(मौलाना सैयद अशहद रशीदी) हजरत अब्दुल्लाह बिन उमर (रजि0) से मरवी है कि नबी करीम (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) ने इरशाद फरमाया- इंसान बराबर लोगों से मांगता रहता है, यहां तक कि वह कयामत के दिन मैदाने हश्र में इस तरह आएगा कि उसके चेहरे पर गोश्त न होगा। (मिश्कात शरीफ)
तशरीह:- नबी करीम (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) जिंदगी भर अपनी उम्मत को दुनिया व आखिरत में नुक्सान पहुंचाने वाले कामों से बाखबर करते रहे और यह बताते रहे कि फलां-फलां कामों से दूर रहो वरना दोनों जहां में जिल्लत व रूसवाई के अलावा कुछ हाथ नहीं लगेगा मगर उम्मत के बहुत से लोग हिदायते नबवी को नजरअंदाज करके अपने तरीकों, आदात और किरदार को सुधारने की फिक्र नहीं करते, वह नबी करीम (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) को नबी बरहक मानने के बावजूद आप की इताअत से दूर भागते हैं और बहुत से ऐसे कामों को अंजाम देते हैं जिनकी शरीअते मोहम्मदिया में कोई गुंजाइश नहीं है।
ऊपर की रिवायत में भी नबी करीम (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) एक बुराई की निशानदेही फरमाकर इसकी खौफनाक सजा का भी तजकिरा करते हैं ताकि उम्मत उससे बचने की भरपूर कोशिश करे। नीचे इस बुराई को थोड़ी तफसील से जिक्र किया जाता है।
एक मकरूह आदत:- नबी करीम (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) मजकूरा रिवायत में अपनी उम्मत को एक निहायत मकरूह आदत से दूर रहने की तलकीन करते हुए इरशाद फरमाते हैं कि हाथ फैलाने यानी मांगने से बचो कभी सवाल का लफ्ज जबान पर न लाओ, तकलीफ उठा लो, ख्वाहिशात को पसेपुश्त डाल दो, अरमानों को भुला दो और आरजुओं को नजरअंदाज कर दो लेकिन किसी भी कीमत पर अल्लाह के अलावा किसी इंसान के सामने हाथ हरगिज न फैलाओ।
अगर खुदा न ख्वास्ता तुम ने इस पर अमल न किया और दूसरों के सामने हाथ फैलाते रहे तो फिर याद रखो कल कयामत के दिन मैदान महशर में अल्लाह तआला दुनिया जहां के लोगों के सामने ऐसे शख्स को इस हाल में लाएगा कि उसके चेहरे पर जबड़े, दांत और दीगर हड्डियां तो होगी लेकिन गोश्त का कोई नाम व निशान न होगा। सोचिए ! कितना खौफनाक चेहरा होगा। किस कदर डरावना अंदाज होगा जिसको देखकर लोग फौरन पहचान जाएंगे कि यह वह आदमी है जो दुनिया में लोगों से मांगा करता था, दूसरों के सामने हाथ फैलाया करता था, आज इसको सजा मिल रही है।
एक तरफ जहां नबी करीम (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) सवाल करने से अपनी उम्मत को रोक रहे हैं वही दूसरी तरफ उम्मत में एक तबका बतौर पेशे के इसको अपनाता हुआ नजर आता है। ऐसा लगता है कि दुनिया की हवस ने शर्म व हया से उन लोगों को आरी कर दिया है, बेगैरती और बेहयाई आम हो गई है। उनको हाथ फैलाने और मांगने में जर्रा बराबर हर्ज नहीं होता जबकि अल्लाह के नबी (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) ने सवाल करने से बचने की जबरदस्त तलकीन फरमाई है। इसलिए एक रिवायत में आप (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) सदका और तअफ्फुफ को बयान करते हुए इरशाद फरमाते हैं कि – ‘‘ लेने वाले न बनो बल्कि देने वाले बनो क्योंकि देने वाला हाथ लेने वाले हाथ से बेहतर और अच्छा है।’’ इरशादे नबवी है -‘‘ हजरत इब्ने उमर (रजि0) से मरवी है कि नबी करीम (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) ने मिम्बर पर खड़े होकर सदका और सवाल करने से बचने का तजकिरा करते हुए फरमाया कि ऊपर वाला हाथ नीचे वाले हाथ से बेहतर है ऊपर वाले से मुराद खर्च करने वाला हाथ हैं और नीचे वाले से मुराद मांगने वाला हाथ है।’’ (मिश्कात शरीफ)
आजकल कुछ लोगों ने भीक मांगने को कारोबार के तौर पर अख्तियार कर रखा है, खुद भी दिन भर इसी में लगे रहते हैं और बाकायदा ग्रुप बनाकर दूसरों को भी इस रास्ते पर लगाते हैं। न किसी और कमाई के जरिए को अपनाते हैं और न ही मेहनत करके हलाल रिज्क हासिल करने की जद्दोजेहद करते हैं। उनका मकसद महज माल व दौलत कमाना होता है चाहे वह बेहयाई और बेशर्मी के साथ दूसरों के सामने हाथ फैलाकर ही क्यों न हासिल हो।
गौर कीजिए मजबूरी, जरूरत और परेशानी के मौकों पर भी जो मजहब इज्जत व आबरू की पासदारी का हुक्म देता हो, और सवाल करने से मना करता हो उस मजहब के पैरोकार आज बिजनेस और कारोबार के तौर पर भीख मांगने के धंधे को अख्तियार किए हुए हैं। जबकि नबी करीम (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) ऐसे लोगों के बुरे अंजाम को जिक्र करते हुए एक रिवायत मे इरशाद फरमाते हैं कि ‘‘ जो लोग बिला शदीद जरूरत महज माल व दौलत में इजाफे की खातिर सवाल करते हैं वह दरहकीकत अपनी कब्रों में अंगारे भरते हैं।’’
इरशादे नबवी हैं -‘‘ हजरत अबू हुरैरा (रजि0) से मंकूल है कि नबी करीम (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) ने इरशाद फरमाया जो शख्स लोगों से माल का मतालबा महज दौलत में इजाफे के लिए करेगा तो वह बेशक अंगारे मांगेगा चाहे कम मांगे या ज्यादा मांगे (यानी बहर सूरत उसको आखिरत में आगे के अंगारे ही मिलेंगे)।
मांगने की एक तरक्कीयाफ्ता शक्ल:- मुस्लिम मआशरे में मांगने की एक और शक्ल रायज हो गई है जिसको अख्तियार करने वाले जाहिल, बदहाल, गरीब और समाज के पिछड़े तबके से ताल्लुक रखने वाले नहीं है बल्कि उनमें से बहुत से पढ़े लिखे, खाते पीते और बाइज्जत घराने से ताल्लुक रखते हैं लेकिन फिर भी दूसरों से सवाल करने में किसी तरह की शर्म व आर महसूस नहीं करते और न ही इसको बुरा समझते हैं।
वह कौन लोग हैं?:- इससे मुराद वह लोग हैं जो शादी-ब्याह के मौके पर लड़की वालों के सामने दस्ते सवाल दराज करते हुए जहेज और तिलक का मतालबा करते हैं, लम्बी चैड़ी लिस्टे तैयार करके लड़की के बाप और भाई को थमा देते हैं और फिर बाइसरार अपने मतालबात को वसूल करने की कोशिश करते हैं। इतना ही नही, बल्कि उसी पर निकाह को मौकूफ कर दिया जाता है वरना बारात बगैर निकाह के वापस ले जाने की धमकी दी जाती है।
क्या यह सवाल करना नहीं है? क्या यह दूसरों के सामने हाथ फैलाना नहीं है? क्या ऐसे लोग खुदाई पकड़ से बच जाएंगे? हरगिज नहीं। नबी करीम (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) के मजकूरा फरमान के मुताबिक कल मैदाने महशर में ऐसे लोगों के चेहरो पर गोश्त न होगा और यह लोग चूंकि महज अपने बैंक बैलेंस मे इजाफा की खातिर लड़की वालों के सामने दस्ते सवाल फैलाते है इसलिए ऊपर नकल की गई रिवायत के मुताबिक ऐसे लोग रूपए पैसे और दीगर साज व सामान का मतालबा नहीं करते बल्कि हकीकत में अपने दामन को अंगारों से भरते हैं, अपनी नेकियों को बर्बाद करते हैं और अपनी आखिरत को बर्बाद करते हैं।
अगर मुस्लिम समाज का जायजा लिया जाए तो यह बात वाजेह हो जाएगी कि जहेज का मतालबा करने वाले गरीबी में मुब्तला नहीं होते बल्कि मालदार और खाते-पीते घरानों से उनका ताल्लुक होता है। लेकिन फिर भी दुनिया की लालच और माल व दौलत की हवस में मुब्तला होकर वह इस गुनाह और नापसंदीदा अमल को करते है। एक रिवायत में नबी करीम (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) गनी यानी मालदार शख्स के मांगने का बुरा अंजाम जिक्र करते हुए इरशाद फरमाते हैं कि वह हकीकत में दोजख की आग को मांगता है।
इरशादे नबवी है -‘‘ हजरत सहल बिन हनजलिया (रजि0) से मरवी है कि नबी करीम (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) ने फरमाया कि अगर मांगने वाला शख्स गनी है तो वह दरहकीकत अपने लिए दोजख की आग में इजाफा करता है। (मिश्कात शरीफ- अबू दाऊद)
इस हदीस के एक रावी हजरत नफीली फरमाते हैं कि दूसरी रिवायत में मजकूर है कि नबी करीम (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) से पूछा गया कि गनी यानी मालदार से मुराद कौन है? आप (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) ने फरमाया कि ‘‘गनी से मुराद वह शख्स है जिसके पास सुबह व शाम के खाने के बकदर माल व असबाब मौजूद हो।’’ एक जगह आप (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) ने यह भी इरशाद फरमाया कि ‘‘ मालदार वह शख्स है जिसके पास एक रात-दिन का तोशा मौजूदा हो।’’
गौर कीजिए! क्या जहेज मांगने वाले बिल्कुल ही गए गुजरे होते हैं या शरई तौर पर मालदार और गनी होते हैं। यकीनन वह गनी होते हैं, खुदा की नेमतों से लुत्फ अंदोज होते रहते हैं लेकिन दुनिया की हवस उनको शर्म व हया व गैरत की तमाम हदें पार करा के इस दर्जे जिल्लत व ख्वारी में मुब्तला कर देती हैं कि लड़की वालों के सामने हाथ फैलाने में उनको किसी तरह की हया और आर महसूस नहीं होती। नतीजे के तौर पर दिलों में दूरियां पैदा हो जाती हैं नफरतें जन्म लेती है, रिश्ते टूटते हैं और प्यार व मोहब्बत खत्म हो जाती है।
यह नेक काम है:- ऊपर की रिवायतों से मांगने और सवाल करने का शरई तौर पर नाजायज होना पूरी तरह वाजेह हो गया मगर इस मामले में एक ऐसी शकल भी आती है जो दरहकीकत बाइसे अज्र व सवाब है जिसको जहां तक हो सके अपनाने की कोशिश करनी चाहिए। वह यह कि इंसान खुद अपनी जात के लिए न मांगे लेकिन गरीबों, मिस्कीनों और जरूरतमंदो की तरफ अहले खैर का ध्यान खींचते हुए उनकी मदद की अपील कर और उनकी तरफ से वकील बनकर हर तरह की खिदमत के लिए अपने आप को पेश करे। यह अस्ल में मांगना नहीं है बल्कि मालदारों को नेक काम की तरफ मुतवज्जो करना है।
यह सवाल करना नहीं है बल्कि अल्लाह के बंदो को सदकात व खैरात की तलकीन करना है। यह हाथ फैलाना नहीं है बल्कि भूकों और हाजमंदो के फैले हुए हाथों को भरने की एक मुबारक कोशिश है जिसको खुद नबी करीम (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) अंजाम देते रहे, खुसूसी और आम मजलिसों में सदका व खैरात की अपील फरमाते रहे और भूकों, नंगो के तआवुन का हुक्म देते रहे। इसलिए एक रिवायत में है कि एक दिन नबी करीम (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) के दरबार में कबीला-ए-मुजिर के कुछ ऐसे लोग पहुंचे कि जिनके जिस्मों पर लिबास भी बहुत कम था और चेहरो पर फाका के आसार नुमायां थे।
आप (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) उनकी हालत देखकर परेशान हो उठे, घर में तशरीफ ले गए और कुछ ही देर में खाली हाथ वापस आ गए क्योंकि आप (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) के घर में भी कुछ न था। आप (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) ने सहाबा से सदका की अपील की। कुछ ही देर में मस्जिदे नबवी में खाने-पीने की चीजों और कपड़ों के ढेर लग गए। जिसको आप (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) ने जरूरतमंदो में तकसीम फरमा दिया।
(मुस्लिम मिश्कात शरीफ) गरज कि दीन के कामों के लिए कुरआन व हदीस की तालीम को आम करने के लिए और इसी तरह गरीबों और हाजतमंदो की मदद की गरज से अगर मालदार लोगों से तआवुन की अपील की जाए तो यह एक नेक काम है जिसकी बिना पर तवज्जो दिलाने वाला भी उतने ही अज्र व सवाब का मुस्तहक होगा जितने कि अज्र व सवाब का मुस्तहक सदका व खैरता करने वाला होगा।
इरशादे नबवी है -‘‘ खैरात की तरफ रहनुमाई करने वाले को भी नेक काम अंजाम देने वाले के बराबर ही अज्र व सवाब मिलेगा।
मालदारों की जिम्मेदारी:- इस्लाम अगर एक तरफ सवाल करने और गैरों के सामने हाथ फैलाने से मना करता है तो दूसरी तरफ मालदार लोगों को भी इस बात का पाबंद करता है कि वह खुद से भी अपने आसपास रहने वाले लोगों की खबरगीरी करते दे रहे, उनके हालात मालूम करते रहे और हस्बे हैसियत खामोशी के साथ उनकी मदद करते रहे, ऐसा न हो कि वह तो सवाल से बचे मगर कोई उनकी फिक्र न करे और वह मुसीबतों और परेशानियों का शिकार हो ते रहें।
इसलिए एक आयत में अल्लाह तआला ऐसे लोगों की तरफ खासतौर से ध्यान देने का हुक्म देता है जो दीन के काम मे मसरूफ रहते हैं और अपने आप को दुनियावी कामों से दूर रखते हैं या दुनियावी काम काज में मसरूफ होने का वक्त ही नहीं मिलता और न वह अपनी जरूरियात के लिए किसी से सवाल करते हैं। हां चेहरे से उनको पहचाना जा सकता है। ऐसे लोगों का अपने तौर पर तआवुन करते रहना चाहिए।
अल्लाह का इरशाद है -‘‘ सदका व खैरात उन फकीरों के लिए है जो रूके हुए हैं अल्लाह की राह में (दीन की खिदमत में लगे हुए हैं) वह जमीन पर चल फिर नहीं सकते नावाकिफ उनको मालदार समझता है उनके सवाल न करने की वजह से आप उनको उनके चेहरे से पहचान सकते हैं।’’ अल्लाह तआला हम सबको सही नीयत के साथ दीन की खिदमत करने और हाजतमंदो का तआवुन करने की तौफीक अता फरमाए और मांगने की बुरी लानत से उम्मत की हिफाजत फरमाए- आमीन।
————-बशुक्रिया: जदीद मरकज़