मर्कज़ी वज़ीर शहरी हवा बाज़ी (Civil aviation minister/नागरिक उड्डयन मंत्री) अजीत सिंह ने कहा कि एयर इंडिया पायलेट्स की हड़ताल गै़रक़ानूनी है और उन्हें मुसाफ़िरों के वसीअ तर ( बड़े पैमाने पर) मुफ़ाद ( फायदा) में काम पर वापस आ जाना चाहीए।
आज यहां चौधरी चरण सिंह एयर पोर्ट के नए टर्मिनल का इफ़्तेताह ( उद्वघाटन) करने के बाद अख़बारी नुमाइंदों ( पत्रकारों) से बातचीत करते हुए उन्होंने कहा कि सूरत-ए-हाल ( वर्तमान हालत ) से निमटने( निपटने) की कोशिशें जारी हैं। उन्होंने पायलेट्स से फिर एक मर्तबा ( बार) अपील ( गुजारिश) की है कि मुसाफ़िरैन के वसीअ तर मुफ़ाद को मल्हूज़ रखते हुए रुजू बिकार हो जाएं।
उन्होंने कहा कि ऐसे वक़्त जबकि जस्टिस ( न्यायधीश) धर्म अधीकारी कमेटी रिपोर्ट पेश होने की तवक़्क़ो ( आशा/उम्मीद) है पायलेट्स की हड़ताल का कोई जवाज़ नहीं और उन्हें फ़ौरी (फौरन) काम पर वापस आ जाना चाहीए। उन्हों ने बताया कि पायलेट्स के मसाएल ( समस्या) का जायज़ा लेने के लिए धर्म अधीकारी कमेटी तशकील दी गई है।
अजीत सिंह ने कहा कि दिल्ली हाइकोर्ट ने पहले ही इस हड़ताल को गै़रक़ानूनी क़रार दिया है और उन्हें क़ानून की पासदारी (निगरानी) का हुक्म दिया है। अजीत सिंह ने कहा कि हुकूमत ने एयर इंडिया के अहया के लिए 20 हज़ार करोड़ रुपये का पैकेज मंज़ूर किया है लेकिन सिर्फ रुकमी मंज़ूरी से मतलूबा( वांछित वस्तुएं) नताइज ( नतीजे) बरामद नहीं हो सकते। एयर लाईंस को मसह बिकती मैदान में बेहतर मुक़ाबला करना और साथ ही साथ मसारिफ़ (खर्च) पर तवज्जा ( ध्यान) देना होगा। उन्हों ने कहा कि पायलेट्स को जो भी मसाइल ( समस्या/मसले) दरपेश हो वो हम से रुजू (संपर्क) कर सकते हैं और उन पर मुज़ाकरात (आपसी बातचीत) भी मुम्किन ( संभव) हैं लेकिन एयरलाईंस को ख़सारे ( ) से दो-चार करने या मुसाफ़िरैन को दुशवारीयों (दिक्कतो/परेशानियों) में मुब्तिला (फँसे हुए) करने की कोई गुंजाइश नहीं है।
हुकूमत ऐसी पालिसीयों को कुबूल नहीं करेगी। जिस के ज़रीया इस पर दबाव बनाने की कोशिश की जाए। जब उन से बरतरफ़ ( बर्खास्त) पायलेट्स की बहाली के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि पहले पायलेट्स को काम पर वापस आना चाहीए। पायलेट्स की ये ज़िम्मेदारी है कि मुसाफ़िरों को सहूलत बहम ( हमेशा/ परस्पर) पहुंचाएं और वो ऐसे नुक्ता को मल्हूज़ (दूर रखना) रखते हुए पहले काम पर वापस आएं।
अगर मुसाफ़ि नाराज़ होंगे तो आइन्दा दिनों में मुश्किलात में इज़ाफ़ा ( बढोत्तरी) ही होगा। अगर एयरलाईंस ना हो तो फिर दूसरी बातें जैसे तनख़्वाह, तरक़्क़ी या इनक्रीमेन्ट कोई मानी ( मायने) नहीं रखता। जब उन से फ़िज़ाई शोबा को दरपेश ( किसी काम के वक़्त आने वाली मुशकिले) माली मसाएल (समस्या) के बारे में पूछा गया तो उन्होंने बताया कि ए टी एफ़ की टैक्सेस के साथ लागत 40 से 50 फ़ीसद ( प्रतिशत) है। जबकि दीगर ममालिक ( दूसरे देशो/मुल्को) में 30 से 35 फ़ीसद ( प्रतिशत) है। अगर ए टी एफ़ की क़ीमत कम ना की जाए तो ये मसाएल ( समस्याएं/ परेशानियां) बरक़रार रहेंगे। ताहम (फिर भी) फ़िज़ाई शोबा का मुस्तक़बिल ( भविष्य) ताबनाक ( रौशन/प्रकाशमान/चमकता हुआ) है।