कम्युनिस्टों को लाठी खाने दो ये सब हमारी सरकार के खिलाफ प्रदर्शन करने आये हैं

जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय में बॉयज हॉस्टल में 5 दिनों पहले हुई पुलिस की रेड के विरोध में इन दिनों चल रहे छात्र आंदोलन पर जामिया के कुछ सक्रीय छात्रों ने  बताया कि आंदोलन में  शामिल एक छात्र संगठन कि सक्रियता संदिग्ध है I कुछ छात्र आंदोलन को जामिया कीतहज़ीब के विरूद्ध मानते हैं I  एक शाम जामिया से निकल कर सड़क पर चल रही छात्रों की एक टोली ने बताया कि आंदोलन में शामिल और सक्रीय छात्र संगठन NSUI जामिया, से जुड़े कुछ कार्यकर्ताओं की सक्रियता पूरी तरह संदिग्ध और विश्वविद्यालय प्रसाशन से मिले होने की  तरफ इशारा कर रही है,

मुझे  NSUI  के कार्यकर्ताओं की इन गतिविधियों के बारे में यह सब सुन कर ज़रा भी ताज्जुब नहीं हुआ क्योंकि 2008 में जब मुझे जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में पढ़ने और रहने का मौका मिला था उस समय इस संगठन और संगठन से जुड़े कुछ बहुत ही तजुर्बेकार और सक्रीय कार्यकर्ताओं को करीब से देखने और समझने का मौका मिला था I 2008 में M A के लिए दाखिला टेस्ट पास  करने के बाद मैंने अपने एक स्कूल के दोस्त रिज़वान (काल्पनिक नाम) को फ़ोन करके सूचित किया जो उन दिनों JNU में पढाई करता था I दाखिले के दिन JNU कैंपस में पहुँचने पर उसने मेरा बड़े तपाक से स्वागत किया और दाखिले की तमाम कार्रवाई में वह मेरे साथ रहा. .क्लासेज शुरू होने के बाद जब तक मुझे हॉस्टल नही मिला था रिज़वान ने अपने एक दोस्त के रूम में मेरा रहने का बंदोबदस्त करवा दिया थाI स्कूल के दिनों में रिज़वान मुझसे 2 क्लास ऊपर थे इस लिए स्कूल की तहज़ीब का लिहाज़ करते हुए हम उन्हें रिज़वान भाई कहते आये थे सो JNU में भी हम उन्हें रिज़वान भाई ही कह कर संबोधित किया करते थे I कुछ दिनों बाद जब मैं कैंपस से ज़रा आशना हुआ और उड़ने फुदकने के लिए अपने परों को ज़रा फड़फड़ाया ही था कि उनके साथियों ने उन्हें सलाह दी कि अमा यार रिज़वान! इस लड़के को भी अपने संगठन से जोड़ो I यहाँ ये बताता चलूँ कि रिज़वान भाई NSUI नामक छात्र संगठन से सम्बंधित थे और कैंपस के बहुत आला किस्म के तजुर्बेकार और राजनितिक तौर पर बहुत  ही धूर्त कार्यकर्ताओं में से एक थे I अपने साथियों कि सलाह पर रिज़वान भाई ने मुझे राजनितिक तौर पर संवेदनशील बनाने हेतु सबसे पहले जिस राजनितिक सबक को spoon feed  करने के लिए चुना वह सबक मैं पिछले ही छात्र संगठन में पढ़ चूका था, M A से पहले मैं एक ऐसे छात्र संगठन से जुड़ा था जिसका राजनैतिक दर्शन धर्म पर आधारित था I जहाँ गतिविधियों के नाम पर कोई खास काम नही था बल्कि अपने “FATHER ORGANISATION” के लिए कार्डर की तैयारी थी, हम छात्रों से जुड़ी किसी भी समस्या में भाग लेने से पहले इस बात पर ग़ोर करते और बहस करते कि भाग लेने वाले दूसरे संगठन कि नैतिक पृष्ट भूमि कैसी है? मैंने रिज़वान भाई के हवाले से जब NSUI को जानना और समझना शुरू किया तो मुझे वहां ऊपर से एक साफ़ शफ़्फ़ाफ़ जम्हूरी मूल्यों पर आधारित छात्रसंगठन मिला जो किसी हद तक कैंपस में सक्रीय भी था, इनके ज़िम्मेदारान को लोग जानते भी थे और ये लोग कुछ छात्रों को अपने करीब लाने की थोड़ी बहुत कोशिश भी कर लिया करते थे I मगर कैंपस के छात्रों में लेफ्ट की राजनीती करने वालों का जो दबदबा था और जिस तरह की उनकी वाइब्रेंट (vibrant) छात्र राजनीती थी उसने कई बार मुझे अपनी तरफ आकर्षित किया मगर पिछले संगठन और हमारे रिज़वान भाई ने मेरी इतनी अच्छी राजनितिक ट्रेनिंग की थी ‘गोया मैं उधर गया बस जहन्नुम में धड़ाम से औंधे मुंह गिरा’I जैसे जैसे JNU कैंपस में हमारे दिन बीत रहे थे मेरी राजनितिक संवेंदना में तबदीली जारी थी मैं लेफ्ट की राजनीती करने वाले छात्र संगठनों से तो कुर्बत का सौदा जन्नत के बदले न कर सका मगर खुद को सेकुलर, जम्हूरी, मॉडर्न और प्रोग्रेसिव मूल्यों पर राजनीती करने वाले छात्र संगठन को बहुत ही करीब से जान्ने का अवसर हासिल किया I आइए अब संगठन के अंदर की बात करें जो मुझे उन से बाज़ाब्ता जुड़ने में हमेशा रुकावट बनी रही, वह ये थी कि उन दिनों कई मुद्दों पर मैंने रिज़वान भाई और उनके संगठन के शीर्ष के लोगों को कुंठित होते देखा, वह किसी भी तरह लेफ्ट को कैंपस में मात देना चाहते थे मगर ज़मीन पर जो लेफ्ट की छात्र पॉलिटिक्स थी उसका मुकाबला ये मेहनत और ईमानदारी से न कर के अपनी धूर्तता और चालाकी से छात्रों में अपनी जगह बनाने हेतु एक तो लेफ्ट के नेताओं का चरित्र हनन करने के लिए एक ज़मीनदोज़ मुहीम चला रहे थे, खुद रिज़वान भाई ने मुझे कई बार क़ायल करने के लिए लेफ्ट में मुस्लिम लड़कियों के हिन्दू लड़कों से प्रेम प्रसंग की कहानी छेड़ी तो कभी शराब पीने और आवारागर्दी करने तक की बात कह कर मुझे लेफ्ट से घृणा करने के लिए उकसाया मगर मैं जब भी उनसे लेफ्ट राजनीती का राजनितिक तोड़ करने के लिए किसी ठोस योजना की बात करता ये लोग मुझे कभी संतुष्ट नही कर सके बस वही ले दे के हिन्दू-मुस्लमान,  कम्युनिज़म-इस्लाम, शराब-लड़की, जन्नत-जन्नुम आदि पर आकर अटक जातेI मुझे खुद पर बड़ा गुस्सा भी आता था कि मैं किन लोगों में आकर फँस गया हूँ ये जो कुछ मुझे समझा रहे हैं ये लोग तो खुद भी उसी तरह की बातों में लिप्त हैं मसलन एक साहेब जिनके नज़दीक मुस्लिम लड़कियों का हिन्दू लड़कों के साथ दोस्ती करना बिलकुल गुनाह था और ये सब कम्युनिस्ट होने की वजह कर था खुद उनकी गर्ल फ्रेंड उनके मज़हब की नहीं थीI एक बार UGC से मिलने वाली छात्रवृति बढ़ाये जाने पर UGC ऑफिस का घेराव करने गए तो हमारे नेता सबसे पीछे थे मेरे पूछने पर रिज़वान भाई ने कहा कम्युनिस्टों को लाठी खाने दो ये सब हमारी सरकार के खिलाफ प्रदर्शन करने आये हैं, मैंने कहा तो फिर हमलोग क्यों आये हैं अपनी ही सरकार के विरूद्ध? तब उन्हों ने कहा यार! तुम से राजनीती नही होगी तुम बहुत भोले हो, हमारे यहाँ आने कामक़सद ये है कि कैंपस के छात्रों में ये संदेश जाये कि हम छात्र संगठन हैं इसलिए छात्रों के हितों के साथ हैं, आखिर कैंपस में हमें वोट छात्र ही देंगे न, तो उन्हें दिखना भी चाहिए कि हम उनके साथ हैं वैसे हम यहाँ अपनी सरकार के विरूद्ध हो रहे प्रदर्शन को किसी भी वक़्त कंट्रोल भी कर सकते हैं और कम्युनिस्टों के आंदोलन की रूप रेखा को बिगड़ना भी तो ज़रूरी है ना I

कैंपस में रहते हुए अभी  2  महीने गुज़रे थे कि छात्र संघ के चुनाव की गूंज हर तरफ सुनाई देने लगी.  NSUI में भी संगठन की मीटिंग होने लगी जिनमे से कुछ में रिज़वान भाई के साथ मैं भी शामिल हुआ इसी  दौरान मुझ पर कुछ बड़े खुलासे हुए कि कैंपस में खुद को सेक्युलर छात्र संगठन का ज़ाहिरी चेहरा लिए फिरता ये संगठन  ABVP जैसे साम्प्रदायिक संगठन से मिला हुआ हैI छात्र संघ चुनाव के लिए संगठन ने जो रणनीति बनायीं थी उसमे लेफ्ट को मात देने के लिए संगठन के नेताओं ने अंदर खाने ही ABVP के नेताओं से मीटिंग की थी और कुछ मुद्दों पर उन से जमीनदोज समझौते भी किये थेI दुर्भाग्यतः लिंगदोह समिति की सिफारिशात की वजह कर उस साल का छात्र संघ का चुनाव मुल्तवी हो गया था

संगठन के नेताओं और रिज़वान भाई के बीच की कुछ अनोपचारिक बातों में मुझ पर ये भी वाजेह हुआ कि कैंपस में प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह जी की आमद के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे लेफ्ट छात्र संगठनों के छात्रों की पिटाई करने में  ABVP  ने  NSUI  का साथ दिया था. एक दफा कैंपस में काम कर रहे मज़दूरों के हक़ को लेकर छात्रों ने जब रजिस्ट्रार ओवैस अहमद को कार में बंद कर उनकी कार को रस्से से बांध दिया था तो NSUI के नेताओं ने छात्रों और यूनिवर्सिटी प्रसाशन दोनों कि तरफ बैकवक़्त होने का रोल निभाया था I

यहाँ ये वाज़ेह करता चलूँकि  2014 में कांग्रेस कि की हार की एक बड़ी वजह ये रही है कि उनके छात्र संगठन का चरित्र भी लगभग अपने  “father organisation” से ज़रा भी जुदा नहीं हैI  राष्ट्रिय अस्तर पर कांग्रेस को वोट करना  हमारी मज़बूरी है क्योंकि कोई राजनैतिक विकल्प राष्ट्रिय अस्तर का नहीं है, मगर क्षेत्रीय स्तर पर या छात्र राजनीती में बहुत से विकल्प उपलब्ध हैं जिन पर भरोसा करके आप खुद को संतुष्ट कर सकते हैं और अपने हक़ की लड़ाई लड़कर जीत सकते हैं मगर NSUI पर अगर आपने भरोसा किया तो इसके दोगले संगठनात्मक चरित्र की वजह कर आप हमेशा खुद को ठगा हुआ ही पाएंगेI

जामिया के वर्तमान आंदोलन में भी NSUI का चरित्र किसी भी तरह से मेरे  JNU के अनुभव से जुदा नहीं है I

इक़बाल हुसैन
(लेखक 2008 में M.A. उर्दू में JNU के छात्र थे )
(लेख के विचार पूर्णत: निजी हैं इस लेख को लेकर अथवा इससे असहमति के विचारों का भी TheSiasat Daily –hindi  स्‍वागत करता है । इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है।)

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