करतूतों का बदला

(मौलाना मुफ्ती शफी )अल्लाह तआला कुरआन पाक में इरशाद फरमाते हैं कि ‘तुम्हे जो कुछ मुसीबतें पहुंचती है वह तुम्हारे अपने हाथों के करतूत का बदला है और भी तो बहुत सी बातों से वह दरगुजर फरमा लेता है। (सूरा शूरा-30)

अल्लाह तआला फरमाता है-‘लोगों! तुम्हे जो कुछ मुसीबतें पहुंचती है वह सब दरअस्ल तुम्हारे अपने किए गुनाहों का बदला है और वह तुम्हारी बहुत सी नाफरमानियों से चश्मपोशी फरमाता है और उन्हें माफ फरमा देता है अगर हर एक गुनाह पर पकड़े तो तुम जमीन पर चल फिर भी नहीं सको।’ सही हदीस में है कि मोमिन को तकलीफ गम और परेशानी होती है उसकी वजह से अल्लाह तआला उसकी खताएं माफ फरमाता है यहां तक कि एक कांटा लगने के एवज भी।

जब आयत ‘फमन यामन मिसकाल….’ उतरी उस वक्त हजरत सिद्दीक अकबर खाना खा रहे थे आपने उसे सुनकर खाने से हाथ हटा लिया और कहा या रसूल (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम)! क्या हर बुराई भलाई का बदला दिया जाएगा? आप ने फरमाया सुनो तबीयत के खिलाफ जो चीजें होती हैं यह सब बुराइयों के बदले हैं और सारी नेकियां अल्लाह के पास जमा शुदा हैं।

हजरत अबू इदरीस (रजि0) फरमाते हैं यही मजमून इस आयत में बयान हुआ है। हजरत अली (रजि0) फरमाते हैं कि आओ मैं तुम्हें किताबुल्लाह की अफजलतर आयत सुनाऊं और साथ ही हदीस भी। हुजूर ने हमारे सामने यह आयत तिलावत की और मेरा नाम लेकर फरमाया सुन मैं इसकी तफसीर भी तुझे बता दूं तुझे जो बीमारियां सख्तियां और बलाएं, आफतें दुनिया में पहुंचती हैं वह सब बदला है तुम्हारे अपने आमाल का अल्लाह तआला का हुक्म उससे बहुत ज्यादा है कि फिर उन्हीं पर आखिरत में भी सजा करे और अक्सर बुराइयां माफ फरमा देता है तो उसके काम से यह बिल्कुल नामुमकिन है कि दुनिया में माफ की हुई खताओं पर आखिरत में पकड़े (अहमद)

इब्ने अबी हातिम में यही रिवायत हजरत अली (रजि0) के कौल से मरवी है उस में है कि अबू जईफा (रजि0) जब हजरत अली (रजि0) के पास गए तो आप ने फरमाया मैं तुम्हें एक ऐसी हदीस सुनाता हूं जिसे याद रखना हर मोमिन का फर्ज है फिर यह तफसीर आयत की अपनी तरफ से करके सुनाई। मसनद में है कि मुसलमान के जिस्म में जो तकलीफ होती है उसकी वजह से अल्लाह तआला उसके गुनाह माफ फरमाता है।

मसनद ही की और हदीस में है कि जब ईमानदार बंदे के गुनाह बढ़ जाते हैं और उसके कफ्फारे की कोई चीज उसके पास नहीं होती तो अल्लाह उसे किसी रंज व गम में मुब्तला कर देता है और वही उसके उन गुनाहों का कफ्फारा हो जाता है। इब्ने अबी हातिम में हजरत हसन बसरी से मरवी है कि इस आयत के उतरने पर नबी करीम (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) ने फरमाया उस अल्लाह की कसम जिसके हाथ में मोहम्मद की जान है कि लकड़ी की जरा सी खराश हड्डी की जरा सी तकलीफ यहां तक कि कदम का फिसलना भी किसी न किसी गुनाह पर है और अभी अल्लाह के दरगुजर किए हुए बहुत से गुनाह तो यूं ही मिट जाते हैं।

इब्ने अबी हातिम ही में है कि जब हजरत इमरान बिन हसीन (रजि0) के जिस्म में तकलीफ हुई और लोग उनकी अयादत को गए तो हजरत हसन ने कहा आप की यह हालत तो देखी नहीं जाती हमें बड़ा सदमा हो रहा है आपने फरमाया ऐसा न कहो जो तुम देख रहे हो यह सब गुनाहों का कफ्फारा है और अभी बहुत से गुनाह तो अल्लाह माफ फरमा चुका है।

————–बशुक्रिया: जदीद मरकज़