हैदराबाद 10 फरवरी: किसे वकील करें किस से इन्साफ चाहें कुछ यही हाल हज हाउज़ का है, जहां अवामी शिकायात और मसाइल की यकसूई के लिए कोई गुंजाइश नहीं। महिकमा के इदारों में जारी घोटालें और बे क़ाईदगियों के ख़िलाफ़ अवाम आख़िर किस से रुजू हूँ क्युं कि एक ही ओहदेदार के तहत कई ज़िम्मेदारियाँ हैं।
ज़ाइद ज़िम्मेदारीयों का फ़ायदा उठाते हुए दुसरे इदारों में जारी क़वाइद की ख़िलाफ़वरज़ी और बे क़ाईदगियों का तहफ़्फ़ुज़ किया जा रहा है। अक़लियती तबक़ा से ताल्लुक़ रखने वाले तंज़ीमें और अवाम उलझन का शिकार हैं कि वो शिकायत किस से करें। अगर एक ओहदेदार से शिकायत की जाये तो आला ओहदेदार की तरफ से इन्साफ़ की उम्मीद की जा सकती है लेकिन अगर तमाम अहम ओहदों पर एक ही फ़र्द फ़ाइज़ हो तो फिर इन्साफ़ किस तरह हासिल होगा वाज़िह रहे कि वक़्फ़ बोर्ड के ओहदेदार मजाज़ के ओहदे पर सय्यद उम्र जलील फ़ाइज़ हैं और वक़्फ़ बोर्ड से मुताल्लिक़ किसी भी शिकायत की यकसूई का उन्हें इख़तियार हासिल है।
ओक़ाफ़ी जायदादों की तबाही के बारे में शिकायात की चीफ़ एग्जीक्यूटिव ऑफीसर की तरफ् से समाअत के बाद जब मुताल्लिक़ा फाईल को ओहदेदार मजाज़ के पास रवाना किया जाता है तो वहां से किसी कार्रवाई के बग़ैर फाईल को लौटा दिया जा रहा है। दिलचस्प बात तो ये है कि ओहदेदार मजाज़ की हैसियत से किसी भी फ़ैसले का जायज़ा लेने के लिए सेक्रेटरी अक़लियती बहबूद को इख़तियार हासिल है लेकिन इस ओहदे पर वही शख़्स फ़ाइज़ है। अगर कोई सेक्रेटरी के ख़िलाफ़ शिकायत करे तो इस की समाअत महिकमा के वीजलेंस की ऑफीसर की तरफ से की जाती है लेकिन अफ़सोस कि वीजलेंस ऑफीसर के ओहदे पर भी वही ओहदेदार फ़ाइज़ हैं कोई भी शिकायत की यकसूई और कार्रवाई मुम्किन नहीं।
अवाम में ये बात आम हो चुकी है कि तीन अहम ओहदों पर फ़ाइज़ होने के नतीजे में अक़लियती बहबूद की कारकर्दगी बुरी तरह मुतास्सिर हो चुकी है और किसी भी शिकायत पर कार्रवाई के बजाये ख़ाती ओहदेदार और मुलाज़मीन का तहफ़्फ़ुज़ किया जा रहा है।
ओक़ाफ़ी जायदादों के बारे में कई बेहतर फ़ैसले हालिया अरसे में किए गए जो वक़्फ़ बोर्ड के ओहदेदार मजाज़ की हैसियत से किए गए। इन फ़ैसलों की तौसीक़ सेक्रेटरी अक़लियती बहबूद की हैसियत से की गई। अगर कोई शख़्स फ़ैसले को चैलेंज करता है तो ओहदेदार मजाज़ के बजाये सेक्रेटरी की हैसियत से शिकायत को मुस्तर्द किया जाता है। अगर एक ओहदेदार के काम का जायज़ा लेने का इख़तियार किसी और ओहदेदार को दिया जाये तो इस से महिकमा की कारकर्दगी बेहतर हो सकती है लेकिन यहां एक ही ओहदेदार तीन मुख़्तलिफ़ ओहदों पर फ़ाइज़ हैं और अपने फ़ैसलों का आप ख़ुद ही जायज़ा लेने का हक़ हासिल करचुका है। एसे में अक़लियती बहबूद की कारकर्दगी का मुतास्सिर होना यक़ीनी है।