एक और मैच फिक्सिंग

हिंदूस्तान की सयासी फ़िज़ा ( वातावरण) हो या खेल कूद का मैदान बदउनवानीयों का बदतरीन मिज़ाज पूरे मुल्क को शर्मसार कर रहा है । ख़राबियां पैदा होती हैं तो इस का अज़ाला फ़ौरी कर लेना ज़रूरी है मगर आला सतही इदारों में खराबियों को रोकने का कोई उसूल नज़र नहीं आता।

खेल के मैदान में रिश्वतखोरी , जोह ( जूआ), सट्टेबाज़ी ने शाइक़ीन खेल के जज़बा को ठेस पहुँनचाई है । सियासतदानों ने अपनी सफ़ों में रिश्वतखोरी के चलन को इतना आम कर दिया है कि ये रिश्वतखोरी हर तरफ़ अपना असर दिखा रही है । क़ानून , अख़लाक़ , तहज़ीब , समाजी मर्तबा , क़ौमी वक़ार, इंसानी क़दरों की गिरावट की अब किसी को कोई फ़िक्र लाहक़ मालूम नहीं होती ।

कई स्क़ाम्स से दो-चार इस मुल़्क की सियासत में अब खेल कूद के शोबा को आलूदा कर दिया । क्रिकेट के मैदान में जब से मैच फिक्सिंग का सिलसिला शुरू हुआ है । खिलाड़ियों के जज़बा खेल पर भी कहीं शदीद शुबहात पाए जाते हैं तो कहीं खेल की कामयाबी पर उंगलियां उठती हैं।

बी सी सी आई ने एक टी वी चैनल के खु़फ़ीया ऑपरेशन के बाद आई पी एल के 5 खिलाड़ियों को मुअत्तल ( बर्खाश्त) कर दिया । इस मुआमला की तहकीकात का हुक्म तो दिया गया है मगर असल सवाल ये है कि तहकीकात के बाद ख़ातियों को सज़ाद दी भी जाय तो इस की कोई ज़मानत नहीं मिल सकती कि दूसरे खिलाड़ी मैच फिक्सिंग से गुरेज़ (नफरत) करेंगे ।

साबिक़ में भी कई खिलाड़ियों को रिश्वतखोरी , बदउनवानी और धोका दही के इल्ज़ामात के बाद घर पर बैठा दिया गया । मगर ये खिलाए अपनी ज़ाती ज़िंदगी में खेल के मैदान के हवाले से मज़ीद आला मौक़िफ़ हासिल कर चुके हैं। इनकी कोई बेइज़्ज़ती नहीं हुई और ना ही रिश्वतखोरी यह मैच फिक्सिंग के वाक़्यात में अपने नामों के ज़ाहिर होने के बाद उन्हें कोई शर्मिंदगी होती है ।

ये लोग शाइक़ीन खेल के जज़बा को अपने मुफ़ादात के क़दमों तले रौंद क़ुरैश-ओ-इज़्ज़त की ज़िंदगी गुज़ारते हैं। ताज़ा मैच फिक्सिंग का मुआमला आई पी एल मैच्स में पेश आया । ये मैच्स पहले ही से दौलत की बुनियाद पर खेले जा रहे हैं और उन में जज़बा खेल का अंसर कम नाम-ओ-नमूद ज़्यादा हो गई है ।

आई पी एल की गवर्निंग कौंसल ने टी वी स्टिंग ऑपरेशन के ज़रीया मैच फिक्सिंग में मुबय्यना तौर पर मुलव्वस 5 क्रिकेटर्स को 15 दिन के लिए मुअत्तल करने का फैसला किया । 15 दिन बाद वो फिर मैदान में उतरेंगे यह मुअत्तल शूदा ये खिलाड़ी टी पी सधनदरा (दक्कन चार्जर्स) अभीनो बाल , मोहनीश मिश्रा (पौने वॉरियर्स) अमीत यादव और शालभ सिरे वास्तव (किंग्स इलेवन) को बी सी सी आई ने एंटी कुरप्शन यूनिट की तहकीकात के बाद खेलों से दूर रखा जाएगा ।खेल को ये लोग हर एतबार से बद उनवान बना रहे हैं।

आलीशान फाईव स्टार होटलों में ज़िंदगी गुज़ारकर ये लोग क़ौमी मिज़ाज को ठेस पहूँचा रहे हैं। इन में कोई शर्म है ना किसी सज़ा का ख़ौफ़ है क्योंकि इस से पहले भी एक से ज़ाइद मर्तबा स्टिंग ऑपरेशन यह दीगर ( दूसरे) तरीकों से खिलाड़ियों की मैच फिक्सिंग के वाक़्यात (घटना) मंज़रे आम पर आ चुके हैं और ख़ाती खिलाड़ियों को सज़ा के तौर पर खेल के मैदान से दूर कर दिया गया है ।

इंडियन प्रीमीयर लीग (आई पी एल) में करप्शन और मैच फिक्सिंग का ये ताज़ा वाक़्या ( घटना) नहीं है । इस से क़ब्ल करप्शन की तफ़सीलात सामने आ चुकी हैं इसके बावजूद क्रिकेट खेलों का इनइक़ाद अमल में लानी वाली अथॉरीटीज़ बदउनवानीयों को रोकने के लिए कोई उसूल ज़ाबता और शराइत वज़ा नहीं कर सके।

टी वी स्टिंग ऑपरेशन से ये भी पता चला है कि आई पी एल टीम के मालिकान खिलाड़ियों को असल कौन्ट्रैक्ट की रक़म से ज़ाइद रुपया देते हैं ताकि खेल के मैदान में वो उन की मर्ज़ी से खेलें जहां जीतने की कोशिश हो रही है वहां हारा जाय और जहां हारना है वहां सुस्त बैटिंग यह फिर फिक्सिंग की जाए ।

शाइक़ीन क्रिकेट अपनी पसंद की टीम के मुज़ाहिरे को हक़ीक़त का जज़बा समझ कर दाद देते हैं , ख़ुशीयां मनाते हैं। नाकामी और शिकस्त पर दलों को ठेस पहूँचती है जबकि बदउनवानीयों यह मैच फिक्सिंग के ज़रीया हार जीत का फैसला होता है तो खेल का असल मीआर मिले अमिट हो जाता है ।

पंजाब के सिरे वास्तव ने आई पी एल के दौरान 2 नो बाल्स फेंकने के लिए 10 लाख रुपये तलब किए थे । दक्कन चार्जर्स के सधतेआ राय भी एक सहाफ़ी के स्टिंग ऑपरेशन में 50 हज़ार रुपये के इव्ज़ एक लीग मैच में नो बाल फेंकी इस तरह दीगर मैच्स में इस तरह की मुख़्तलिफ़ बदउनवानीयाँ की गई हैं। क्रिकेट खेल का शौक़ रखने वाले और दीगर शाइक़ीन खेल के लिए मैच फिक्सिंग के वाक़्यात सदमा ख़ेज़ होते हैं।

हुकूमत और मुताल्लिक़ा ज़िम्मा दारान का काम है कि बदउनवानीयों से पाक खेल बनाने को यक़ीनी बनाया जाए , मगर जिस फ़िज़ा में ये खेलाड़ी सांस ले रहे हैं वो आम शाइक़ीन क्रिकेट के जज़बात का एहतिराम क्यों कर करेंगे । हुकूमत की बेशुमार नाकामियों में से एक नाकामी रिश्वतखोरी पर क़ाबू पाने में नाकामी भी शामिल है ।
अदालतों का ख़ौफ़ नहीं रहा है । क़ानून के हाथ लंबे होने का मुहावरा सिर्फ एक कहावत तक ही महिदूद है । इस क़ानून के लंबे हाथ से अवाम को बराह-ए-रास्त कोई राहत नहीं मिलती । गुज़श्ता चंद बरसों में बदउनवानीयों ने पूरे मुआशरा को ज़च कर दिया है। लिहाज़ा अब इस मुआशरा के ज़िम्मादारान ही को बदउनवानीयों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाकर अपनी होशमन्दी का सुबूत देने की ज़रूरत है