एन सी टी सी का नफ़ाज़ मुश्किल

हिंदूस्तान में जैसे जैसे मौसम तब्दील हो रहा है मुल़्क की रियास्तों के हुकमरानों के तीव्र भी बदल रहे हैं । क़ौमी सलामती का मसला हो या दहश्तगर्दी ,बुनियाद परस्ती और इंतेहापसंदी से निमटने क़ौमी इन्सेदाद-ए-दहशत गर्दी सेंटर के क़ियाम के लिए मर्कज़ी यू पी ए हुकूमत की ज़द का मुआमला इस पर अपोज़ीशन पार्टीयां पहले ही मुख़ालिफ़ एन सी टी सी आवाज़ बुलंद कर चुकी हैं । अब इस मौज़ू की कान्फ्रेंस में हुक्मराँ पार्टी कांग्रेस के रियास्ती चीफ़ मिनिस़्टरों ने भी एतराज़ किया है । मुल्क में दाख़िली सलामती का मसला संगीन होता जा रहा है ।

माविस्टों की कार्यवाईयों , इंतेहापसंद अनासिर की सरगर्मीयों ने आम शहरीयों के इलावा बैरूनी मुल्क के सय्याहों का आज़ादाना घूमना फिरना भी एक नाज़ुक सूरत इख्तेयार कर गया । ओडीशा में हालिया इटली के बाशिंदों के अग़वा के मुआमले ने इन्सेदाद-ए-दहशत गर्दी सेंटर की इफ़ादीयत में क़ौमी सतह पर मज़ीद इज़ाफ़ा होने का इज़हार किया जा रहा है लेकिन रियास्ती हुकूमतों ने एन सी टी सी को वफ़ाक़ी ढांचा के लिए ख़तरा और रियास्तों के हुक़ूक़ को सल्ब करने के मुतरादिफ़ क़रार दे कर इस तजवीज़ की परज़ोर मुख़ालिफ़त की ।

वज़ीर-ए-आज़म मनमोहन सिंह ने क़ौमी इन्सेदाद-ए-दहशत गर्दी मर्कज़ की मुख़ालिफ़त करने वालों को भरोसा दिलाने की कोशिश की कि वफ़ाक़ी इख़्तेयारात की हामिल अथॉरीटीज़ हो या क़ौमी सतह के ज़िम्मेदार इदारे क़ौमी दाख़िली सलामती के मसला पर मिल जल कर काम करेंगे । बिलाशुबा रियास्ती-ओ-क़ौमी मसाएल ख़ासकर सलामती के चैलेंज्स को मर्कज़ रियास्तों की जानिब से बाहमी तआवुन से मुक़ाबला करने में भी कामयाबी मिलेगी । लेकिन रियास्ती चीफ़ मिनिस़्टरों ने इस क़ानून के जिन शिकायत पर एतराज़ किया है इस में तरमीम के लिए मर्कज़ी हुकूमत दबाव का शिकार होती है तो फिर आगे चल कर इस क़ानून की भी अमल आवरी और इसके बेहतर नताइज की तवक़्क़ो नहीं की जा सकती ।

इसमें दो राय नहीं कि दहश्तगर्दी , इंतेहापसंदी के मसला पर मर्कज़ और रियास्तों का नज़रिया दो तरफ़ा नहीं हो सकता जहां तक हालात से सबक़ सीखने का सवाल है इस पर दोनों मर्कज़ और रियास्तें इस सूरत-ए-हाल से दरस हासिल करने आमादा नज़र नहीं आते । रियास्तों का ख़्याल वही पुरानी सोच के दायरा में घूम रहा है तो मर्कज़ अपनी आदत की तक़लीद को ही शान समझता है ।

अगर अहम मसाएल पर क़ौमी , वफ़ाक़ी अथॉरीटीज़ तू तू , मैं मैं के ज़रीया एन सी टी सी के मसला को मुअल्लक़ रखेंगे तो क़ौमी-ओ-दाख़िली सलामती का मसला आगे चल कर ख़तरनाक सूरत-ए-हाल पैदा कर देगा । ओडीशा में माविस्टों की कार्यवाहीयां हो या आसाम-ओ-शुमाल मशरिक़ी रियास्तों में इंतेहापसंदी के वाक़्यात , बाएं बाज़ू की इंतेहापसंदी से लेकर वादी कश्मीर की दहश्तगर्दी का मसला क़ौमी सतह पर मुनक़सिम राय पैदा होजाए तो ये अफ़सोसनाक है ।

क़ौमी सलामती के मौज़ू पर मुनाक़िदा एन सी टी सी की कान्फ़्रैंस में वज़ीर-ए-आज़म मनमोहन सिंह और वज़ीर-ए-दाख़िला पी चिदम़्बरम ने रियास्ती चीफ़ मिनिस़्टरों के एतराज़ात और मुख़ालफ़तों का नोट लेने की कोशिश की मगर ओडीशा , गुजरात और पंजाब के इलावा दीगर रियास्तों के चीफ़ मिनिस़्टरों की राय और एतराज़ात को मल्हूज़ रखा जाय तो मर्कज़ अपने मक़सद में कामयाब नहीं होगा । इन चीफ़ मिनिस़्टरों की अहम शिकायत ये है कि मर्कज़ ने इस क़ानून का मुसव्वदा तैयार करने से क़ब्ल उन से मुशावरत नहीं की । सवाल ये नहीं है कि क़ौमी-ओ-दाख़िली सलामती का मसला मर्कज़ की रवादारी के साथ इलाक़ाई हुकूमतों का भी मुआमला होता है इस पर मुशावरत ज़रूरी थी ।

सवाल ये है कि आया इस क़ानून के नाफ़िज़ उल-अमल होने के बाद रियास्ती हुकूमतें इस क़ानून की रूह के मुताबिक़ अपनी कारकर्दगी से इंसाफ़ कर सकेंगी । रियास्तों के हुक़ूक़ और इख़्तेयारात को नजर अंदाज़ करके मर्कज़ भी अपना मनमानी मंसूबा रूबा अमल लाने में कामयाब नहीं हो सकेगा । रियास्तों में ला ऐंड आर्डर की बरक़रारी , दाख़िली सलामती और फ़िर्कावाराना हम आहंगी पर तवज्जा देना रियास्तों का काम है । इस तरह के अहम मौज़ूआत के लिए भारी भरकम फंड्स भी ज़रूरी होते हैं ।

अब इन्सेदाद-ए-दहशत गर्दी सेंटर के मसला पर मर्कज़ और रियास्तों की कारकर्दगी पर आने वाली रक़ूमात का भी एक तनाज़ा पैदा होगा । जब कि यू पी के चीफ़ मिनिस्टर अखिलेश यादव ने ज़ोर दिया था कि यू पी जैसी बड़ी रियासत में दाख़िली सलामती , फ़िर्कावाराना हम आहंगी की बरक़रारी ला ऐंड आर्डर के मसला से निमटने केलिए मौजूदा 100 करोड़ रुपये फ़ंड के बजाय 800 करोड़ रुपये की ज़रूरत होगी तो दीगर रियास्तों की भी ज़रूरत इस के आस पास हो सकती है । आया इस मौज़ू पर मर्कज़ का मौक़िफ़ मुवाफ़िक़ रियास्ती हुकूमत होगा ? इस पर ग़ौर ज़रूरी है ।

दहश्तगर्दी के मसला पर मर्कज़ी एजेंसीयां और रियास्ती पुलिस फ़ोर्स के दरमयान ताल मेल का फ़ुक़दान हो तो फिर दहश्तगर्दी से निमटने में कामयाबी किस तरह मिलेगी । वैसे वज़ीर-ए-दाख़िला चिदम़्बरम ने कहा कि 2011 से दहश्तगर्दी के वाक़्यात में कमी आई है लेकिन बाएं बाज़ू की इंतेहापसंदी सब से ज़्यादा ख़तरा है । आसाम में बढ़ती हुई इंतेहापसंद सरगर्मीयां नए ख़तरात पैदा कर रही हैं । इस लिए मर्कज़ और रियास्तों को बाहमी तौर पर मुशावरत के ज़रीया एन सी टी सी के ताल्लुक़ से पाई जाने वाली इख्तेलाफ़ को दूर किया जा सकता है वर्ना एन सी टी सी का नफ़ाज़ मुश्किल होगा ।