ओपन-लेटर: प्रिय अक्षय कुमार, क्या आप नासिर और इंशा के बारे में भी बात करेंगे?

प्रिय अक्षय कुमार,

हां, सैनिकों की मौत वाकई एक राष्ट्रीय त्रासदी है। पर 11 वर्षीय प्रदर्शनकारी नासिर शफी और आजाद, और वह 44 वर्षीय का अधेर की मौत क्या राष्ट्रीय त्रासदी नहीं है? क्या यह एक राष्ट्रीय त्रासदी नहीं है कि 14 साल की इंशा को छर्रें मारकर अंधा कर दिया गया, उसकी दूनिया तबाह कर दी गई। और उसकी या उसकी तरह के लोगों का हाल लिया आपने? आप ने हाल ही में कई देशभक्ति वाली भूमिकाएं निभाई हैं। आप लोगों को समझाने में कामयाब रहे हैं कि जब सैनिकों की मौत होती है तो यह एक राष्ट्रीय त्रासदी है (और यह है भी)। देश के कई हिस्सों में अत्याचार हो रहे है (जैसाकि आपने कहा) क्या यह राष्ट्रीय क्षति नहीं है।

हाँ, कोई भी सैनिक #UriAttack और #SurgicalStrike  में मरने का हकदार नहीं हैं। (हालांकि, मुझे विश्वास है कि यह वास्तव में हुआ)।  लेकिल क्या हमें सवाल करना बंद कर देना चाहिए? क्या भारत एक तार्तिक देश नहीं है। क्या हमें उसे ऐसे ही जाने देना चाहिए? या फिर हमें अब इस लोकतंत्र को खत्म कर देना चाहिए? इसलिए क्योंकि आपने अपने पिछले ट्वीट से सैनिकों की बात की और उनके सम्मान की रक्षा किया (मुझे अभी तक यह समझ नहीं आया कि सवाल पूछने को आपने कैसे सम्मान के विरूध खड़ाकर दिया), मैं आपसे इसके बारे में पूछता हूं “क्या आपको यह बात दुखी नहीं करता कि एक सैनिक का पिता बिना ट्रायल के किसी को मछर की तरह मौत के घात उतार देता।” क्या आप तिरंगे का इसतरह अपमान किए जाने से नाराज नहीं है या यह अपमान काफी नहीं है?

आपने मारे गए शहीद सैनिकों और उनके परिवारों के बारे में बात की, लेकिन उन सैनिकों और उनके परिवार के बारे में क्या जो अभी जिंदा है। क्या वो जिंदा हैं इसलिए सम्मान के हकदार नहीं हैं? उस सैनिक के बारे में क्या जिसके पिता को सांप्रदायिक दंगाईयों ने मार दिया। उस परिवार के बारे में क्या जिसने कुछ खा लिया तो उसको मौत के घात उतार दिया गया। आपने उसके बारे में ट्वीट या उनके आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना क्यों नहीं किया?

आपने हॉलीडे, बेबी, गब्बर या रूस्तम के जरिए देश की एकता के बारे एक मजबूत संदेश दिया। तो, आप उन लोगों को कुछ संदेश नहीं देना चाहते है जिन्होंने दादरी में रवि सिसोदिया जैसे कातिल के अंतिम संस्कार में आकर उसके मौत के बदले का अह्वान किया है? कौन नफरत की आग भड़का रहा है। क्या किसी से बदला लिए बगैर किसी का अंतिम-संस्कार नहीं होगा? “हम इसका बदला लेकर रहेंगे। हिंदूओं ने चुड़ी नहीं पहन रखी है। इन मुल्लों कद जड़ से उखाड़ फेकेंगे हम। दादरी में दिया गया यह भाषण हिंसा और सांप्रदायिकता की चरम सीमा है। एक कातिल को राष्ट्रध्वज में लपेटा गया। पास खड़ी पुलिस मुंह देखती रही। क्या यह ध्वज संहिता का उल्लंघन नहीं था? उनके लिए एक ट्वीट या वीडियो शेयर कर देने से क्या आपके फैन फ्लोइंग में कमी आ जाएगी। आपकी फिल्मों को देखने पर विश्वास होता है कि आप ऐसे आदमी है जो सिद्धांतों के साथ कभी समझौता नहीं करता। भ्रष्टाचार और आतंकवाद के खिलाफ हमेशा लड़ता है। और मुझे भरोसा है कि आप सही समय पर इसे जरूर साबित कर के दिखाएंगे। क्या आप हमारे चारो ओर फैले इस पागल सांप्रदायिक घृणा और हिंसा के खिलाफ खड़े होंगे?

आपका विश्वासी,

ज़ैनब अहमद (एक कंफ्यूज्ड फैन)

 
अनुवाद: हबीबुर्रहमान

सौजन्य: मुस्लिम-मिरर