ऐसी तो …

सहारनपुर में ईदन एक गाने वाली थी, बड़ी बाज़ौक़, सुख़न फ़हम और सलीक़ा शआर, शहर के अक्सर ज़ी इल्म और मोअज़्ज़िज़ीन उसके यहाँ चले जाया करते थे।

एक दिन मौलाना फ़ैज़ उल-हसन सहारनपुरी भी पहुंचे, वो पुराने ज़माने की औरत नई तहज़ीब से नाआशना, बैठी निहायत सादगी से चर्ख़ा कात रही थी।

मौलाना उसको इस हालत में देखते ही वापिस लौटे।
उसने आवाज़ दी, मौलाना आईए, तशरीफ़ लईए, वापिस क्यों चले?

मौलाना ये फ़र्माकर चल दिए कि ऐसी तो अपने घर भी छोड़ आए हैं।
……………………………………………इबने अलक़मरीन, मकथल