औलिया अल्लाह ने दावत व तब्लीग़ के लिए अपनी ज़िंदगी वक़्फ़ कर दी थी

जनाब अबदुर्रहमान दाउदी नाज़िम ज़िला जमात-ए-इस्लामी हिंद निज़ामाबाद ने जमात-ए-इस्लामी मर्कज़ी इजतिमा में बउनवान हयात-ओ-सीरत हज़रत-ए-शैख़ अबदुलक़ादिर जीलानी (रह०) ख़िताब करते हुए कहा कि जितने भी औलिया इकराम, मुफ़स्सिरीन मुज्तहिदीन ने इस दीन की तौसीअ के लिए बड़ी बड़ी क़ुर्बानियां दी हैं और इसी वजह से उम्मत ए मुस्लिमा का वजूद बाक़ी है, नई नस्ल के सामने जो इस्लाहात, तालीमात इस्लाम में मुरव्वजा थे दीन को समझाने के लिए और इसकी हक़ीक़त को समझाया जाए।

पांचवें-ओ-तेरहवीं हिज्री के बाद जो हालात थे इस को सामने रखते हुए उन्होंने लोगों की तर्बीयत की। ईमान-ओ-तज़किया नफ्स, तसव्वुफ़ ख़ानक़ाह ये ऐसी इस्तेलाहात हैं इसकी गहिराईयों में जाकर सही हक़ीक़त को मालूम करना है ताकि इसके मंशा को समझने में आसानी हो।

औलयाए अल्लाह की ज़िंदगीयों पर नज़र डालें तो मालूम होगा कि उन्होंने चार बुनियादी कामों पर लगाया। उन्होंने अपनी ज़िंदगी दावत-ओ-तब्लीग़ के लिए वक़्फ़ कर दी थी। जो इल्म उन्होंने हासिल किया था मुख़्तलिफ़ लोगों और शागिर्दों में मुनक़सिम कर दिया था, जो हालात उस वक़्त थे ये बिलकुल मुम्किन ना था कि कोई ऐसी तंज़ीम क़ायम की जाती जो इजतिमाई जद्द-ओ-जहद कर सकती थी।

उन्हों ने एक नई शक्ल ख़ानक़ाह की बनाई और इसके ज़रीया दावत फैलाने और उनके मसाइल हल करते थे और ये मरबी भी तैयार करते थे। तस्नीफ़ और तालीफ़ का काम भी उन्होंने इंसानों की रहनुमाई के लिए लिखी गई किताबें तहरीर किए जिसके ज़रीया हिदायत का सामान मुहय्या कराया गया और कई रिसाले कुतुब मजमुए भी आज मौजूद हैं।

वाज़-ओ-नसीहत के ज़रीया लोगों को राह रास्त पर लाने का काम किया। शेख़ बाएज़दबस्तानी, ख़्वाजा बंदा नवाज़, शहाबुद्दीन
सहरवर्दी ऐसे बेशुमार औलिया हैं जो इस काम में लगे हुए थे। पांचवें हिज्री में इस्लामी दुनिया मुख़्तलिफ़ फ़िरक़ों में बटी हुई थी ऐसे ज़माने में हज़रत शेख़ अबदुल क़ादिर जीलानी ने बुला मुबाल्ग़ा दावत दीन का काम अंजाम दिया।

सैयद अबू सालेह आप के वालिद हैं, जीलान जो एक शहर है वहां पैदा हुए, मुख़्तलिफ़ उस्तादों से दीन इल्म हासिल किया, आप एक ज़हीन शख़्सियत के मालिक थे, बचपन से ही बड़े नेक थे। आला किरदार आप (रह०) की ज़िंदगी का वस्फ़ था। बुराई को मिटाने की वजह से आप को मुही उद्दीन यानी दीन को क़ायम करने का नाम दिया गया।

बग़दाद में एक मदर्सा निज़ामीया क़ादरिया की बुनियाद डाली। दावती और इस्लाही तक़रीरें मक्का में हुआ करती थीं। दावती इजतिमा में 70 हज़ार अफ़राद होते थे, 700 शागिर्द आप की तक़रीर तहरीर करते थे। आप (रह०) बहुत ज़्यादा नर्म दिल थे, शागिर्दों पर बे
दरेग़ ख़र्च करते थे। नसीहत वाज़ दरस-ओ-तदरीस आप का पसंदीदा मशग़ला था।

एक लाख से ज़्यादा अफ़राद आप( रह०) के हाथ पर गुनाह से ताएब हुए थे। दौरान ख़िताब मौसूफ़ ने आप (रह०) की चंद किताबों के हवाले भी दिए। मुक्तो बात महबूब सुबहानी आप (रह०) की मशहूर किताब है। फ़र्ज़ंद सैफ उद्दीन ने आप (रह्०) की नमाज़ जनाज़ा पढ़ाई।