कश्मीर विधानसभा भंग होने पर देश के लगभग सभी अखबारों और टीवी चैनलों ने जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक की आलोचना की थी लेकिन मैं ही शायद एक मात्र ऐसा राजनीतिशास्त्री और पत्रकार हूं, जिसने लिखा था- ‘कश्मीरः सही वक्त, सही कदम’ (22 नवंबर 2018) !
मैंने लिखा था कि यदि राज्यपाल के मन में पक्षपात होता तो वे सज्जाद लोन को मुख्यमत्री की शपथ दिला देते, क्योंकि लोन भाजपा की मदद से सरकार बनाने का दावा कर रहे थे। लेकिन उन्होंने हिम्मत दिखाई और विधानसभा भंग कर दी। उस वक्त मेहबूबा मुफ्ती, उमर अब्दुल्ला और कांग्रेसियों ने राज्यपाल मलिक की भर्त्सना करने में जरा भी कसर नहीं छोड़ी लेकिन अब वे क्या कर रहे हैं ?
वे मलिक की तारीफों के पुल बांध रहे हैं। सच्चाई तो यह है कि मलिक ने मेहबूबा और उमर की इच्छापूर्ति की है। वे बराबर मांग करते रहे हैं कि विधानसभा भंग की जाए। मलिक ने राज्यपाल का दायित्व निभाने में जिस साहस और मर्यादा का पालन किया है, वह देश के सभी राज्यपालों के लिए अनुकरणीय है। सत्यपाल मलिक ने कुछ ही हफ्तों में ऐसी छाप छोड़ी है, जिससे कश्मीर की जनता ही नहीं, अलगाववादियों को भी यह भरोसा होने लगेगा कि इस स्वतंत्र बुद्धि के राज्यपाल से कुछ सार्थक बात हो सकती है।
यदि सत्यपाल मलिक चाहें तो वे कश्मीर समस्या को हल करने की पहल भी कर सकते हैं। वे नेता है, जी-हुजूर नौकरशाह नहीं हैं। सत्यपाल अंत्यत सत्यनिष्ठ और साहसी व्यक्ति हैं। अब से 40-45 साल पहले वे छात्र-नेता के रुप में विख्यात हो चुके थे। मैं तभी से उनको गहरे में जानता हूं। ग्वालियर में हमारे साझा मित्र रमाशंकरसिंह के आईटीएम विश्वविद्यालय में भाषण देते हुए मलिक ने उक्त मामले की सारी परतें उघाड़कर रख दीं। वे एनडीटीवी के प्रसिद्ध और साहसी एंकर रवीशकुमार द्वारा उन पर किए गए एक मधुर व्यंग्य का जवाब दे रहे थे।
अपने भाषण में मलिक ने मेरा जिक्र भी कई बार किया। कश्मीर के मामले में मेरी गहरी दिलचस्पी है। मैं इस मसले पर पाकिस्तान के प्रधानमंत्रियों नवाज शरीफ, बेनजीर भुट्टो, असिफ जरदारी, जनरल जिया-उल-हक और जनरल परवेज मुशर्रफ आदि से कई बार बात कर चुका हूं। अपने कश्मीरी नेताओं में शेख अब्दुल्ला, मुफ्ती सईद और हुर्रियत के सभी नेताओं से संवाद करता रहा हूं और ‘‘पाकिस्तानी कश्मीर’’ के ‘प्रधानमंत्रियों’ से भी मेरा संवाद बना हुआ है।
नाॅर्वे के पूर्व प्रधानमंत्री केल बोंडविक से भी संपर्क बना हुआ है। वे आजकल भारत, पाक और दोनों तरफ के कश्मीरी नेताओं से बात कर रहे हैं। हमारी सरकार ने आजकल चुनावी मुद्रा धारण कर रखी है, इसके बावजूद वह चाहे तो राज्यपाल सत्यपाल मलिक के जरिए कश्मीर समस्या का समाधान निकाल सकती है। मुझे विश्वास है कि इस मौके पर इमरान खान भी पीछे नहीं रहेंगे। जनरल मुशर्रफ और अटलजी व मनमोहन सिंहजी ने जो चार-सूत्री फार्मूला बनाया था, उसे फिर से जिंदा करना जरुरी है।
– डॉ. वेदप्रताप वैदिक