एलबी नगर में आसिफ़जाही दौर की तारीख़ी तीन मंज़िला बाउली प्लाट में तबदील

नुमाइंदा ख़ुसूसी–  आम तौर पर कहा जाता है कि हिंदूस्तान को तीन चीज़ों से संगीन मसाइल (समस्या) का सामना है और वो तीन चीज़ें ये हैं। पापुलेशन (आबादी) , पोल्यूशन (आलूदगी) और पालीटिशयन (सियासतदां) । इन तीन चीज़ों के बाइस मुल्क में ग़ुर्बत, महंगाई, लूट मार, ज़ख़ीराअंदोजी और सरकारी महिकमा में रिश्वतखोरी की बीमारीयां आम हैं। जहां तक सरकारी मह्कमाजात में रिश्वतखोरी और बदउनवानी के चलन का सवाल है ये हक़ीक़त है जिसे हर कोई तस्लीम(क़ुबूल) करता है। यहां बस पैसा फेंकने तमाशा देखने वाला मुआमला है। सरकारी ओहदेदारों की मुट्ठी या जेबें गर्म कीजिए और उन के बैंक बयालेंस में इज़ाफ़ा कीजिए फिर देखिए आप को कोई भी गै़रक़ानूनी नाजायज़ काम से नहीं रोकेगा।

चाहे आप तालाबों के दामन में कॉलोनियां बनादें, महलात तामीर करलें, कनटों और बाओलियों को प्लॉट्स में तबदील करके फ़रोख़त करदें या फिर अपने मकानात की तामीर के लिए झीलों का रुख मोड़ दें। ऐसा ही कुछ मुआमला एलबी नगर में पेश आया है। एलबी नगर रंगा रेड्डी कोर्ट के बिलकुल मुत्तसिल एलबी नगर कॉलोनी है। इस कॉलोनी में आसिफ़जाही दौर की एक ख़ूबसूरत और फ़न तामीर का शाहकार तीन मंज़िला बाउली है (थी) और इस की हर मंज़िल पर कमानें तामीर की गई थीं और हर कमान से इस्लामी तर्ज़ तामीर की झलक नुमायां तौर पर दिखाई देती थी। लेकिन लैंड गिराबर्स ने इस ग़ैरमामूली तारीख़ी आसिफ़जाही बाउली को ना सिर्फ प्लाट में तबदील कर दिया बल्कि उस की रजिस्ट्री भी करवाई। मुक़ामी लोगों के मुताबिक़ इस इलाक़ा में 30 ता 35 हज़ार रुपय फ़ी गज़ ज़मीन फ़रोख़त हो रही है। इस तरह पाँच सौ से ज़ाइद गज़ अराज़ी का प्लाट बनाकर बाउली की रजिस्ट्री करवाली गई है। चुनांचे उस की क़ीमत 1.5 करोड़ हो जाएगी।

आप को बतादें कि आसिफ़ साबह नवाब मीर उसमान अली ख़ां बहादुर ने अतराफ़-ओ-अकनाफ़ के इलाक़ों में रहने वाले लोगों की सहूलत के लिए ये बाउली खुदवाई थी और इस बाउली से पानी के हुसूल के ज़रीया मोट मारा जाता था। लैंड गिराबर्स ने इस बाउली के वजूद को अक्टूबर 2009 से मिटाना शुरू किया और इस में कचरा-ओ-मिट्टी डालते हुए मुसत्तह प्लाट में तबदील करदिया। हुसन नगर में बाम रुक्न अलद विला बाउली आसिफ़जाही ख़ानदान के लिए पीने की पानी की फ़राहमी का ख़ास ज़ख़ीरा तसव्वुर की जाती थी। इस बाउली का पानी बंडियों के ज़रीया किंग कोठी पहुंचाया जाता था। बताया जाता है कि शाही हुक्म ने इस बाउली के पानी को शहर में सब से अच्छा पानी क़रार दिया था।

अब इस बाउली के वजूद को भी मिटाने की कोशिश की जा रही है। इस बाउली के इन चारों रास्तों को मस्दूद या बंद कर दिया गया है जहां से बाउली में पानी पहूँचा करता है। पहले हुक्मराँ और ख़ुदातरस दौलतमंद लोग अल्लाह अज़्ज़-ओ-जल और इस के रसूलसल्लल्लाह अलैहे वसल्लम की ख़ुशनुदी के लिए तालाब कुंटे झीलें तामीर किया करते थे और बाओलियों की खुदाई अमल में लाया करते थे। यहां तक कि मुसाफ़िरीन को पानी की तकलीफ़ ना हो इस के लिए आबदार ख़ाने और सबीलें क़ायम की जाती थीं। उन लोगों में जज़्बा-ए-ख़िदमत-ए-खल्क़ कूट कूट कर भरा हुआ था लेकिन आज लैंड गिराबर्स पानी के ज़ख़ाइर खुदाने के बजाय अपने मुफ़ादात की तकमील के लिए उन्हें बंद करके अपने और अपनी औलाद के पेट आग से भर रहे हैं।

हमारा शहर कभी बाग़ों का शहर कहलाता था तो कभी मसाजिद के बुलंद मीनारों ने उसे शौहरत की बुलंदीयों पर पहुंचाया। शहर हैदराबाद की तारीख़ी बाओलियों में नागा बाउली, दूध बाउली, मगर की बाउली, पुतली बाउली, ख़ज़ाना की बाउली, गच्ची बाउली, मिस्री गंज की बाउली, गुंड बाउली, पिला बाउली, जाम बाउली शामिल थे लेकिन इन बावलियों , तारीख़ी तालाबों और कुंटे कहां गए। इस बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता हाँ उन मुक़ामात पर बस्तीयां आबाद हो गई हैं। हमारे शहर में बाओलियों के वजूद को मिटाने का आग़ाज़ उस वक़्त शुरू हुआ जबकि डिक्शनरी में छिपा हुआ लफ़्ज़ लैंड गराबर अचानक मंज़रे आम पर आया और इस ने बहुत जल्द एक समाजी वाइरस की शक्ल इख़तियार करली।

पहले 90 फ़ीसद नौजवान तैराकी से वाक़िफ़ थे लेकिन आज 10 फ़ीसद नौजवानों को भी तैराकी नहीं आती। हालाँकि चंद सोइमिंग पुलिस तामीर किए गए हैं। अगर लैंड गराइबरस से आप पूछें कि भाई आख़िर क्यों आप लोग बाओलियों पर प्लॉट्स बनाकर फ़रोख़त कर रहे हैं तो वो यही कहेंगे कि नौजवान और बच्चे इन बाओलियों में तैराकी के दौरान ग़र्क़ाब हो रहे थे जो हमें अच्छा नहीं इस लिए बाओलियां बंद की जा रही हैं। जहां तक एलबी नगर की बाउली का सवाल है महिकमा आसारे-ए-क़दीमा, बलदिया और मंडल ऑफ़िस को चाहीए कि हरकत में आए और इस बात की तहक़ीक़ात करवाए कि एक बाउली पर बनाए गए प्लाट की रजिस्ट्री कैसे की गई।