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ये बसरा के बच्चे जिन फुटपाथों पर चल रहे हैं
वहां तक खबर नहीं जाती
और अगर कोई खबर चलती भी है, तो उसका मतलब सिर्फ जंग ठहरता है
इन बच्चों की रेत सी पथरीली आँखों में चाँद गुम है
ये, एक जंग से दूसरी जंग तक
एक सरकार से दूसरी सरकार तक
एक मज़हब से दुसरे मज़हब तक
एक ख्वाहिश से दूसरी ख्वाहिश तक
बिना किसी जादुई चिराग के जल रहे हैं
गोलियों की बारिश यहाँ मुसलाधार हो रही है
ग्रेनेडों और मिसाइलों की पहुँच के बाहर
कुछ बची हुयी जिंदगियां अपने पेट और सर के बल चल रही हैं
रेत के दस्तावेज जितने सुरक्षित हैं
क्योंकि ये अब
आसमां के चाँद तारों के सहारे चल रहे हैं
यहाँ ज़िन्दगी की रफ़्तार जंग के हवाले चल रही है
यहाँ जो जूते दिख रहे हैं, वे जंग की पूरी रात भागे थे
वे अब भी टिके हैं जब तक इन बच्चों में सांसें चल रही हैं
अब इनके टिके रहने में कुछ ही उम्मीद भर फासला है
यहाँ रोटियों का घर तक पहुँचना जंग है
यहाँ काम पाना जंग है
यहाँ सही सलामत घर पहुँचना जंग है
यहाँ अब्बा का घर से दफ्तर जाना जंग है
यहाँ सैर सपाटा जंग है
यहाँ भूख की शिकायत करना जंग है
यहाँ ख्वाब सारे सहमकर सिमट रहे हैं
क्योंकि सुनहेरे ख़्वाबों को ज़मीन पर लाना जंग है
– मुकेश सहाय