एतेदाल से आगे ना बढ़ो

और तुम ना बुरा भला कहो उन्हें जिनकी ये परसतिश करते हैं अल्लाह के सिवा (ऐसा ना हो) कि वो भी बुरा भला कहने लगें अल्लाह को ज़्यादती करते हुए जहालत से। यूं ही आरास्ता कर दिया है हम ने हर उम्मत के लिए इनका अमल फिर अपने रब की तरफ़ ही लौट कर आना है उन्हें, फिर वो उन्हें बताएगा जो वो किया करते थे। (सूरतुलअनाम: १०९)

मुबल्लिग़ अगर सही तर्बीयत याफ़ता ना हो तो अपने नज़रियात और अक़ाइद की तब्लीग़-ओ-इशाअत के जोश में वो हद एतेदाल से तजावुज़ कर जाता है और माक़ूलीयत का दामन उसके हाथ से छूट जाता है और इसका नतीजा ये होता है कि उसके नज़रियात और अक़ाइद के मुताल्लिक़ उसके सामईन के दिलों में नफ़रत और तास्सुब पैदा हो जाता है और बसाऔक़ात नौबत गाली गलौज तक पहुंच जाती है। इस आयत से मुबल्लग़ीन इस्लाम की तर्बीयत मक़सूद है, ताकि वो इस्लाम की दावत को पूरी शाइस्तगी और मतानत से पहुंचाने के लिए तैयार हो जाएं। उन्हें हुक्म दिया कि मुशरिकीन के बातिल खुदाओं को बुरा भला ना कहो, कहीं ऐसा ना हो कि वो मुश्तइल होकर तुम्हारे माबूद बरहक़ की जनाब में गुस्ताख़ी करने लगें।

इस अंदाज़ से उन्हें इस्लाम का पैग़ाम पहुँचाओ और उनके अक़ाइद बातिला की तरदीद करो कि उन्हें तुम्हारी दावत कुबूल किए बगै़र कोई चारा-ए-कार ही ना रहे। उलमाए उसूल ने इस आयत से सद ज़राए का क़ायदा अख़ज़ किया है, जिसका मुख़्तसरन मतलब ये है कि हर मुबाह काम जब किसी मासियत का सबब बन जाये तो उसको तर्क कर दिया जाएगा।