हिन्दूस्तान को मुख़्तलिफ़ उनवानात पर तनाज़आत का सामना करना पड़ रहा है। अवामी शख़्सियात का किसी मौज़ू पर इज़हार-ए-ख़्याल अगर मायूब हो तो इस से मुआशरा पर बुरा असर पड़ता है। जब बात करप्शन की हो तो इस पर राय ज़नी करते वक़्त एहतियात का दामन छूट जाये तो बहुत बड़ा मसला घड़ा होता है।
सोशलिस्ट और मुसन्निफ़ अशीष नंदी ने भी ऐसा ही मसला खड़ा कर दिया है। मुल्क में रिश्वत सतानी की लानत पर उन की राय ने अवामी शोबे में हलचल पैदा करदी। आला ज़ात की सनअतों को ख़ुश करने और निचली ज़ात के लोगों पर उंगलियां उठाने से किसका भला होगा।
ये चंद मख़सूस मुसन्निफ़ीन या ग्रुप के अरकान को इस का अंदाज़ा होगा। अशीष नंदी ने दर्ज फ़हरिस्त ज़ातों, कबायलियों और दीगर ज़ातों से ताल्लुक़ रखने वाले ऑफीसरों, आम कर्मचारी पर उंगली उठाई उनके रिमार्कस पर शदीद रद्द-ए-अमल ज़ाहिर किया गयाऔर उनके ख़िलाफ़ एफ़ आई आर भी दर्ज कर दिया गया।
उन्होंने अपने रिमार्कस की संगीनी को महसूस किया तो वज़ाहत की कि उन के रिमार्कस को तोड़ मरोड़ कर पेश किया गया। साबिक़ चीफ़ मिनिस्टर यूपी और दलित लीडर मायावती ने तो उन्हें फ़ौरी गिरफ़्तार करने का मुतालिबा किया है। जुए पुर लिटरेचर फ़ैस्टीवल में अदीबों को बोलने की आज़ादी का मतलब ये नहीं होना चाहीए कि समाज के किसी मख़सूस तबक़ा या तबक़ात पर उंगली उठाई जाये।
लफ़्ज़ करप्शन किसी ख़ास ज़ात या तबक़ा से ताल्लुक़ नहीं रखता। करप्शन की ख़राबी के लिए आला और अदना का इमतियाज़ नहीं होता। ये लानत समाज के लिए नासूर बन गई है। अशीष नंदी को हाल ही में दुनिया के 100 आला अवामी दानिश्वरों में शुमार किया गया है, मगर उन की एक राय ने उन्हें मुआशरा की नज़रों में मायूब बनादिया।
करप्शन के बारे में बात की जाये तो छोटी रिश्वत सतानी से लेकर करोड़ों रुपये के कमीशन तक को इन दिनों जायज़ तस्लीम किया जाने लगा है। सयासी, समाजी और दीगर शोबों में हर सतह की क्रप्शन को एक काबिल-ए-क़बूल समाजी रवैय्या मान कर क़बूल किया जा रहा है तो कोई किस पर इल्ज़ाम आइद करे। ये भी मशहूर है कि ईमानदार वही कहलाता है जिस को मौक़ा नहीं मिलता।
ये भी अपनी जगह हक़ीक़त है कि समाज का पूरा ढांचा ख़राब नहीं है बल्कि कुछ हिस्सा इस से मुतास्सिर है। अगर पूरे का पूरा समाजी ढांचा क्रप्शन ज़दा होता तो ये मुआशरा यूं सांस लेता नज़र नहीं आता। सिस्टम में बाअज़ ख़राबियों की वजह से क्रप्शन को फ़रोग़ मिल रहा है।
अशीष नंदी की बात पर नाराज़ होने वाले या इससे ज़ेरलब ख़ुशी का इज़हार करने वाले हर दो को ये समझना चाहीए कि आज के समाजी मुआशरे में हर एक का ना सही चंद ख़ास लोगों का ये रवैय्या बन गया है कि करप्शन के ख़िलाफ़ बात करना तो पसंद किया जाये लेकिन जब अमली तौर पर मौक़ा मिलता है तो करप्शन से इनकार नहीं किया जाता।
जिन लोगों को ऐसी सूरत-ए-हाल का सामना करना पड़ता है जिस में रिश्वत देना या लेना मुम्किन हो तो वो बड़ी आसानी से ये काम करते हैं और ऐसा करने में उन्हें कोई बुराई भी नज़र नहीं आती। आज सरकारी महिकमों में रिश्वत सतानी अहम चीज़ बन गई है। काम निकलवाने के लिए ग़रज़मंद रिश्वत देना चाहता है और काम करने वाला भी रिश्वत के लिए लालची नज़र आता है।
ये तल्ख़ हक़ीक़त हिन्दूस्तान के कम-ओ-बेश तमाम महकों में पाई जाती है। दीगर मुल्कों में भी रिश्वत का चलन होगा लेकिन इतना नापसंदीदा तरीक़ा पर इसे आम नहीं किया गया। हिन्दूस्तान के पड़ोसी मुल्क चीन में अगर चीका रिश्वत ली जाती हो मगर वहां की तरक़्क़ी और सरकारी महिकमों के कामों को देख कर ये अंदाज़ा नहीं होगा कि वहां हर कोई रिश्वतखोर है।
मग़रिबी मुल्कों में भी क्रप्शन का चलन आम होता तो वहां तरक़्क़ी का ग्राफ़ ऊंचा हरगिज़ नहीं होता। हिन्दूस्तान में इन दिनों रिश्वत की धौंस सियासतदानों से लेकर एक आम चपरासी तक फैली हुई है। ख़ासकर सियासतदानों में बेग़र्ज़ ग़ैर मंतक़ी दबे जवाज़, मुतालिबा को पूरा करने के लिए रिश्वत ली जाती है।
हर बड़ी पार्टी का लीडर क्रप्शन के मसला पर ख़ामूशी इख़तियार करता है। इंतिख़ाबात में हर बड़ी और छोटी पार्टी के लीडर से अवाम यही उमीद रखते हैं कि वो कोई दियानत दाराना पालिसी वज़ा करेगा। कोई रिश्वत से पाक नया रोड मयाप लाएगा लेकिन जब इंतिख़ाबात होते हैं और सियासतदानों का हदफ़ पूरा होता है तो वो अपनी क्रप्शन की दुनिया में खो जाते हैं।
अशीष नंदी के रिमार्कस पर एससी, एसटी तबक़ा के लोगों ने एहतिजाज किया। इस के बरअक्स आला ज़ात के अफ़राद ने कोई ख़ास रद्द-ए-अमल ज़ाहिर नहीं किया। यहीं से समाजी रवैय्या में पाया जाने वाला फ़र्क़ ज़ाहिर होता है और इस के लिए कौन ज़िम्मेदार है, ये गौरतलब अमर है।
हिन्दूस्तानी जमहूरीयत में पैसा और करप्शन का नारवा किरदार कुछ ऐसा माहौल पैदा कररहा है जिस से हमारे मुल्क के बुनियादी सतून मुतास्सिर होरहे हैं। इस बुराई की इस्लाह कौन करेगा