ऐ खुदा के बंदो! दिल की पूरी खुशी से कुर्बानियां दिया करो

हजरत आयशा सिद्दीका (रजि०) से रिवायत है कि नबी करीम (स०अ०व०) ने इरशाद फरमाया कि जिल हिज्जा की दसवीं तारीख यानी ईद उल अजहा के दिन आदम के बेटे का कोई अमल अल्लाह को कुर्बानी से ज्यादा महबूब नहीं और कुर्बानी का जानवर कयामत के दिन अपने सींगो और बालों और खुरों के साथ (जिंदा होकर) आएगा, और कुर्बानी का खून जमीन पर गिरने से पहले अल्लाह तआला की रजा और मकबूलियत के मकाम/ मुकाम पर पहुंच जाता है। इसलिए ऐ खुदा के बंदो! दिल की पूरी खुशी से कुर्बानियां किया करो। (तिरमिजी इब्ने माजा)

हजरत जैद इब्ने अरकम (रजि०) से रिवायत है कि नबी करीम (स०अ०व०) के बाज सहाबी ने अर्ज किया- या रसूल (स०अ०व०)! इन कुर्बानियों की क्या हकीकत है और क्या तारीख है? आप (स०अ०व०) ने फरमाया- यह तुम्हारे (रूहानी और नस्ली) मूरिस हजरत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की सुन्नत है (यानी सबसे पहले उनको अल्लाह पाक की तरफ से इसका हुक्म दिया गया और किया करते थे, उनकी इस सुन्नत और कुर्बानी के इस अमल की पैरवी का हुक्म मुझे और मेरी उम्मत को भी दिया गया है)

उन सहाबियों ने अर्ज किया कि फिर हमारे लिए या रसूल (स०अ०व०) इन कुर्बानियों में क्या अज्र है? आप (स०अ०व०) ने फरमाया कि कुर्बानी के जानवर के हर-हर बाल के एवज एक नेकी। उन्होंने अर्ज किया तो क्या ऊन का भी या रसूल (स०अ०व०) यही हिसाब है? (इस सवाल का मतलब था कि भेड़, दुम्बा, मेढ़ा, ऊंट जैसे जानवर जिनकी खाल पर गाय, बैल या बकरी की तरह के बाल नहीं होते बल्कि ऊन होता है और यकीनन इनमें से एक जानवर की खाल पर लाखों या करोड़ों बाल होते हैं तो क्या इन ऊन वाले जानवरों की कुर्बानी का सवाब भी हर बाल के एवज एक नेकी की शरह से मिलेगा?) आप (स०अ०व०) ने फरमाया कि हां, ऊनी यानी ऊन वाले जानवर की कुर्बानी का अज्र भी इसी शरह और इसी हिसाब से मिलेगा कि उसके भी हर बाल के एवज एक नेकी। (मसनद अहमद, इब्ने माजा)

हजरत अब्दुल्लाह बिन उमर (रजि०) से रिवायत है कि नबी करीम (स०अ०व०) ने (हिजरत के बाद) मदीन तैयबा में दस साल कयाम फरमाया और आप (स०अ०व०) बराबर (हर साल) कुर्बानी करते थे। (जामे तिरमिजी)

हनश बिन अब्दुल्लाह से रिवायत है कि मैंने हजरत अली मुर्तजा (रजि०) को दो मेढ़ों की कुर्बानी करते देखा तो मैंने उन से अर्ज किया कि यह क्या है? (यानी आप बजाए एक के दो मेढ़ों की कुर्बानी क्यों करते रहे?) उन्होंने फरमाया कि नबी करीम (स०अ०व०) ने मुझे वसीयत फरमाई थी कि मैं आप की तरफ से भी कुर्बानी किया करूं तो एक कुर्बानी मैं आप (स०अ०व०) की जानिब से करता हूं। (अबू दाऊद, तिरमिजी)

तशरीह:- अब्दुल्लाह बिन उमर (रजि०) की ऊपर की हदीस से मालूम हुआ था कि मदीना तैयबा में कयाम फरमाने के बाद से नबी करीम (स०अ०व०) पाबंदी के साथ हर साल कुर्बानी फरमाते रहे और हजरत अली मुर्तजा ( रजि०) की इस हदीस से मालूम हुआ कि बाद के लिए आप हजरत अली (रजि०) को वसीयत फरमा गए थे कि आप की तरफ से कुर्बानी किया करूं। इसलिए इस वसीयत के मुताबिक हजरत अली (रजि०) नबी करीम (स०अ०व०) की तरफ से बराबर कुर्बानी करते थे।

हजरत अनस (रजि०) से रिवायत है नबी करीम (स०अ०व०) ने काले और सफेद रंग के सींगो वाले दो मेढ़ों की कुर्बानी की, अपने मुबारक हाथों से उनको जिबह किया और जिबह करते वक्त ‘‘बिस्मिल्लाह व अल्लाहू अकबर’’ पढ़ा। मैंने देखा कि उस वक्त आप अपना पांव उनके पहलू पर रखे हुए थे और जबान से बिस्मिल्लह व अल्लाहू अकबर कहते जाते थे।

हजरत जाबिर (रजि०) से रिवायत है कि कुर्बानी के दिन यानी ईदे कुर्बान के दिन नबी करीम (स०अ०व०) ने स्याही सफेदी मायल सींगो वाले दो खस्सी मेढ़ों की कुर्बानी की जब आपने उनका रूख सही यानी किब्ला की तरफ कर लिया तो यह दुआ पढ़ी ‘‘(तर्जुमा) मैंने अपना रूख उस अल्लाह की तरफ कर लिया जिसने जमीन व आसमान को पैदा किया है, तरीके इब्राहीम के , हर तरफ से यकसू होकर और मैं शिर्क वालों में से नहीं हूं मेरी नमाज व इबादत और मेरी कुर्बानी और मेरा जीना और मरना अल्लाह तआला के लिए है उसका कोई शरीक साझी नहीं और मुझे इसका हुक्म है और मैं हुक्म मानने वालों में से हूं। ऐ अल्लाह! यह कुर्बानी तेरी ही तरफ से और तेरी ही तौफीक से है और तेरे ही वास्ते है। तेरे बंदे मोहम्मद (स०अ०व०) की और उसकी उम्मत की जानिब से ‘‘बिस्मिल्लाह व अल्लाहू अकबर…’’ यह दुआ पढ़कर आप ने मेढ़े पर छुरी चलाई और उसको जिबह किया।

मसनद अहमद व सनन अबी दाऊद और जामे तिरमिजी की इसी हदीस की एक दूसरी रिवायत में आखिरी हिस्सा इस तरह है कि ‘‘अल्लाहुम्मनक वलक’’ कहने के बाद अपने हाथ से जिबह किया और जबान से कहा ‘‘बिस्मिल्लाह व अल्लाहू अकबर..’’ ऐ अल्लाह! यह मेरी जानिब से और मेरे उन उम्मतियों की जानिब से है जिन्होंने कुर्बानी न की है।

तशरीह:- कुर्बानी के वक्त नबी करीम (स०अ०व०) का अल्लाह पाक से यह अर्ज करना कि यह मेरी जानिब से और मेरी उम्मत की जानिब से या मेरे उन उम्मततियों की जानिब से है जिन्होंने कुर्बानी नहीं की। जाहिर है कि यह उम्मत के साथ नबी करीम (स०अ०व०) की इंतिहाई शफकत है। लेकिन मलहूज रहे कि इसका यह मतलब नहीं है कि आपने सारी उम्मत की तरफ से या कुर्बानी न करने वाले उम्मतियों की तरफ से कुर्बानी कर दी और सबकी तरफ से अदा हो गई बल्कि इसका मतलब सिर्फ यह है कि ऐ अल्लाह इसके सवाब में मेरे साथ मेरे उम्मतियों को भी शरीक फरमा। सवाब में शिरकत और चीज है और कुर्बानी का अदा हो जाना और चीज है। (मौलाना मोहम्मद मंजूर नोमानी)

———————-बशुक्रिया: जदीद मरकज़