हुज़ूर खत्मी मर्तबत (स.व.) को हक़ ताला ने सीर ता पा पैकर मोजिज़ा बनाकर मबऊस फ़रमाया। आप की एक एक बात मोजिज़ा। आप की हर हर अदा मोजिज़ा बल्कि आप किसी शए पर निगाह करम फ़र्मा दें तो वो भी मज़हर मोजिज़ा बन जाय। मौलाना रोम हुज़ूर (स.व.) के एक मोजिज़ा का ज़िक्र करते हुए फ़रमाते हैं,
तर्जुमा: अबु जहल के हाथ (की मुट्ठी) में कंकरीयां थीं जो कहने लगी कि ए मुहम्मद (स.व. ) ! जल्दी बताओ कि (मेरी मुट्ठी में) ये किया है?,
तर्जुमा: (कहने लगी)। अगर तुम रसूल (पैग़ंबर ए इलाही) हो तो (बताओ) मेरे हाथ में क्या चीज़ पोशीदा है। जबकि तुम आसमान तक के भेदों से वाक़िफ़ हो, यानी आप तो आस्मानों की ख़बर देते हैं तो फिर मेरे हाथ की ख़बर देना तो आप के लिए मामूली बात होगी।,
तर्जुमा: (आप स.व. ने) फ़रमाया अगर तू चाहे तो मैं बतादूं कि ये किया है या वो (चीज़ें) ख़ुद बोल उठें कि हम सच्चे और बरहक़ (पैग़ंबर) हैं, अबु जहल ने दूसरी बात की ख़ाहिश की तो आप (स.व.) ने फ़रमाया,
तर्जुमा: फ़रमाया कि तेरे हाथ में छः कंकरीयां हैं। (अब) हर एक से साफ़ (लफ़्ज़ों में) तस्बीह सुन ले,
तर्जुमा: उस की मुठी में की हर कंकरी बिलातवक़्कुफ़ (बतौर) शहादत कलिमा पढ़ने लगी।,
तर्जुमा (हर कंकरी) कलीमा बोल उठी ।,
तर्जुमा: जब अबु जहल ने कंकरियों से ये सुना तो ग़ुस्से से उन कंकरियों को ज़मीन पर दे मारा,
तर्जुमा: (अबु जहल ने हुज़ूर (स.व.) से कहा)तुम सा कोई जादूगर ना होगा। तुम ही जादूगरों के सरदार और सरताज मालूम होते हो।, मोजिज़ा देखने के बाद हिदायत पाने के बजाय अबु जहल की बदबख़ती बेदीनी और कुफ्र में इज़ाफ़ा पर मौलाना फ़रमाते हैं,
तर्जुमा: इस के सरपर ख़ाक पड़े कि वो (अज़ल से) अंधा और मलऊन था। इस की आँख इब्लीस की (आँख) थी जो (आदम अलैहि स्सलाम के) ख़ाकी पुतले को देखने वाला था (और उन की फ़ज़ीलत से चशमपोशी करने वाला था),
दरस बसीरत:,
१) अल्लाह ताला ने अपने हबीब (स.व.) को एसी निगाह नबुव्वत से नवाजा और पोशीदा चीज़ों का वो इल्म अता फ़रमाया कि आप(स.व.) ने अबु जहल की मुठी में छुपि होई ना सिर्फ कंकरियों से बाख़बर फ़र्मा दिया बल्कि उन कंकरियों की तादाद छः होने तक की इत्तिला दे दी।,
२) निगाह मुस्तफ़ा का ख़ुदादाद एजाज़ मुलाहिज़ा हो कि इस की बदौलत आप(स.व.) ने बेजान कंकरियों को जान वाला फिर जान वाली कंकरियों को ज़बान वाला और ज़बान वाली कंकरियों से निकलने वाले कलिमा को ईमान वाला बना दिया।,
३) अपनी मुठी में छपी हुई कंकरियों की ज़बानी कलिमा सुनते ही अबु जहल ने इन कंकरियों को तूरंत ज़मीन पर फेंक दीया जिस से ये सबक़ मिला कि हम भी ख़ुदा नख़्वास्ता अगर कभी किसी दुश्मन के पंजा या क़ब्ज़ा में गिरफ़्तार हो जाएं तो एसे बुरे वक़्त कलिमा पढ़ने से हमें भी अल्लाह ताला दुश्मन के चंगुल से नजात अता फ़र्मा दे गा।,
४) कंकरियों की ख़ुश नसीबी कि अबु जहल के फेंकने पर कलिमागो कंकरियों को कदम-ए-मुस्तफ़ा में जगह मिल गई। इसी तरह ख़ुलूस दिल से कलिमा पढ़ने वाले मोमिन को भी कुछ अजब नहीं कि ताजदारमदीना(स.व.) के क़दम में जगह नसीब होजाए, इन की मेराज के वो नूर-ए-कदम तक पहुंचे, अपनी मेराज कि हम उन के क़दम तक पहुंचे,
५) अबु जहल के मुंह से निकले अलफ़ाज़ आप अगर रसूल हैं तो मेरे हाथ में छूपी हुई क्या चीज़ है बताईए कि इस का आप को आस्मानी इल्म ज़रूर होगा शाहिद हैं कि अबु जहल अगरचे हुज़ूर अकरम (स.व.) को रसूल या नबी तस्लीम नहीं करता था लेकिन वो इस हक़ीक़त पर यक़ीन रखता था कि जो रसूल ए ख़ुदा होता है उसे छूपी हुई बातों का इल्म होता है मगर अफ़सोस कि वो शख़्स अक़ीदा में अबु जहल से भी गया गुज़रा और कम नसीब है जो रसूल करीम स.व. को रसूल और नबी तो मानता है लेकिन रसूल या नबी की सिफ़त यानी छिपी चीज़ों से मुताल्लिक़ आप के ख़ुदादाद इल्म का इनकार करता है,
ख़ुलासा, जिस तरह अनबीया साबक़ीन अल्लाह के हूक्म से मुर्दे इंसानों को ज़िंदा कर देते थे इसी तरह आक़ा ए नामदार(स.व.) ने भी मुर्दा इंसानों को ज़िंदा करने का मोजिज़ा दिखाया है (मुलाहिज़ा हो शवाहीदूलअन्बीया) लेकिन कंकरियों जैसी बेजान मख़लूक़ में जान ज़बान और ईमान पैदा कर दिखाने का मोजिज़ा तो सिर्फ और सिर्फ हुज़ूर स.व. का मुनफ़रिद एजाज़ और अछूता एज़ाज़ है। गोया कायनात की सारी मख़लूक़ात जैसे जमादात होँ कि नबातात या हेवानात होँ कि जिन ओ ईनस सब को क़ादिर-ए-मुतलक़ ने अपने हबीब (स.व.) के ज़ेर तसर्रुफ़-ओ-इख़तियार कर दिया है।, इलावा अज़ीं बडी शान के हामिल हूजूर स.व. ने अपनी चशम हक़बीं और माज़ाग़ निगाही से जब ख़ालिक़ ए कायनात के अनवार तक को बीला हिजाब मुलाहिज़ा फ़र्मा लिया तो अबु जहल के हाथ में छीपी कंकरीयां तो कुजा कौनैन की अब कौनसी शई है जो निगाह मुस्तफ़ा से पोशीदा रह सकती है।