एक मदरसा ऐसा भी जहां औरतों को मुफ्ती बनाया जा रहा है

हैदराबाद में एक मदरसा ऐसा भी है जहां औरतों को मुफ्ती बनने की ट्रेनिंग दी जाती है। हैदराबाद के मोगलपुरा इलाके में ये छोटा सा मदरसा और मदरसों से इसलिये अलग है क्योंकि यहां दीनी मामलों से लेकर फतवे तक का इल्म मुस्लिम महिलाओं को दिया जाता है। हिंदुस्तान में आमतौर पर मदरसों में मुफ्ती आलिम बनने का सिलसिला मर्दो से ही चला आया है लेकिन जमायतुल- मोमिनाथ नाम का ये मदरसा छोटी ही सही लेकिन एक नई लकीर खींचने की कोशिश कर रहा है।

इस मदरसे की नींव रखने वाले हाफिज मस्तान अली का कहना है कि हमने 12 साल पहले इस मदरसे की शुरुआत इस मकसद से की थी हम मुस्लिम समाज को ऐसी महिला दे दें जो दीनी मसलों का फैसले के लिये किसी पुरुष मुफ्ती या आलीम की मदद नहीं लेनी पड़े। वो इतनी खुद-मुख्तार हो जायें कि दीनों मामलों में इस्लाम शरियत की रोशनी में खुद ही फैसला लेने की सलाहियत रखती हों।

ऐसा देखा जाता है कि इस्लामी मसलों में फतवा मर्दो की जमात से ही निकलता है। इस्लाम की नजर में फतवा के मायने एक राय जो इस्लामिक शरियत और कुरआन को मद्देनजर रखते हुए दिया जाता है। उत्तर प्रदेश का दारुल उलूम देवबंद फतवों का पाठ्यक्रम चलाता है जिसमें आमतौर ,शादी, मासिक धर्म, तलाक, गोद लेने, संपत्ति के मुद्दों सहित से जुड़े मसलों के सही राह इस्लाम रोशनी में पढ़ाई जाती है ,लेकिन ये तालिम ज्यादातर मर्दो तक ही महदूद है।

हाफिज मस्तान अली का कहना महिलाएं अक्सर मुफ्ती के सामने इन मसलों को पेश करने से हिचकती है और वो खुल कर अपनी बात नहीं कह पाती। लेकिन महिला मुफ्ती के सामने उनकी हिचक दूर हो जायेंगी अपनी आवाज खुलकर बेझिझक रख सकती है। हमारे मदरसे की बस यही कोशिश है कि मुफ्ती आलिम की नुमाइंदगी में महिलाओं की भी जगह हों।1991 में तामिर हुए इस मदरसे में आज की तारिख में 2500 तालिबे-इल्म हैं। जमायतूल-मोमनाथ मदरसा अबतक 318 महिला मुफ्ती बना चुका है।

सुरैया शकील खान भी इसी मदरसे से मुफ्तिया बनने की ट्रेनिंग ले रही है। वह कहती है कि मुफ्तिया बनकर महिलाओं की मदद करना चाहती हूं। उन्होंने कहा, मैं मजहब से जुड़ी बातों में लोगों को रास्ता दिखाना चाहती हूं। एक अन्य छात्रा खादिजा फातिमा को लगता है मुफ्तिया बनने के बाद उन्हें समाज में इज्जत मिलेगी।