करप्शन और अवामी ब्रहमी

करप्शन हिंदूस्तान में एक संगीन मसला बन गया है । ज़िंदगी का हर शोबा इस से मुतास्सिर है और मुलक के अवाम उस लानत से बहर क़ीमत छुटकारा पाना चाहते हैं।यही वजह है कि जब भी समाज के किसी भी गोशे की जानिब से करप्शन के ख़िलाफ़ किसी मुहिम का आग़ाज़ किया जाता है या किसी एहतिजाज की शुरूआत होती है तो मुलक के अवाम बेला झिझक उस एहतिजाज के साथ होजाते हैं और इस लानत के ख़िलाफ़ अपनी ब्रहमी और नाराज़गी का इज़हार करने को तैय्यार होजाते हैं।

एसी मिसालें माज़ी क़रीब में हमारे सामने आई हैं जब अवाम ने करप्शन के ख़िलाफ़ मुहिम का ग़ैर मुतवक़्क़े अंदाज़ में साथ दिया था । अवाम चाहते हैं कि किसी भी क़ीमत पर मुल्क से इस नासूर जैसी लानत का ख़ातमा किया जाय और मुलक के अवाम को करप्शन से पाक इंतिज़ामीया और हुक्मरानी फ़राहम की जाय । ऐसा करना हुकूमत का भी फ़र्ज़ अव्वलीन है । करप्शन की लानत हिंदूस्तानी जमहूरीयत को दीमक की तरह चाटती जा रही है और हमारी बुनियादी खोखली करती जा रही है इस के बावजूद इस लानत को ख़तन करना तो दौर की बात है कि इस पर क़ाबू तक करने में कामयाबी नहीं मिल सकी है और ये लानत मुसलसल बढ़ती जा रही है ।

एक के बाद एक स्कैंडल वो भी हज़ारों लाखों करोड़ का होता जा रहा है और मुलक के अवाम सरकारी ख़ज़ाना को चंद मुट्ठी भर राशि अफ़राद के हाथों लुटते हुए बेबसी के साथ देखने पर मजबूर हैं। हुकूमत की जानिब से भी वक़फ़ा वक़फ़ा से ऐलानात किए जाते हैं और ये दावे किया जाता है कि हुकूमत करप्शन की लानत को ख़तन करने केलिए पूरी संजीदगी के साथ काम कर रही है और इस लानत को ख़तन करने केलिए हर मुम्किना इक़दामात किए जाऐंगे । ऐसा नहीं है कि हुकूमत किसी तरह के इक़दामात नहीं करती ।

हुकूमत इक़दामात ज़रूर करती है लेकिन ये इक़दामात करप्शन को ख़तन करने केलिए नहीं होते बल्कि कुरपट और बद उनवान वुज़रा और अहदीदरावं को बचाने केलिए होते हैं। हुकूमत इन वुज़रा और ओहदेदारों के करप्शन की वजह से अपना इमेज मुतास्सिर होता नहीं देखना चाहती और अपने इमेज को बनाए रखने केलिए वो मुलक के अवाम और उन के जज़बात का पास-ओ-लिहाज़ करना ज़रूरी नहीं समझती । यही वजह है कि करप्शन पर किसी तरह से क़ाबू नहीं किया जा सका है और इस में मुसलसल इज़ाफ़ा ही होता जा रहा है ।

आए दिन नित नए स्कैंडलस और अस्क़ामस सामने आते जा रहे हैं यही वजह है कि करप्शन के ताल्लुक़ से अवामी नाराज़गी और ब्रहमी में बदलने लगी है । गुज़शता दिनों साबिक़ मर्कज़ी वज़ीर टेलीकॉम मिस्टर सुख राम को जब करप्शन के एक मुक़द्दमा में सज़ा सुनाई गई और वो अदालत से बाहर आए तो एक नौजवान ने उन पर हमला करते हुए ज़ोद-ओ-कोब करने की कोशिश की ।

इसी तरह आज जब मर्कज़ी वज़ीर-ए-ज़राअत और उन सी पी के सरबराह मिस्टर शरद पवार एक अदबी तक़रीब में शिरकत केलिए गए हुए थे वहां एक नौजवान ने उन्हें तमांचा रसीद करदिया । ये वही नौजवान है जिस ने सुख राम पर हमला किया था । इस नौजवान ने वाज़िह तौर पर कहा कि वो पहले ही से मंसूबा बनाकर आया था कि करप्शन के ख़िलाफ़ अपनी ब्रहमी का इज़हार करेगा । उस शख़्स ने ना सिर्फ मिस्टर शरद पवार को बल्कि मुलक के तमाम ही सियासी क़ाइदीन को कुरपट क़रार देने की कोशिश की है ।

ये वाक़िया हालाँकि अफ़सोसनाक है और इस की मुज़म्मत की जानी चाहीए लेकिन इस से करप्शन के तईं अवाम की ब्रहमी का अंदाज़ा लगाया जा सकता है । ये बात मुलक के अवाम को भी ज़हन में रखनी चाहीए कि क़ानून की ख़िलाफ़वरज़ी का मुक़ाबला क़ानून की ख़िलाफ़वरज़ी से नहीं किया जा सकता । इस के लिए क़ानून के दायरा में रहते हुए काम करने की ज़रूरत होती है ।

करप्शन की लानत और इस की संगीनी अपनी जगह मुल्क भर के अवाम की ब्रहमी और नाराज़गी अपनी जगह है लेकिन नाराज़गी और ब्रहमी के इज़हार का ये जो तरीक़ा इख़तियार किया गया है वो दरुस्त नहीं है । इस से करप्शन के ख़िलाफ़ जद्द-ओ-जहद में मदद नहीं मिल सकती । करप्शन को ख़तन करना है तो जिस तरह हुकूमत और सियासी क़ाइदीन को अपनी रविष बदलनी होगी और पूरी संजीदगी के साथ इस के मुक़ाबला केलिए कमर कसना होगा इसी तरह मुलक के अवाम पर भी ज़िम्मेदारी आइद होती है कि वो करप्शन और रिश्वत के ख़िलाफ़ कार्रवाई में अपना रोल अदा करें और कुरपट-ओ-उनवान क़ाइदीन का मुक़ातआ किया जाय । उन्हें आली तरीन अवामी ओहदों केलिए मुंतख़ब ना किया जाय ।

अवाम को यक़ीनन कुरपट और राशि क़ाइदीन को सबक़ सिखाना चाहीए लेकिन ये सबक़ जमहूरी अंदाज़ में सिखाया जा सकता है । उन्हें अपने वोटों से महरूम करते हुए ये सबक़ सिखाया जा सकता है । जिस तरह सुख राम पर हमला का कोई जवाज़ नहीं हो सकता इसी तरह आज मिस्टर शरद पवार को निशाना बनाने की भी मुदाफ़अत नहीं की जा सकती ।

इसतरह के वाक़ियात की जमहूरीयत में कोई गुंजाइश नहीं है लेकिन हुकूमत को इस लानत की संगीनी को समझना होगा । हुकूमत जब तक करप्शन के ख़िलाफ़ एक मबसूत और जामि हिक्मत-ए-अमली के साथ मैदान में नहीं आती और कुछ हौसला मंदाना इक़दामात नहीं किए जाते उस वक़्त तक इस लानत का ख़ातमा मुम्किन नहीं है और जब तक ये लानत ख़तन नहीं होजाती मुलक के अवाम की नाराज़गी और ब्रहमी पर क़ाबू पाना मुश्किल ज़रूर होगा।