जुमे की नमाज़ के लिए एथेंस के मुसलमानों को ज़ेर ए ज़मीन और खचाखच भरे इबादतगाहों में जमा होना पड़ता है। एथेंस इस्लामी दुनिया से लगी यूरोपीय मुत्तहदा की इकलौती ऐसी दार उल हुकूमत है, जहां मुसलमानों की आबादी तकरीबन तीन लाख होने के बावज़ूद एक भी मस्जिद नहीं है। जुगाड़ सरीखे इंतज़ाम इस शहर में गैरकानूनी हैं।
1832 में ऑटोमन सलतनत से आज़ादी मिलने के बाद से ही किसी भी हुकूमत ने शहर में मस्जिद बनाने की इजाज़त नहीं दी है।
एक ऐसे मुल्क में जहां 90 फीसदी आबादी रवायती ईसाइयों की हो, वहां बहुत से लोग इसे गैर-यूनानी मानते हैं।
लेकिन, चूंकि यूनान मुसलमानों के लिये यूरोपीय मुत्तहदा का दरवाज़ा रहा है इसलिए यहां मुसलमानों की आबादी बढ़ गई है। आबादी बढ़ने के साथ ही मुसलमान एक इबादतगाह के लिए अपनी मांग जोर-शोर से रखने लगे हैं।
पाकिस्तान-हेलेनिक सोसायटी के सैयद मोहम्मद जमील कहते हैं, “यह मुसलमानों के लिये किसी सानिहा की तरह है कि यहां एक भी मस्जिद नहीं है”।
वह कहते हैं, “यूनान ने दुनिया को जम्हूरीयत, तहज़ीब और मज़हबो को इज़्ज़त देने का खयाल दिया लेकिन वे हमारे मुसलमानों की एक बाकायदा और कानूनी मस्जिद की जरूरत की इज्जत नहीं करते”।
जुमे की नमाज़ पढ़ने वाला एक मुसलमान कहता है, “मालूम नहीं क्यों पर मैं मुआशरा से कटा हुआ महसूस करता हूँ। जब भी हमारा कोई जश्न या त्योहार होता है, तो ऐसी कोई जगह नहीं होती जहाँ हम ठीक से जमा हो सकें। मआशरा हमें कुबूल नहीं कर रहा है।”
नव फासीवादी गोल्डन डॉन पार्टी के उरूज़ के साथ ही हुकुमत पर एक महफूज़ मस्जिद मुहैया कराने के लिये दबाव बढ़ा है। साथ ही इसके सदस्यों पर ज़ेर ए ज़मीन इबादतगाहों को बरबाद करने और तारकीन ए वतन को जद ओ कूब ( मारने पीटने) का इल्ज़ाम लगा है।
पार्टी के रिप्रेंजटेटिव ल्यास पानागियोटैरोस ने साल की शुरुआत में कहा था कि तुर्की से सटी यूनान की सरहद पर बारूदी सुरंग बिछा दी जानी चाहिए, अगर तारकीन ए वतन उनके मुल्क में घुसने की कोशिश के दौरान मारे जाते हैं तो यह उनकी मसला है।
लेकिन शायद अब मस्जिद की मांग का हल किए जाने का वक्त आ गया है। दार उल हुकूमत की पहली मस्जिद के तौर पर शहर के करीब फौज की एक ऐसी बैरक को चुना गया है जो अब इस्तेमाल में नहीं है। यहां 500 लोग नमाज़ के लिए बैठ सकेंगे।
अगर यह मस्जिद बन जाती है तो इसके पास एक चर्च भी होगा, जहां दोनों मजहबों के लोग एक साथ इबादत कर सकेंगे।
हुकूमत की कोशिश है कि इस मुहिम को अमल में लाया जाए लेकिन बीते हुए वक़्त में इस तरह के वादे सियासी वजहों से पूरे नहीं किए जा सके।
ऐसे वक्त में जब मुल्क की माली हालत ठीक नहीं हो और तालीम व सेहत के लिये रकम जुटाना मुश्किल लग रहा हो, सरकारी खज़ाने से 10 लाख यूरो की लागत से मस्जिद बनाने की बात मुश्किल है।
यूनान के चर्च ने मस्जिद बनाने के ख्याल का खैरमकदम किया है लेकिन कुछ हलकों से मुखालिफत की आवाज़ें भी उठी हैं।
ग्रीक के बिशप ने कहा है, “यूनान पांच सौ सालों तक तुर्की के निज़ाम के तहत मुसलमानों के कब्जे में रहा है। मस्जिद बनाने से हमें आज़ादी दिलाने वाले शहीदों की तौहीन होगी”।