जमशेदपुऱ, 07 मार्च: तीरंदाज दीपिका कुमारी के चैंपयिन बनने की राह आसान नहीं थी। आगे बढऩे की शुरुआत दीपिका ने अपने रिक्शा चलाने वाले वालिद से दस रुपये लेकर की थी।
दिल्ली राष्ट्रमंडल खेलों में दो स्वर्ण पदक हासिल करने वाली दीपिका के वालिद जमशेदपुर में रिक्शा चलाते थें।
उनके पास अपनी बिटिया रानी को देने के लिए तब दस रूपए भी नहीं थे। इसलिए उसने अपनी बिटिया को तीरंदाज बनाने का कभी ख्वाब नहीं दिखाया था। क्योंकि ख्वाब पूरा करने के लिए दीपिका के वालिद के पास न तो पैसा था और ना ही वक्त।
लेकिन जब बिटिया ने तीरंदाजी के मुकाबले में हिस्सा लेने के लिए वालिद से पैसे मांगे थे, तब वालिद ने इंकार कर दिया था। लेकिन बेटी की जिद के आगे वे झुक गए थे।
दीपिका किसी जिला स्तर पर टूर्नामेंट में हिस्सा लेना चाहती थी। लेकिन उनके वालिद ने साफ मना कर दिया था । दीपिका ने हार नहीं मानी और वालिद को उनकी बात माननी पड़ी। दीपिका के वालिद शिवनारायण के मुताबिक, कहा ठीक है और उसे दस रुपए दिए और वह लोहारडंगा में खेलों में हिस्सा लेने चली गई, जहां उसने जीत दर्ज की |
खातून तीरंदाज का यह पहला टूर्नामेंट था जहां से उनके स्टार बनने की शुरुआत हुई। इसके बाद भी हालांकि उन्हें अपने वालिद को मनाने के लिए काफी मिन्नतें करनी पड़ी थी। आज उनके वालिद मानते हैं कि उनकी बेटी सही थी।
दीपिका कुमारी के वालिद शिवनारायण महतो, एक ऑटो रिक्शा ड्राइवर हैं और उसकी वालदा गीता महतो रांची मेडकिल कॉलेज में एक नर्स का काम किया करती है। दीपिका की वालदा का कहना है कि वह अपने हदफ ( ट्रागेट) को लेकर काफी सजग रहा करती थी। बचपन में वह पत्थरों के साथ आम को अपना निशाना बनाया करती थी।