करीमनगर, 23 मार्च: 21मार्च बरोज़ जुमेरात 10 बजे सुबह से मदरसा उम्मे सलमा (रज़ि०) ओ तर्बियत अलबनात मिटपल्ली करीमनगर में मौलाना सज्जाद हुसैन क़ासमी की सदारत में जलसा मुनाक़िद हुआ। मौलाना ने तालिबात मदरसा और ख़वातीन से ख़िताब करते हुए कहा कि अल्लाह तआला ने इंसानों को जो सलाहियतें अता फ़रमाई हैं इन सलाहियतों को ईमान और अमले सालिह उजागर करता है। हम ईमान वालों में अमले सालिह की दौलत हो तो फिर हम इस दुनिया को अपने क़दमों तले देखेंगे।
मौलाना ने मुस्लिम हुकमरानों के वाक़ियात की रोशनी में कहा कि इस हिन्दुस्तान में औरंग ज़ेब ने और कई मुस्लिम बादशाहों ने अपनी हुकूमत में अदलो इंसाफ़ की मिसाल क़ायम की है। ये हमारे मुस्लिम हुक्मरानों का ताल्लुक़-ओ-रिश्ता क़ुराने पाक से बहुत मज़बूत था, और आज हम ज़िल्लत-ओ-ख़ारी से दो-चार हैं क्योंकि हम क़ुरआने पाक की तालीमात से दूर हैं,और क़ुराने पाक को समझने और अमल करने की सलाहियत कम होती जा रही है।
वक़्त का तक़ाज़ा है कि हम अपनी औलाद को अव्वल क़ुरआने पाक की तालीम से रोशनास करवाएं, आज मुआशरे में ग़ीबत, चुगलख़ोरी का रुजहान आम है। हसद-ओ-कीना, कपट, हमारी ज़िंदगियों का शेवा बन चुका है। हदीसे पाक में ग़ीबत को ज़िना कारी से भी बदतर गुनाह क़रार दिया है। अपने मुर्दार भाई का गोश्त खाने के मुमासिल अमल है,मगर हम इन चीज़ों को नजर अंदाज़ किए हुए हैं।
असल में हमारे अंदर आख़िरत की फ़िक़्रों की कमी है। जन्नत शौक़, जहन्नुम के ख़ौफ़ से हमारी ज़िंदगियां ख़ाली हो रही हैं। हम बस इस मिटने वाली दुनिया की फ़िक्र में हैं,लेकिन हमें इस दुनिया से जाना है और अपने किए का हिसाब किताब देना है,इस बात की फ़िक्र आज हमें बहुत कम है। मदरसे की तालिबात ने हमदो नज़म पेश की। क़ुद्दूसिया मर्यम ने क़ुरआने पाक की तिलावत और आईशा सिद्दीक़ा ने नाते पाक पेश की। मौलाना की दुआ पर जलसे का इख़तेताम को पहुंचा।