हदीस पाक में आया है कि क़ियामत के दिन सात आदमी अर्श के साये में होंगे, जिस दिन अर्श के सिवा कोई दूसरा साया नहीं होगा।
इन सात ख़ुशनसीब लोगों में से एक वो पाकदामन इंसान होगा, जिसे ख़ूबसूरत हसब-ओ-नसब वाली औरत गुनाह की दावत दे और वो जवाब में कह दे में अल्लाह से डरता हूँ। (बुख़ारी )
अंदाज़ा लगाएं कि पाक्दामनी वाली सिफ़त की अल्लाह ताला के हाँ कितनी क़दर है कि रोज़ मह्शर जब तमाम बनी नौइंसानियत नफ्सी नफ्सी के आलम में होगी तो उस वक़्त कुछ लोग होंगे, जिन पर अल्लाह ताला का ख़ास करम और ख़ुसूसी रहमत होगी। इन में वो ख़ुशनसीब भी होंगे, जो जिना से बचेंगे, एन उस वक़्त जब कि गुनाह की दावत मिल रही थी और वो चाहते तो मौक़ा का फ़ायदा उठा सक्ते थे, लेकिन उन्हों ने ज़ब्त नफ्स का मुज़ाहरा किया और अपने किरदार को गुनाह से आलूदा होने से बचाया, लिहाज़ा वो अल्लाह ताला के अर्श के साये में मुत्मइन-ओ-मसरूर होंगे।
नबी अकरम स.व. ने पाकदामनी की ज़िंदगी गुज़ारने वाले को जन्नत की बशारत दी है और वो भी अपनी ज़मानत फ़रमाया जो मेरे लिए अपनी रानों के दरमयानी चीज़ (शर्मगाह) और जब्ड़ों की दरमयानी चीज़ (ज़बान) की हिफ़ाज़त की ज़मानत दे, में उसे जन्नत में दाख़िल होने की ज़मानत देता हूँ (बुख़ारी)
एक और मौक़ा पर नौजवानों को मुख़ातब करके फ़रमाया ए क़ुरैश के नौजवानो! अपनी शर्मगाहों की हिफ़ाज़त करो, जिना मत करो, जो अपनी शहवत गाह को महफ़ूज़ रखेगा, इस के लिए जन्नत है (हाकिम ओ बैहक़ी) लिहाज़ा जन्नत के दाइमी इनामात हासिल करने के लिए ये ज़रूरी है कि हम दुनिया की आरिज़ी लज़्ज़त-ओ-शहवत पर कंट्रोल करें।
इसी तरह एक रिवायत में है कि जो शख़्स नामहरम पर क़ादिर हुआ, मगर ख़ौफ़ ख़ुदा की वजह से गुनाह से बच गया, इस के बदले उसे जन्नत में अल्लाह ताला का दीदार नसीब होगा। (इबन माजा)
पाकदामनी वो आला सिफ़त है, जिस के लिए नबी अलैहि स्सलाम भी अल्लाह ताला से दूआएं मांगा करते थे। आप अपनी ज़ात में मासूम थे, लेकिन इस से आप की इफ़्फ़त-ओ-पाकदामनी की ज़िंदगी से मुहब्बत का अंदाज़ा होता है। दूसरा ये कि उम्मत की तालीम के लिए आप ने ये दुआएं मांगी। चुनांचे अहादीस में कई एसी दुआएं मंक़ूल हैं, जिस में आप स.व. ने अल्लाह ताला से आँख की पाकीज्गी, दिल की पाकीज्गी और इफ़्फ़त-ओ-इस्मत को तमन्ना बताकर मांगा है। चंद दुआएं नीचे लीखी हूई हैं:
* ए अल्लाह! मैं तुझ से हिदायत, परहेज़गारी, पाकदामनी और गीना का सवाल करता हूँ। (मुस्लिम)
* ए अल्लाह! मैं तुझ से सेहत पाकदामनी और अमानत और अच्छे अख़लाक़ हूस्न और रज़ा बील्क़द्र का सवाल करता हूँ। (मीश्कात)
* ए अल्लाह! मेरे दिल को निफ़ाक़ से पाक कर और मेरे अमल को रिया से और मेरी ज़बान को झूट से और मेरी आँख को ख़ियानत से, बेशक तू आँखों और सीने की पोशीदा ख़ियानतों को जानता है।
* ए अल्लाह! मुझे इल्हाम फ़र्मा मेरी हिदायत और मेरे नफ़स के शर से मुझे दूर फ़र्मा। (तिरमिज़ी)
* ए अल्लाह! मैं नापसंदीदा अख़लाक़ आमाल और ख़ाहिशात से तेरी पनाह चाहता हूँ। (तिरमिज़ी)
* में अपने कान, अपनी बीनाई, अपने दिल और मुँह की बुराई से तेरी पनाह मांगता हूँ।
हमें भी चाहीए कि हम अपनी ज़िंदगी में इन दूआओं के मांगने का मामूल बनाएं, ताकि उन की बरकत से इफ़्फ़त-ओ-पाकदामनी वाली ज़िंदगी नसीब हो।
इस्लाम से क़बल अहल अरब में शराबनोशी और बेहयाई आम थी और वो अपनी महफ़िलों में और अपनी गुफ़्तगु में इस का इज़हार बड़े फ़ख़र से किया करते थे। नबी अकरम स.व. की पाकीज़ा तालीमात और आप के फ़ैज़ सोहबत ने सहाबा किराम पर एसा असर किया कि इन की ज़िंदगीयां बिल्कुल बदल कर रह गईं। वही सहाबा किराम जो ज़माना-ए-जाहिलीयत में हर किस्म की अख़लाक़ी बे राहरवी का शिकार थे, हुज़ूर स.व. की तर्बीयत की बरकत से उन के नूफ़ूस एसे पाक साफ़ हुए कि उन्हें अख़लाक़ी बुराईयों से यकसर नफ़रत हो गई।
एक सहाबी हज़रत मरसद ईब्न ए मरसद गनवी (रज़ी) को हिज्रत के मौक़ा पर ये ज़िम्मेदारी सौंपी गई कि जो कम्ज़ोर और नातवां अफ़राद मक्का में रह गए हैं, वो उन की मक्का से मदीना की तरफ़ हिज्रत में नुसरत-ओ-इआनत फ़रमाएं और उन्हें ब हिफ़ाज़त मदीना तक पहुंचाएं। एक दफ़ा वो इसी सिलसिले में मक्का तशरीफ़ लाए। इत्तिफ़ाक़न उन को अनाक़ नामी एक औरत के घर के पास से गुज़रना पड़ा। ये एक फ़ाहिशा औरत थी, जिस से उन के इस्लाम से क़बल कुछ ताल्लुक़ात रहे थे। इस औरत ने हज़रत मरसद (रज़ी) को देख कर पहचान लिया और आगे बढ़ कर उन का बड़ी गर्मजोशी से इस्तिक़बाल किया और रात घर पर गुज़ारने के लिए इस्रार करने लगी। हज़रत मरसद (रज़ी) चूँ कि इस्लाम की रोशनी से बहरावर हो चुके थे और इस किस्म की लग़वयात से मुतनफ़्फ़िर हो चुके थे, लिहाज़ा साफ़ जवाब देते हुए फ़रमाया अब पहला ज़माना बाक़ी नहीं रहा, इस्लाम ने जीना को हराम क़रार दिया है, लिहाज़ा मुझे माफ़ करो। इस ने कहा अगर तुम मेरी ख़ाहिश पूरी नहीं करोगे तो मैं शोर-ओ-गुल करूंगी और तुम्हें गिरफ़्तार क़रादूंगी। लेकिन इस की इस धमकी के बावजूद हज़रत मरसद (रज़ी) ने गंदगी से आलूदा होना पसंद नहीं किया और वहां से भाग खड़े हुए और छुपते छुपाते कुफ़्फ़ार के चंगुल से निकल गए।