एक मुसलिम स्कूल में वैलनटाइन डे का एहतिमाम

तमाम वालदैन की ख़ाहिश होती है कि अपने नौनिहालों को अच्छे से अच्छे तालीमी इदारे में तालीम दिलवाईं और उन की बेहतर तर्बीयत पर तवज्जा दें । लेकिन जब मुस्लिम इंतिज़ामीया वाले तालीमी इदारे भी बच्चों में बिगाड़ की बुनियादें डालना शुरू करदें तो फिर वालदैन किन तालीमी इदारों पर भरोसा करें । दोनों शहरों हैदराबाद-ओ-सिकंदराबाद के मारूफ़ मुस्लिम इंतिज़ामीया वाले एक स्कूल में आज नर्सरी के बच्चों को भी वैलनटाइन डे के मुताल्लिक़ समझाया गया और बताया गया कि 14 फ़बरोरी को यौम-ए-हुब है । मुहब्बत के फ़रोग़ के नाम पर नर्सरी और पी पी 1 और पी पी 2 के मासूम लड़के-ओ-लड़कीयों को तक स्कूल इंतिज़ामीया ने दिल के नक़्शे पर Happy Valentine Day तहरीर क्या हुआ बयाच सिना पर लगाया गया ।

स्कूल इंतिज़ामीया की जानिब से की गई इस हरकत से ये अंदाज़ा होता है कि स्कूल इंतिज़ामीया ख़ुद बच्चों में वैलनटाइन डे नामी नासूर को फ़रोग़ देने की कोशिश में मसरूफ़ हैं । वैलनटाइन डे से क़बल कई तंज़ीमों के सरबराहों और उल्मा-ओ-मशाइख़ीन-ओ-अमाइदीन मिल्लत की जानिब से इस लानत के ख़ातमा केलिए बारहा अपीलें की गई लेकिन शायद इस स्कूल के इंतिज़ामीया पर कोई असर उन अपीलों का नहीं हुआ और स्कूल इंतिज़ामीया ने बच्चों को वैलनटाइन डे मनाने की तरग़ीब दी है । वैलनटाइन डे जिस से बेहयाई को फ़रोग़ हासिल होरहा है अगर उसे तालीम के बुनियादी दूर से ही रखा जाने लगे तो वो दिन दूर नहीं कि आइन्दा नसल बिलकुल्लिया तौर पर अख़लाक़ीयात से आरी होगी । इस स्कूल इंतिज़ामीया के मुतअल्लिक़ बारहा इस बात की शिकायत मौसूल होती रही है कि ये स्कूल इंतिज़ामीया दुसहरा-ओ-दीवाली जैसे तहवार पर भी तहवार मनाने के तरीका-ए-कार से बच्चों को वाक़िफ़ करवाता है ।

जिस स्कूल की हम यहां बात कररहे हैं वो शहर के इन चुनिंदा स्कूलों में शामिल है जहां पर मयारी तालीम फ़राहम की जाती है । इलावा अज़ीं इस स्कूल की एक ख़ुसूसीयत ये भी है कि इस स्कूल में बेशतर सियासतदानों बिलख़सूस मुस्लिम सियासतदानों के नौनिहाल भी तालीम हासिल कररहे हैं । अगर इन नौनिहालों के मुस्तक़बिल को बेहतर बनाना है तो इस तरह के इंतिज़ामीया के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाना तमाम वालदैन को अपनी ज़िम्मेदारी तसव्वुर करनी चाहीए क्योंकि ये मिसल मशहूर है कि बचपन में दी जाने वाली तालीम बच्चों के ज़हन पर पत्थर की लकीर की तरह नक़्श होती है और जब बच्चों को 14फ़बरोरी यौमे आशिक़ां या यौम अलहुब के नाम से सिखाया जाने लगे तो मुस्तक़बिल क़रीब में ये बच्चे उसे बाज़ाबता एक तेहवार के तौर पर मनाने का सिलसिला शुरू करसकते हैं ।

उमूमन ख़ानदान के बुज़ुर्ग ये बात कहते रहते हैं कि बचपन से ही सही तर्बीयत देने पर बच्चे बड़े होकर बेहतरीन अख़लाक़-ओ-किरदार के मालिक साबित होते हैं । अगर बड़े होने के बाद उन पर ज़्यादा रोक टोक की कोशिश की जाय तो वो बाग़ी बन सकते हैं । इसी लिए उन्हें बचपन में ही अच्छे और बुरे की तमीज़ सिखानी चाहीए लेकिन इस तरह के स्कूलस जहां पर नर्सरी में तालीम के नाम पर बच्चों को यौम अलहुब समझाने की कोशिश की जा रही है वो मुहज़्ज़ब समाज को बग़ावत की दावत दे रहे हैं । इस के इलावा भी बाअज़ स्कूलस के मुताल्लिक़ इस तरह की शिकायात मौसूल हुई हैं कि स्कूलस में असातिज़ा की निगरानी में तलबा ने यौम अलहुब के तोहफ़ा-ओ-तहाइफ़ पेश किए हैं ।

लेकिन इस स्कूल में तो इंतिज़ामीया की निगरानी में मनाए गए यौम अलहुब ने मुहज़्ज़ब मु आशरे बिलख़सूस उन लोगों को चयालनज किया है जो यौम आशिक़ां के ख़िलाफ़ सरगर्म रहते हुए यौम आशिक़ां से होने वाली बुराईयों को रोकने में मसरूफ़ हैं । वैलनटाइन डे के ख़िलाफ़ तहरीक के नतीजा में बेशतर मुक़ामात पर जोड़े नज़र नहीं आए या फिर उन की तादाद कम होगई लेकिन स्कूल में मनाए गए वैलनटाइन डे तक़रीब से कम अज़ कम स्कूल से वैलनटाइन डे के तोहफ़ा के तौर पर बयाच लेकर घर पहुंचने वाले वालदैन की नींदें ज़रूर उड़गई होंगी जिन्हों ने अपने बच्चों के बेहतर मुस्तक़बिल केलिए मेयारी इदारे का इंतिख़ाब करते हुए उन्हें इस स्कूल में शरीक किराया था ।