ऐसे मनाज़िर तो हैदराबाद में ही देखने को मिलते हैं – हर्ष मंदर

घर का ज़िक्र आते ही लोगों के ज़हनों में मुक़ाम आराम , तहफ़्फ़ुज़ , सलामती और अपने अज़ीज़ों के साथ क़ियाम का तसव्वुर आता है। जिस के पास रहने के लिए घर होता है इस का अंदाज़ा और मुक़ाम ही जुदागाना होता है और जिस के पास रहने के लिए घर या आसरा नहीं होता उस की ज़िंदगी , ज़िंदगी नहीं बल्कि एक बोझ समझी जाती है।

घरों में ज़िंदगी गुज़ारने वालों को ये अच्छी तरह अंदाज़ा है कि बेघर किस तरह ज़िंदगी गुज़ारते हैं। जहां घर वालों को बेघरों की हालते ज़ार मालूम करनी ज़रूरी है। वहीं उन्हें ये भी पता चलाना चाहीए कि आख़िर सड़कों फुटपाथों , रेलवे स्टेशनों और बस स्टैंड्स के इलावा पार्क्स वगैरह में आसमान तले रात दिन गुज़ारने वाले किस तरह अपनी बक़ा को यक़ीनी बनाते हैं।

रहने को घर नहीं और सोने को बिस्तर नहीं वाला मुआमला हमारे शहर में भी हज़ारों लोगों के साथ जुड़ा हुआ है। चुनांचे इस तरह के घर लोगों और बे आसरा और सहारा बच्चों की मुसीबतों और अलाइम से मुआशरा को वाक़िफ़ करवाने के लिए बाबाए क़ौम महात्मा गांधी की यौमे पैदाइश के मौक़ा पर 1 ता 2 अक्टूबर बेघरों के साथ इज़हारे यगांगत मनाया गया।

अमन बिरादरी कैंपस फ़ॉर सिटीज़न्स शेल्टर्स (C4CS) , जूनियर चैंबर इंडिया ( जे सी आई- जेसिज़ ) , निर आसराया शार्मिक संघर्षना संगठन ( एन एस एस एस एस ) और बालियातरा नेटवर्क ने 1 अक्टूबर की शाम और 2 अक्टूबर की सुबह ख़ुसूसी प्रोग्राम का एहतेमाम किया जिस में आम शहरियों को इन बेघर अफ़राद की मुश्किलात को समझने में मदद मिली। सब से अहम बात ये है कि इन तक़ारीब में मुमताज़ समाजी जहद कार हर्ष मंदर ने भी शिरकत की।

1 अक्टूबर को शाम 7 बजे सिकंदराबाद टावर पर बेघरों से इज़हारे यगांगत के लिए ख़ुसूसी तक़रीब मुनाक़िद हुई। वाज़ेह रहे कि ये तमाम गैर सरकारी तनज़ीमें मुल्क में अमन सेक्यूलरिज़्म , जम्हूरियत , इंसानियत के फ़रोग़ और दस्तूर में तमाम शहरियों को फ़राहम कर्दा हुक़ूक़ के तहफ़्फ़ुज़ के लिए काम करती हैं। ये तनज़ीमें बेघर और बेसहारा लोगों तक पहुंच कर उन्हें आसरा घरों में रहने की तरग़ीब देते हैं।

इस्लाम में भूके को खाना खिलाने , नंगे को कपड़े पहनाने और बेसहारा को सहारा , बे आसरा को आसरा देने को बहुत अहमियत दी गई। मुस्लिम तनज़ीमें इस तरह के फ़लाही काम करते हुए अब्नाए वतन तक इस्लाम का पयामे अमन और इंसानियत और भाई चारगी पहुंचा सकती हैं।
उन्हें ये बता सकती हैं कि इस्लाम मज़लूमों , गरीबों , कमज़ोरों , मुहताजों की मदद के लिए सब से आगे रहता है।