एक आयत की मुख्तसर तफसीर

(मौलाना मोहम्मद उवैस नगरानी नदवी ) कुरआने मजीद में अल्लाह तआला का इरशाद है-‘‘ (तर्जुमा) और अगर (जिस पर फर्ज है) उसका हाथ तंग है तो उसको मोहलत दो, जब तक उसका हाथ कुशादा हो और अगर माफ कर दो तो तुम्हारे लिए बेहतर है।’’ (सूरा बकरा)

जरूरत पर लोग एक दूसरे से कर्ज लेते रहते हैं लेकिन चाहिए कि आदमी जिस कदर जल्दी हो सके अदा करे। हदीस में है कि तुम में अच्छे वह लोग हैं जो कर्ज अदा करने में अच्छे है। हजरत जुबैर जब जंगे जमल में शरीक हुए तो अपने बेटे को बुलाकर कहा कि मेरा ख्याल है कि मैं भी आज मजलूमाना शहीद हूंगा, मुझ को सबसे ज्यादा अपने कर्ज की फिक्र है, हमारी जायदाद बेच कर सबसे पहले कर्ज अदा करना और अगर मजबूर हो जाना तो हमारे खुदा से मदद चाहना।

सहाबा‍ ए किराम कुरआन मजीद के हुक्म की वजह से कर्जदारों को मोहलत देते थे। एक शख्स पर हजतर कतादा का कर्ज आता था वह तकाजे को आते थे तो यह घर में छिप जाते थे। एक दिन आए और उनके बच्चे से पूछा कि वह कहां हैं? उसने कहा कि घर में खाना खा रहे हैं, बुलाकर पूछा क्यों छिप गए हैं। बोला सख्त तंग दस्त हूं मेरे पास कुछ नहीं है। हजरत कतादा की आंख में आंसू आ गए और कहा कि रसूल (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) ने फरमाया कि जो शख्स अपने कर्जदार को मोहलत देता है या कर्ज माफ कर देता है वह कयादत के दिन अर्श के साए में होगा।

सहाबा न सिर्फ यह कि मोहलत देते थे बल्कि कर्ज माफ कर दिया करते थे। एक शख्स पर हजरत अबू लैर का कर्ज था यह आदमी बहुत तंगदस्त था। हजरत अबू लैर (रजि0) ने कहा कि जाओ तुम्हारा कर्ज माफ है। एक बार एक जनाजा आया जिस पर तीन दीनार कर्ज था। नबी करीम (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) ने नमाजे जनाजा पढ़ाने से इंकार कर दिया तो हजरत अबू कतादा अंसारी (रजि0) ने कहा कि या रसूल (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम )! मैं इसका कर्ज अदा कर दूंगा, तब आप (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) ने नमाजे जनाजा पढ़ाई। (तालीमुल कुरआन से लिया गया)

———————बशुक्रिया: जदीद मरकज़