एफ डी आई से मुस्लमानों के मुतास्सिर होने का ख़तरा नहीं

हैदराबाद।5 दिसंबर (सियासत न्यूज़) सयासी क़ाइदीन और दानिश्वरों को अक्सर ये शिकायत रहती है कि मुल्क को दरपेश अहम मसाइल पर भी मुस्लमान अपनी ख़ामोशी नहीं तोड़ते। एसा लगता है कि उन्हें किसी से कोई सरोकार नहीं है। चिल्लर फ़रोशी के शोबा में 51 फीसद बैरूनी रास्त सरमाया कारी की तजवीज़ पर मुल्क भर में बहस-ओ-मुबाहिस होरहे हैं मगर इस मसला में भी मुस्लमानों ने अपने मौक़िफ़ का इज़हार नहीं किया है और यही बात बहुत से लोगों को खटक रही है।

बहुत से मसाइल जिन पर सयासी पार्टियां बड़े ज़ोर-ओ-शोर का मुज़ाहरा करती हैं और मुल्क के मुतफ़क्किर हज़रात उन मसाइल के हुस्न-ओ-क़बीह की तारीफ़ें करने में अपना वक़्त सर्फ़ (खर्च) करते हैं मगर मुस्लिम बिरादरी की जानिब से कोई रद्द-ए-अमल ज़ाहिर नहीं होता उस की अहम वजह ये है कि मुस्लमानों का तर्ज़े मुआशरत-ओ-ग़िज़ाई-ओ-रहन सहन की आदतें दीगर अब्ना-ए-वतन से बहुत मुख़्तलिफ़होती हैं। चिल्लर फ़रोशी के शोबा में रास्त बैरूनी सरमाया कारी की तजवीज़ पर भी मुस्लमान लाताल्लुक़ बन बैठे हैं चूँकि इस मसला का भी उन पर बड़ी हद तक रास्त असर पड़ने वाला नहीं है।

बिलफ़र्ज़ यु पी ए हुकूमत चिल्लर फ़रोशी के शोबा में 51 फीसद रास्तबैरूनी सरमाया कारी की इजाज़त दे भी देती है तो इस का असर समाज के मुख़्तलिफ़ तबक़ात पर ज़रूर पड़ेगा मगर मुस्लिम बिरादरी इस से ज़्यादा मुतास्सिर होने वाली नहीं है बल्कि एक सारिफ़ की हैसियत से इस का फ़ायदा ही होगा। मुख़्तलिफ़ शोबा जात में रास्तबैरूनी सरमाया कारी के दरवाज़े खोल देने पर मुल्क में कभी इतना हंगामा नहीं हुआ जितना चिल्लर फ़रोशी के शोबा के लिए भी रास्त बैरूनी सरमाया कारी के दरवाज़े खोल देने पर होरहा है। अपोज़ीशन जमाअतें बड़े ज़ोर-ओ-शोर से इस तजवीज़ की मुख़ालिफ़त कररही हैंहत्ता कि कांग्रेस की हिमायती जमाअतें भी इस मसला पर कांग्रेस कव्वे का-ओ-तन्हा कर रखी हैं।

मुस्लमानों के इस मसला से लाताल्लुक़ रहने की असल वजह ये है कि इसतजवीज़ पर अमल दरआमद होने के बाद भी मुस्लिम बिरादरी ज़्यादा मुतास्सिर नहीं होगी चूँकि इस शोबा में भी मुस्लमानों का तनासुब बहुत ही कम है और नतीजतन उन पर मनफ़ी असर भी कम होगा। इलावा अज़ीं मुस्लमानों के खरीद-ओ-फ़रोख़त का रुजहान औरग़िज़ाई आदतें भी दूसरों से मुख़्तलिफ़ हैं। इस तजवीज़ से जहां एक मख़सूस बिरादरी जो कारोबार से जुड़ी है वो बहुत ज़्यादा मुतास्सिर होने वाली है चूँकि इस शोबा पर इस का एक एतबार से क़बज़ा है। बैरूनी रास्त सरमाया कारी के नतीजा में उन के कारोबार पर कारीज़रब पड़ेगी चूँकि चिल्लर फ़रोशों को माल मुहय्या करने का ठेका इसी मख़सूस बिरादरी के पास है।

चिल्लर फ़रोशी के शोबा में जब मल्टीनेशनल कंपनियां उतरेंगी तो वो थोक डीलर्स से माल की खरीदारी की बजाय अपने चयन बिज़नस के लिए पैदा कुनुन्दगान से रास्त तौर पर माल खरीदने लगेंगी जिस से उन्हें दरमियानी नफ़ा ख़ोरी से छुटकारा मिल जाएगा और इस का फ़ायदा एसी कंपनियां इबतदा-ए-में अपने सारफ़ीन को मुंतक़िल करने लगेंगी। जब चिल्लर फ़रोशी के शोबा में बड़ी बड़ी कंपनियां मैदान में होंगी तो वो एक दूसरे मुसाबक़त में कई एशिया-ए-पर रियायतों की पेशकशें करने लगेंगी जिस का रास्त फ़ायदा सारफ़ीन को होगा। इस तरह मुस्लमान बह हैसियत सारफ़ीन इस मुसाबक़त से फ़ायदा उठाने वाले होंगे।

जहां तक मल्टीनेशनल कंपनियों के सोपर मार्किट स्टोरस के क़ियाम के बाइस चिल्लर फ़रोशों के बेरोज़गार होजाने का ताल्लुक़ है इस की ज़द में मुस्लिम चिल्लर फ़रोश नहीं आएंगे चूँकि मुस्लमान उमूमन सोपर मार्किट स्टोर से खरीदी करने का रुजहान नहीं रखते हैं। मुस्लिम बस्तियों जैसे पुराने शहर में मल्टीनेशनल कंपनियां करोड़ों रुपय की सरमायाकारी करने का ख़तरा मोल नहीं लेंगी। मल्टीनेशनल कंपनियां सरमाया कारी करने से क़बलसर्वे करती हैं और उन्हें अपने कारोबार चलने का कामिल यक़ीन हो तब ही वो क़दम आगे बढ़ाती हैं। खरीद-ओ-फ़रोख़त का जहां तक ताल्लुक़ है मुस्लमानों का रुजहान दीगर अब्ना-ए-वतन से कुछ मुख़्तलिफ़ है।

मुस्लमान रात देर गए तक खरीदी करने के आदी हैं जबकि सोपर मार्किटस रात 9:00 बंद होजाती हैं। इसी तरह वो तरकारियां यह तो अपने घरों के पास खरीदते हैं यह फिर तरकारी की मंडी जाकर अपने पसंद की खरीदारी करते हैं। उन्हें स्टोर पर रखी हुई कोल्ड असटोरेज की तरकारियां नहीं भाती हैं। इलावा अज़ीं मुस्लमान हलाल-ओ-हराम मसला के बाइस बहुत सी एशिया-ए-इस्तिमाल नहीं करते जो दूसरी अक़्वाम इस्तिमाल करती हैं। इस लिए मुस्लिम बस्तियों में क़ायम किए जाने वाले सुपर मार्किटस में इसी बहुत सी एशिया-ए-नहीं रखी जा सकती जिन की बिक्री में ख़ूब नफ़ा होता है। यही वजह है कि मुल़्क की बहुत सी बड़ी कंपनियां जो रीटेल शोबा में पहले से ही क़दम रख चुकी हैं हनूज़ मुस्लिम बस्तियों का रुख नहीं किया है चूँकि उन्हें ये ख़दशा है कि इन का कारोबार वैसा नहीं चलेगा जैसे दीगर बस्तियों में चलता है।