ऐस आई टी रिपोर्ट

इशरत जहां फ़र्ज़ी इनकाउनटर केस में सिर्फ पुलिस, नरेंद्र मोदी हुकूमत और सेयासी क़ाइदीन नहीं बल्कि हिंदूतवा नज़रिया रखने वालों ने भी फ़र्ज़ी इनकाउनटर बनाने में ख़ामोश तआवुन किया। ये मोदी को हिंदूतवा सियासत का एक हीरो बनाने का एक टर्निंग प्वाईंट था। 2001 से 2004- के दरमयान कई इनकाउनटर हुए हैं। जिस में सुहराब उद्दीन शेख़ इनकाउनटर भी शामिल है ।

15 जून 2004-के सनसनीखेज़ इशरत जहां इनकाउनटर केस को गुजरात हाईकोर्ट की जानिब से मुक़र्रर करदा ख़ुसूसी तहक़ीक़ाती टीम ऐस आई टी ने फ़र्ज़ी क़रार दिया और इस को मुनज़्ज़म तरीक़ा से स्टेज किया गया था। गुजरात पुलिस का रोल अपने आक़ा नरेंद्र मोदी को ख़ुश करने के इलावा बेक़सूर अफ़राद को फांस कर उन्हें ज़ुलम-ओ-ज़्यादती का शिकार बनाना था। अहमदाबाद पुलिस ने यही रोल अदा करते हुए 15 जून 2004-की सुबह ये ऐलान किया कि इस ने शहर के बाहर लश्कर-ए-तुयबा के चार दहश्तगरदों का इनकाउनटरकिया है जिन में इशरत जहां और जावेद शेख़ उर्फ़ पर युनुष पिलाई के इलावा अमजद अली राना और ज़ीशान जौहर काक़तल शामिल हैं, पुलिस का ये दावा भी ग़लत साबित हुआ कि इन चारों ने नरेंद्र मोदी को हलाक करने का मंसूबा बनाया था।

2002 के गुजरात मुस्लिम कश फ़सादाद का इंतिक़ाम लेने के लिए उन्हों ने एक मंसूबा के तेहत गुजरात का सफ़र किया था। क़ानून के मुहाफ़िज़ीन ने इस सर्द ख़ून की सच्चाई को बेनकाब किया है । अदालत और इंसाफ़ पर ईक़ान रखने वालों के लिए ऐस आई टी की रिपोर्ट यक़ीनन सब से बड़ी कामयाबी है । ऐस आई टी की रिपोर्ट के बाद दूसरी मर्तबा ये साबित हुआ कि नरेंद्र मोदी को क़तल से बचाने के लिए गुजरात पुलिस ने जो इनकाउनटर क्या ग़लत था। जस्टिस जयंत पाटल और अभीलाश कुमारी पर मुश्तमिल गुजरात हाईकोर्ट की डीवीझ़न बंच ने ऐस आई टी रिपोर्ट क़बूल करके हुकूमत को हिदायत दी कि वो ताअज़ीरात-ए-हिंद की दफ़ा 302 के तेहत फ़र्ज़ी इनकाउनटर में मुलव्विस पुलिस मुलाज़मीन के ख़िलाफ़ क़तल की तहक़ीक़ात कराने एक ताज़ा एफ़ आई आर दर्ज करवाई।

ख़ाती पुलिस मुलाज़मीन के ख़िलाफ़ ताज़ा एफ़ आई आर इस लिए ज़रूरी है कि इनकाउनटरके बाद ख़ाती पुलिस मुलाज़मीन ने दावे किया थाकि हलाक होने वाले तमाम चार अफ़राद लश्कर-ए-तुयबा के कारकुन थे पुलिस के इस दावा के बाद इन्सिदाद-ए-दहशत गर्दी क़ानून के तेहत एफ़ आई आर दर्ज किया गया था इस को बदल कर नया एफ़ आई आर दर्ज कराना ज़रूरी है । इनकाउनटरकी झूटी कहानी के बाद मुल्क में मुस्लमानों को ज़हनी, समाजी और सयासी तौर पर कमज़ोर करने की कोशिशें की गईं लेकिन इंसाफ़ और क़ानून पर यक़ीन रखते हुए मुस्लिम तंज़ीमों और इशरत जहां की वालिदा शमीमा बेगम के साथ जावेद शेख़ उर्फ़ प्रणेश पिलाई के वालिद ने अपने बच्चों की बेगुनाही साबित करने अदालतों का दरवाज़ा खटखटाया और इस में कामयाब हुई।

पुलिस ने चार बेगुनाह मुस्लिम नौजवानों को फ़र्ज़ी इनकाउनटर के ज़रीया हलाक करके जो झूटी कहानी बनाई थी इस से ना सिर्फ पुलिस और हुकूमत की फ़र्ज़शनासी पर दाग़ लग गया बल्कि सियासतदानों की गु़लामी करने वाले चंद पुलिस मुलाज़मीन ने अपने महिकमा को बदनाम करदिया। तहक़ीक़ात से पुलिस का झूट साबित हुआ ।

जिन चार बेक़सूर मुस्लिम नौजवानों की नाशों का पोस्टमार्टम किया गया इस से पता चला कि इनकाउनटरसे क़बल ही उन को मार दिया गया था क्योंकि मुतवफ़्फ़ियों के जिस्म में पाए जाने वाली अशीया और जुज़वी तौर पर हज़म हुई ग़िज़ा से पुलिस का दावा ग़लत साबित हुआ ये दावा भी ग़लत साबित हुआ कि पुलिस ने अपने बचाॶ के लिए 70 राॶनड फायरिंग की थी लेकिन तहक़ीक़ाती टीम को इनकाउनटरके मुक़ाम से एक गोली भी दस्तयाब नहीं हुई। इनकाउनटरके मुक़ाम पर कार में गोलीयों के निशान पुलिस इनकाउनटरकी कहानी से मुतज़ाद पाए गए और मुतवफ़्फ़ी मुस्लिम नौजवानों की नाशों पर पाए गए गोलीयों के निशान से पता चला कि उन्हें क़रीब से गोली मार दी गई थी।

अदलिया ने इंसाफ़ के तक़ाज़ों को बारीकबीनी से पूरा किया है । इस इनकाउनटर की अदालती तहक़ीक़ात को मैटरोपोलेटियन मजिस्ट्रेट एसबी तमांग ने अंजाम दिया था और 7 सितंबर 2009-ए-को पेश करदा अपनी रिपोर्ट में उन्हों ने भी उसे फ़र्ज़ी इनकाउनटर क़रार दिया था। बल्कि ये भी कहा था कि पुलिस मुलाज़मीन ने अपने फ़ायदा के लिए बेक़सूर मुस्लिम नौजवानों की जान ली है । अब अदालत इस नतीजा पर पहूँची है कि इस सर्द ख़ून की अज सर-ए-नौ तहक़ीक़ात करवाई जाय तो अदालत को ये ज़िम्मेदारी दयानतदार तहक़ीक़ाती एजैंसी के सपुर्द करना चाआई।

ऐस आई टी या किसी मर्कज़ी तहक़ीक़ाती एजैंसी सी बी आई, एन आई ए को केस सपुर्द करते हुए ये भी ध्यान रखना ज़रूरी है कि केस की तहक़ीक़ात को नया मोड़ देने के लिए सियास्तदान अपने असर-ओ-रसूख़ का इस्तिमाल ना करें। अब तक की तहक़ीक़ात से जो सच्चाई सामने आई है इस से साबित हुआ कि गुजरात पुलिस के चंद आई पी ऐस ऑफीसरस के हाथ मुस्लमानों के ख़ून से रंगे हुए हैं। उन्हें सज़ा देने का मुतालिबा कियाजारहा है । मक़्तूला इशरत जहां की वालिदा शमीमा बेगम, भाई और बहन के इलावा जावेद शेख़ के वालिद ने भी ख़ातियों को फांसी देने का मुतालिबा किया है ।

इस पर क़ानून-ओ-इंसाफ़ की रोशनी में फ़ौरी क़दम उठाते हुए कार्रवाई की जानी चाआई। इंसाफ़ के हुसूल के लिए मुतास्सिरा अफ़राद का साथ देने वाले अफ़राद और तंज़ीमें क़ाबिल मुबारकबाद हैं कि इन के हिंदूस्तानी क़ानून-ओ-इंसाफ़ पर भरपूर वक़्क़ा मिल ईक़ान ने उन्हें कामयाबी की राह दिखाई है । हिंदूतवा नज़रिया की हामिल हुकूमतों और सरकारी ओहदेदारों की साज़िशों को नाकाम बनाना ज़रूरी है । उन्हें बेनकाब करके इंसाफ़ का सख़्त निज़ाम नाफ़िज़ करना चाहीए ताकि कोई फ़िकार्पस्त ज़हन हुक्मराँ और ओहदेदार मलिक के थाना कचहरी से लेकर क़ानूनसाज़ी के इदारों तक सब कुछ अपनी गिरिफ़त में लेकर मनमानी की हिम्मत ना करसके।