एम पीज़‍ ओ‍ एम एल एज़ को ना अहल क़रार देने से इनकार

नई दिल्ली, 05 जनवरी: ( पीटीआई ) सुप्रीम कोर्ट ने ख़वातीन के ख़िलाफ़ मज़ालिम के ख़िलाफ़ मुक़द्दमात में चार्च शीट पेश किए गए अरकान ए पार्लीयामेंट और अरकान ए असेंबली को नाअहल क़रार देने की दरख़ास्त पर समाअत करने से इनकार कर दिया ताहम इस बात से इत्तिफ़ाक़ किया कि वो इस्मतरेज़ि के मुक़द्दमात और ख़वातीन के तहफ़्फ़ुज़-ओ-सलामती से मुताल्लिक़ क़वानीन पर अमल आवरी के लिए फ़ास्ट ट्रैक अदालतों के क़ियाम का जायज़ा लेने तैयार है ।

सुप्रीम कोर्ट में 16 दिसंबर को दिल्ली में हुई इजतिमाई इस्मतरेज़ि के वाक़िया के बाद दायर करदा मफ़ाद-ए-आम्मा की दो दरख़ास्तों की समाअत की जा रही थी । अदालत ने कहा कि वो सिर्फ़ हुकूमत को महिदूद मसाइल पर नोटिस जारी कर सकती है क्योंकि दरख़ास्तों में वो मसाइल उठाए गए हैं वो इसके दायरा कार से बाहर हैं ।

जस्टिस के एस राधा कृष्णन और जस्टिस दीपक मिश्रा पर मुश्तमिल एक बंच ने कहा कि अरकान ए पार्लियामेंट और अरकान ए असेंबली को ना अहल क़रार देना अदालत के दायरे कार में नहीं है । बंच ने ख़वातीन के ख़िलाफ़ मज़ालिम के मुक़द्दमात में जिन अरकान ए पार्लियामेंट और अरकान ए असेंबली के ख़िलाफ़ चार्जशीट पेश की गई है उनको ना अहल क़रार देने की दरख़ास्त पर कहा कि अरकान ए पार्लीयामेंट-ओ-अरकान ए असेंबली पर अदालत का क्या इख़तियार है ? ।

बंच ने समाअत के दौरान कहा कि मफ़ाद-ए-आम्मा की दरख़्वास्तें दायर करने वालों को चाहीए कि अगर तहकीकात मुनासिब अंदाज़ में नहीं हो रही हैं तो उसे तहक़ीक़ाती ओहदेदार की ग़लती समझा जाये । अदालत ने हुकूमत से भी कहा कि इस्मत रेज़ि और ख़वातीन के ख़िलाफ़ मज़ालिम की रोक थाम के क़वानीन को मुस्तहकम करने के लिए जो जे एस वर्मा कमेटी क़ायम की गई है इसके क़वाइद कार से सुप्रीम कोर्ट को वाक़िफ़ करवाया जाये ।

फ़ौजदारी मुक़द्दमात का सामना करने वाले सयासी क़ाइदीन को ना अहल क़रार देने से मुताल्लिक़ दरख़ास्त पर बंच ने कहा कि ज़िंदगी में किसी भी शख़्स के मीआर से क़ता नज़र इसके ख़िलाफ़ तेज़ रफ़्तार मुक़द्दमा चलाया जाना चाहीए । अदातल को मतला किया गया कि मुल्क में 4835 अरकान ए पार्लीयामेंट-ओ-अरकान ए असेंबली में 1448 के ख़िलाफ़ फ़ौजदारी मुक़द्दमात दर्ज हैं।

ताहम बंच ने कहा कि फ़िलहाल वो इस मसला से ताल्लुक़ नहीं रखती इसलिए महिदूद मसाइल पर दरख़ास्त मफ़ाद-ए-आम्मा की समाअत का फैसला किया जाता है । अदालत ने इस ख़्याल से इत्तिफ़ाक़ किया कि मज़ीद फ़ास्ट ट्रैक अदालतों और इज़ाफ़ी जजेस् के तक़र्रुर की ज़रूरत है ।

बंच ने कहा कि जजेस् की कई जायदादों पर तक़र्रुत होने हैं और कई अदालतों का क़ियाम अमल में लाना चाहीए । अदालत में मफ़ाद-ए-आम्मा की दो दरख़्वास्तें एक रीटायर्ड आई ए एस ओहदेदार प्रमीला शंकर और एडवोकेट-ओ-समाजी कारकुन ओमेका दूबे ने दायर की हैं।

प्रमीला शंकर ने अपनी दरख़ास्त में अरकान ए पार्लीयामेंट-ओ-अरकान ए असेंबली को ना अहल क़रार देने की इस्तिदा करने के इलावा ख़ाहिश की थी कि इस्मतरेज़ि और ख़वातीन-ओ-बच्चों के ख़िलाफ़ मज़ालिम के मुक़द्दमात की ख़ातून पुलिस ओहदेदार ही तहकीकात करें और ख़ातून जजेस् की अदालतों में ही उनकी समाअत हो।

उन्होंने अपनी दरख़ास्त में कहा कि ख़वातीन के तहफ़्फ़ुज़ के लिए मौजूदा क़वानीन पर मूसिर अमल आवरी के लिए कोई कोशिश नहीं की गई । ओमेका दूबे ने अपनी दरख़ास्त में इस्तिदा की थी कि ख़वातीन के ख़िलाफ़ मज़ालिम के मुक़द्दमात की समाअत के लिए इज़ाफ़ी जजस का तक़र्रुर अमल में लाया जाये और इस्मतरेज़ि का शिकार ख़वातीन को लाज़िमी मुआवज़ा दिया जाये ।

उन्होंने अख़बारात और टी वी चैनल्स में ख़वातीन की मुख़र्रिब-ए-अख़लाक़ तसावीर की इशाअत और नशरियात पर पाबंदी आइद की जाये । मिसेज़ दूबे ने क़ोहबागिरी के इलाक़ों का भी मसला उठाया था और कहा था कि यहां लड़कियों से ज़बरदस्ती कोहबागिरी करवाई जा रही है ।

गौरतलब है कि गैंगरेप को अंजाम देने वाले दरिंदों के खिलाफ उभरे आवामी गुस्से के चलते कई बार गुनहगारों को आवामी तौर पर फांसी लगाने की मांग हो रही है।