रियासत में इम्पलाइमेन्ट ऐक्सचेंज (दफ़ातिर रोज़गार) अब बराए नाम रह गए हैं। अगरचे दफ़ातिर रोज़गार में 18 लाख नौजवानों ने हुसूल रोज़गार के लिए अपने नाम दर्ज कर रहे हैं लेकिन साल 2011-12 में रियासत में अवामी और ख़ानगी शोबा में सिर्फ 726 अफ़राद ने दफ़ातिर रोज़गार की मदद से मुलाज़मत हासिल की है।साबिक़ में ख़सूस कर अवामी शोबा में हुसूल रोज़गार के लिए दफ़ातिर रोज़गार अहम ज़रीया थे। अब तो बहुत से तालीम-ए-याफ़ता नौजवानों ने अपने नाम दफ़ातिर रोज़गार में दर्ज भी नहीं कर रहे हैं।
नौजवानों में इस वक़्त दूसरे तरीक़ों से हुसूल रोज़गार का रुजहान है। इन में डायरेक्टर केम्पस और आउट सोर्स रिक्रूटमेंट शामिल हैं। डायरेक्टर रोज़गार-ओ-ट्रेनिंग शशी भूषण कुमार ने कहा कि हर साल हज़ारहा अफ़राद को ख़ानगी इदारों में रोज़गार हासिल हो रहा है लेकिन दफ़ातिर रोज़गार में इन का कोई रिकार्ड नहीं है क्योंकि बेशतर आजरीन ख़ाली जायदादों की इत्तिला देने के लज़ूम से मुताल्लिक़ क़ानून इम्पलाइमैंट ऐक्सचेंज 1959 की पाबंदी नहीं कर रहे हैं। उन्हों ने कहा कि महकमा रोज़गार-ओ-ट्रेनिंग दफ़ातिर रोज़गार की पहले की इफ़ादीयत-ओ-एहमीयत बहाल करने का मंसूबा बना रहा है।
इस मक़सद से आजरीन में क़ानून की पाबंदी की एहमीयत उजागर की जाएगी और दफ़ातिर रोज़गार को इंसानी वसाइल के फ़रोग़ के मराकज़ की हैसियत से तरक़्क़ी दी जाएगी और उन दफ़ातिर में कैरियर कौंसलिंग और गईडेन्स सेल क़ायम किए जाऐंगे।