सारे मुल्क में ओक़ाफ़ी आराज़ीयात पर नाजायज़ क़ब्ज़े और उन की गैरकानूनी फ़रोख्त का सिलसिला किसी रुकावट के बगैर जारी-ओ-सारी है । ना सिर्फ नाजायज़ क़ाब्ज़ेन और लैंड माफिया की जानिब से ओक़ाफ़ी आराज़ीयात और जायदादों को तबाह-ओ-बर्बाद किया जा रहा है बल्कि इसमें हुकूमतें और क़ानून बनाने वाले ( अरकान पार्लीयामेंट) भी शामिल हैं।
ये लोग महिज़ अपने फ़ायदे के लिए क़ौम-ओ-मिल्लत की लाखों करोड़ों रुपये की ओक़ाफ़ी आराज़ीयात को कौड़ियों के मूल फ़रोख्त कर देते हैं और ख़ुद चंद टिके हासिल करके ख़ुश और मुतमईन हो जाते हैं। कुछ अर्सा क़ब्ल आंधरा प्रदेश में ओक़ाफ़ी आराज़ीयात की बे धड़क और बड़े पैमाने पर फ़रोख्त के ख़िलाफ़ क़ौम के हक़ीक़ी दर्द मंदान की जानिब से एक मुहिम शुरू की गई थी जिसके ख़ातिरख्वाह असरात सामने आए और मुस्लमानों मैं ख़ुद अपनी कीमती और बेश कीमती जायदादों के ताल्लुक़ से शऊर बेदार हुआ था ।
रियासत में दरगाहों और दीगर मज़हबी इदारों के तहत मौजूद हज़ारों बल्कि लाखों एकड़ अराज़ी पर जहां नाजायज़ क़ाब्ज़ेन और लैंड माफिया ने क़ब्ज़े करते हुए फ़रोख्त कर दिया था वहीं सरकारी मह्कमाजात और हुकूमत ने भी इन ओक़ाफ़ी आराज़ीयात को कौड़ियों के मूल बड़े बड़े कारोबारी इदारों और घरानों के हवाले कर दिया ।
अगर कहीं वक़्फ़ बोर्ड की जानिब से कोई इक़दाम किया गया तो उसे महिज़ मुंह बंद करने के लिए कुछ रक़म सौंप कर ख़ामोश बैठा दिया गया ।हुकूमतें ओक़ाफ़ी जायदादों पर अपना हक़ समझते हुए उन्हें तबाह-ओ-बर्बाद करने पर तुली हुई हैं और मुस्लमान जिनके आबा-ओ-अज्दाद ने ये आराज़ीयात और कीमती जायदादें वक़्फ़ की थीं उनकी तबाही-ओ-बर्बादी पर आंखें मूंदे ख़ामोशी इख्तेयार किए हुए हैं।
ये मुस्लमानों और मुस्लमानों के नुमाइंदों की मुजरिमाना ग़फ़लत है और इस की माफ़ी नहीं हो सकती । आज हज़ारों नहीं बल्कि लाखों करोड़ रुपये की ओक़ाफ़ी आराज़ीयात से अग़ियार फ़ायदा उठा रहे हैं और मुस्लमान इसी बे सर-ओ-सामानी की हालत में ज़िंदगी गुज़ारने पर मजबूर हैं जो अग़ियार की ख़ाहिश के ऐन मुताबिक़ है ।
मुस्लमान अपना हक़ हासिल करने के लिए किसी तरह की जद्द-ओ-जहद करने को तैयार नहीं हैं और लैंड माफिया और हुकूमतें मुस्लमानों को उनके हक़ से महरूम करने के लिए जो कुछ उनसे बन सकता है वो कर गुज़रने से गुरेज़ नहीं कर रहे हैं।
आंधरा प्रदेश की तरह सारे मुल्क में ओक़ाफ़ी आराज़ीयात की तबाही-ओ-बर्बादी का एक ऐसा सिलसिला जारी है जिसकी मिसाल मिलनी मुश्किल है । अब कर्नाटक में दो लाख करोड़ रुपये की ओक़ाफ़ी आराज़ीयात का स्कैंडल सामने आया है । कर्नाटक इकलेती कमीशन ने इस सिलसिला में एक रिपोर्ट पेश कर दी है ।
सरकारी तौर पर हालाँकि इस रिपोर्ट को मंज़रे आम पर नहीं लाया गया है लेकिन सहाफ़ती हलक़ों ने इस रिपोर्ट का इफ्शा कर दिया है और सिर्फ चंद हिस्सों के इफ्शा से वाज़िह हो गया कि बी जे पी इक़्तेदार वाली रियासत में दो लाख करोड़ रुपय की ओक़ाफ़ी आराज़ीयात को फ़रोख्त कर दिया गया और उन पर नाजायज़ क़ाब्ज़ेन अपना तसर्रुफ़ जता रहे हैं।
आंधरा प्रदेश में भी सिर्फ दार-उल-हकूमत हैदराबाद और अतराफ़-ओ-अकनाफ़ के इलाक़ों में दो लाख करोड़ रुपये की ओक़ाफ़ी आराज़ीयात की मौजूदगी का इन्केशाफ़ किया गया था जिन का बड़ा हिस्सा नाजायज़ क़ाब्ज़ेन के तसर्रुफ़ में है यह फिर हुकूमतें उन पर अपना हक़ जताते हुए उन्हें फ़रोख्त कर रही हैं।
हुकूमतें अपने इदारों के ज़रीया हो या फिर सयासी कारिंदों के ज़रीया हों उन्हें तबाह करती जा रही हैं और मुस्लमान और मुस्लमान क़ाइदीन-ओ-नुमाइंदे उन पर आंखें मूंदे मुजरिमाना ग़फ्लत बरतने के मुर्तक़िब हो रहे हैं। कुछ ऐसे भी हैं जो इन सौदे बाज़ीयों में महिज़ ख़ामोशी इख्तेयार करने अपना हिस्सा वसूल करते हैं और फिर ख़ामोशी इख्तेयार कर लेते हैं।
उन्हें सूचना चाहीए कि वो आख़िर किस को नुक़्सान पहूँचा रहे हैं और उन की इस ज़लील और इंतिहाई गिरी हुई हरकत से ना सिर्फ ये कि क़ौम का नाक़ाबिल तलाफ़ी नुक़्सान हो रहा है बल्कि अग़ियार के सामने क़ौम की शबेहा कितनी मुतास्सिर हो रही है।
अग़ियार ये सोचने पर मजबूर हैं कि चंद टिकों के इव्ज़ जब मुस्लमानों के क़ाइदीन और नुमाइंदे बिक सकते हैं तो फिर आम मुस्लमान को खरीदना उनके लिए ज़्यादा मुश्किल नहीं होगा । हालाँकि अग़ियार की ये सोच क़तई ग़लत है लेकिन मुस्लमान नुमाइंदे उन्हें ऐसी सोच रखने का जवाज़ और मौक़ा दोनों ही फ़राहम कर रहे हैं। इस सूरत-ए-हाल और इस तर्ज़ अमल को यकसर तब्दील करने की ज़रूरत है ।
लाखों करोड़ रुपये की ओक़ाफ़ी जायदादें और आराज़ीयात पर अग़ियार का क़ब्ज़ा और तसर्रुफ़ है और मुस्लमान बे सर-ओ-सामानी की हालत में ज़िंदगी गुज़ार रहे हैं। मुस्लमानों की लाखों करोड़ की आराज़ीयात हासिल करते हुए हुकूमतें उन्हें चंद सौ करोड़ रुपये बजट की ख़ैरात देने को भी बहुत समझती हैं और इस पे सितम ये कि इस रक़म को भी पूरी तरह ख़र्च नहीं किया जाता और उन्हें सरकारी ख़ज़ानों को वापस कर दिया जाता है ।
हुकूमतें अगर मुस्लमानों को फ़ंडस और बजट फ़राहम करना पूरी तरह बंद भी कर दें और महज़ उनकी ओक़ाफ़ी आराज़ीयात उन के हवाले कर दे तो ये एक हक़ीक़त होगी कि हिंदूस्तान का मुस्लमान इंतेहा दर्जा की पसमांदगी से उठ कर ज़िंदगी की तरक़्क़ी के सफ़र में दीगर अब्ना-ए-वतन के शाना बह शाना नज़र आएगा।
लेकिन ये इतना आसान नहीं है । इसके लिए सबसे पहले ख़ुद मुस्लमानों को उठ खड़ा होना होगा और अपने क़ाइदीन को जवाबदेह बनाना होगा । जो क़ाइदीन ऐसा करने से गुरेज़ करें फिर उनके मुस्तक़बिल का फैसला करना ख़ुद मुस्लमानों के हाथ ही में होगा । जब तक मुस्लमान ख़ुद अपना हक़ हासिल करने उठ खड़े नहीं होंगे उस वक़्त तक उन्हें इन का हक़ मिलना मुम्किन नहीं होगा।