पटना धमाके और उसके बाद की पुलिस और एनआईए की सरगरमियों ने रांची के लोगों को झकझोर कर रख दिया है। शहर के मुसलमानों को लेकर लोगों के नज़रियात में, उनकी सोच में बदलाव देखने को मिल रहा है। यह बदलाव महसूस किए जाने वाले हैं। खुद मुस्लिम खानदान के लोग अपने बच्चों के कल को लेकर फिक्रमंद हैं। घर के पीसी या किसी लैपटॉप को लेकर जब भी कोई लड़का बैठता है, तो गार्जियन की नजरें चौकन्नी हो जाती हैं। हंसी-ठिठोली में ही सही उनके मेल या सोशल साइट्स के अकाउंट की निगरानी इन बच्चों के लिए दहशतभरी होती हैं। कुछ खानदान तो मोबाइल तक की भी मॉनिटरिंग करने लगे हैं। वहीं शहर के कई इलाकों में नाम पूछकर स्टूडेंट्स को लॉज दिए जा रहे हैं।
दहशत और शक की सुई ने तालीम व कारोबार को भी बुरी तरह मुतासीर किया है। वहीं एक खास नज़रियात को लेकर भी लोगों में गुस्सा है।
केस-1
दिल करता है छोड़ दें रांची
मेरे छोटे बेटे की सिर्फ जान पहचान उजैर से थी। उसके पकड़े जाने के दूसरे दिन एनआईए मेरे बेटे को पूछताछ के लिए ले गई। रात 10 बजे छोड़ा। दूसरे दिन सुबह बुलाया गया बेटा रात घर लौटा। ऐसा 13 दिनों तक चलता रहा। इस दौरान हम हर पल जीते-मरते रहे। यह कहना है डोरंडा फिरदौस नगर में रहने वाले रईस खान का। कहते हैं कि उनका पूरा खानदान दहशत में है। बीवी सदमे में है। बेटे का घर से निकलना कम हो गया। लोग शक से देखते हैं। मैं बीवी से बात कर रहा था कि रांची छोड़कर बड़े बेटे के पास रहने चले जाएं।
केस-2
डर में जी रहा खानदान
बीते एक महीने से पूरा खानदान डर में जी रहा है। कोई भी आवाज देता है, तो रूह कांप जाती है। किसी अनजाने नंबर से फोन आता है, तो लगता है कि एनआईए वालों का फोन होगा। यह कहना है मोजम्मिल के वालिद मोइनुद्दीन अंसारी का। मोजम्मिल की बस गलती इतनी थी कि वह पांच लाख का इनामी दहशतगर्द हैदर से ढाई साल पहले मिला था। हैदर उस वक़्त डोरंडा में ही रहा करता था। मोजम्मिल की अम्मी अल्लाह से दुआ करती हैं कि फिर दोबारा कहीं बम न फटे। वरना फिर से एक बार हमारा जीना मुहाल हो जाएगा।
केस-3
बंद कर दिया कैफे
इरम लॉज से चंद दूरी पर निशा जनरल स्टोर है। यहां एक साइबर कैफे भी कुछ माह पहले शुरू हुआ था। लेकिन अब उसे बंद कर दिया गया है। इसके एख्तेताम मो. इरफान आलम ने बताया कि उन्होंने दहशत में कैफे को बंद कर देने का फैसला किया। हालांकि उससे उनकी आमदनी पर भी असर पड़ा है। जबके मैं बिना शिनाख्त के किसी को भी बैठने की इजाजत नहीं देता था। लेकिन कोई नेट का कैसा इस्तेमाल करेगा, इसकी मॉनिटरिंग मुश्किल है। साथ ही ज़ाती आजादी पर हमला भी।
केस-4
छूट जाएगा बच्चों का स्कूल
उजैर की बीवी फातिमा शानी ने बताया कि गुजिशता महीने की 28 तारीख को पुलिस ने मेरे शौहर को फोन कर बुलाया। उसके बाद से न उनका फोन आया और न उनकी बाइक लौटाई गई। उजैर के साथ पुलिस ने मेरा भी पासपोर्ट जब्त कर लिया है। मेरे पास पैसे नहीं है। उधार के राशन से घर चल रहा है। इस महीने बच्चों की फीस तो भर दी है, लेकिन दिसंबर में फीस के पैसे मेरे पास नहीं है। अगर फीस नहीं भरी, तो बच्चों की पढ़ाई छूट जाएगी। कहा कि उनके शौहर दहशतगर्द नहीं है। उन्हें खुदा पर भरोसा है, वो बेगुनाह साबित होंगे।
केस-5
पासपोर्ट बनाना मुश्किल
धमाके के बाद रांची में मुसलमानों के लिए पासपोर्ट बनवाना भी मुश्किल हो गया है। अब आसानी से पुलिस और स्पेशल ब्रांच की वेरिफिकेशन नहीं हो पाती है। इन दोनों एजेंसी की जांच के बाद भी डीएसपी लेबल के अफसर खुद से आमने-सामने पासपोर्ट बनाने वाले से पूछताछ करने लगे हैं। इस वजह से पासपोर्ट बनाने में वक़्त तो लग ही रहा है। वहीं सीठिओ के लोगों को दुकानदारों ने सिम बेचना बंद कर दिया था। अब रांची में भी दुकानदार शिनाख्त वाले मुस्लिम लोगों को ही सिम कार्ड बेच रहे हैं।
ऐसे गिरोह को निशानदेही करें
हुकूमत और पुलिस को चाहिए कि वे उन अनासिर की निशानदेही करें, जो दहशतगर्द सरगरमियों में शामिल हैं। क्योंकि एक इत्तिफ़ाक़ है कि एक खास नज़रियात से जुड़े लोगों का नाम इस मामले में सामने आ रहा है। लेकिन उससे समूची मुस्लिम कौम बदनाम हो रही है। आलिमों और दानिश्वरों को मिल बैठकर इस मुद्दे पर बैठक करनी चाहिए।
एक जमायत शक के घेरे में
पटना धमाके के इल्जाम में जितने भी लड़के रांची से पकड़े गए, वे सभी एक खास नज़रियात से जुड़े हुए थे, यह अफसोसनाक है। इसकी ईमानदारी से जांच होनी चाहिए। जांच यह भी हो कि इस जमायत को कहां से फंडिंग होती है। रांची में महज पंद्रह साल के अंदर इस जमायत का बहुत तेजी से फैलाव हुआ है। अवाम को इसपर सोचना होगा।
बशुक्रिया : दैनिक भास्कर