जहां भी कुछ अच्छा काम होता है, वहां कोई न कोई विरोध करने ज़रूर आता है। मतलब अब हमें यक़ीन हो गया कि हमने कुछ अच्छा ज़रूर किया था’

आपको बता दूँ कि ये दीवार एक सरकारी स्कूल की है। इस संबंध में इस स्कूल के प्रिसिंपल से भी हमने मिलने की कोशिश की लेकिन कामयाबी नहीं मिल सकी. हालांकि स्कूल के टीचरों का कहना था कि इससे किसी को क्या समस्या हो सकती है।

क्या है वॉल ऑफ़ कायंड्नेस

जानकार बताते हैं कि ‘वॉल ऑफ काइंडनेस’ की शुरूआत ईरान के लोगों के ज़रिए की गई थी। मदद के तौर पर एक शख्स ने एक दीवार पर हुक लगाकर गर्म कपड़े टांग दिए और दीवार पर लिख दिया, अगर आपको इन कपड़ों की ज़रूरत नहीं है तो छोड़ दें और ज़रूरत है तो इन्हें ले जाएं। बस यहीं से इसकी शुरूआत हो गई।  इसके बाद ईरान के कई क़स्बों और शहरों में इसकी शुरुआत हो गयी। कुछ ही समय के बाद इन दीवारों पर कपड़ों के साथ-साथ कई और सामान भी रखे जाने लगे। अब इन दीवारों को बहुत सलीक़े से रंग दिया जाता है और सजाया भी जाता है। इस तरह से देखते-देखते ये कंसेप्ट अब पूरी दुनिया में फैल चुकी है.

हमारा मुल्क भारत भी इससे अछूता नहीं है। भारत के संदर्भ में अगर बात कही जाए तो नेकी की ये दीवार इस दौर में एक बेहद ही सुखद हैरानी की तरह है, जब चारों तरफ़ नफ़रत की फ़सीलें खड़ी की जा रही हैं। जब लोगों को कभी जाति कभी मज़हब के नाम पर एक दूसरे के खून का प्यासा होने की तालीम दी जा रही है। ऐसे में नेकी की दीवारों के फलने-फुलने का पूरा सामान मुहैय्या कराया जाए, ये हमारी गुज़ारिश भी है और दुआ भी।