कश्मीर के हालात बेकाबू हैं और प्रधानमंत्री जी बलूचिस्तान पर बयान देते हैं

 

सुनते आए हैं, ज़मीं पर अगर कहीं जन्नत है तो वह कश्मीर है! हिमालय की गोद मैं बसा हिन्दुस्तान का ताज़, खूबसूरत वादियाँ, हारे भरे पेड़, झीलें, बर्फ की चादरो से ढके पहाड़ और मैदान!

लेकिन अफ़सोस दो देशो की राजनीति ने इस जन्नत को दोज़ख़् मैं तब्दील कर दिया है! मौजूदा दौर का कश्मीर, मतलब तड़पता कश्मीर, खून से लथपथ, सिसकता और जलता कश्मीर! उग्रवादी बुरहान वानी की मोत के बाद से बिगड़े हलातो को काबू करने मैं केंद्र और राज्ये दोनो नाक़ाम हैं! या यूँ कहें कि दोनो की ही हलातो को काबू मैं करने मैं कोई दिलचसबी नही! 45 दिन से ज़यादा कर्फ्यू, 60 से ज़्यादा मौतें हो चुकी हैं | और हज़ारो की तादात मैं घायल हो चुके हैं, सेकड़ो लोगो की आँखे जा चुकी हैं, और सेकड़ो लोग अपाहिज़ हो चुके हैं! घाटी मैं पूरी तरह एमर्जेन्सी जैसे हालत हैं!ठीक है, कश्मीर मैं प्रदर्शन हो रहे हैं, कुछ युवा पत्थरबाज़ी मैं शामिल हैं, और अलगाववदियो का इसमे हाथ है!लेकिन भीड़ से निबटने और दंगा नियंत्रित करने मैं ऐसी बर्बरता हिन्दुस्तान के इतिहास मैं शायद दूसरी देखने को मिले! भीड़ नियंत्रण के लिए, ना लाठी चार्ज, ना हवाई फायरिंग, ना आँसू गेस के गोले, ना पानी की बोझारें, और ना कोई और तरीक़ा! बल्कि सुरक्षा बल बेरहमी से पेलेट गन से सीधी फायरिंग कर रहे हैं और पत्थर का जवाब गोली से दे रहे हैं!

अमूमन देखा जाता है कि हालत बेकाबू हो जाए, और फायरिंग के अलावा कोई और रास्ता ना बचे तब भी सुरक्षा बल सीधी फायरिंग ना करके हवा मैं या भीड़ के पैरो मैं गोली चलाते हैं! लेकिन यहाँ तो बेहद हैरान करने वाली बात है,लोगो के पेट से उपर के हिस्सो को निशाना बनाया जा रहा है! नतीजा ज़्यादा से ज़्यादा जाने जा रही, और लोग बुरी तरह ज़ख्मी हो रहे हैं! अस्पतालो घायलो से भरे पड़े हैं! ना औरतो और बचचो पर रहम और ना कोई मानवाधिकार!

हाल ही मैं हमने गुजरात मैं पटेलो का आंदोलन देखा, और हरयाणा मैं जाटो का! दोनो आंदोलनो मैं हज़ारो करोड़ की संपत्ति खाक हो गयी, रेल लाइन और सड़के उखाड़ फेकी गयीं! सरकारी और गेर सरकारी संपत्तियों को बड़ा नुक़सान उठाना पड़ा! हरियाणा मैं तो राहगीरो को खीचकर दरिन्दगी तक हुई! लेकिन मज़ाल है सुरक्षा बलो ने एक गोली भी खर्च की हो! पुलिस और सेना सिर्फ़ तमाशबीन बने रहे! शायद ना यह कोई जुर्म था, ना उपद्रव और ना देशद्रोह ! दूसरी तरफ देश के कई हिस्सो मैं नक्सली हमले होते हैं, और इन नक्सलियो को ज़मीनी समर्थन भी हासिल होता है!

लेकिन ना कभी नक्सलियो के खिलाफ कोई सख़्त कार्यवाही और नही उनके समर्थको के खिलाफ कोई कड़े क़दम उठाए जाते! तो फिर सिर्फ़ कश्मीरीयो के खिलाफ ही ऐसी बर्बरता क्यू? अगर हम कश्मीर को हिन्दुस्तान के सर का ताज़ मानते हैं, और कश्मीर से हमे मुहब्बत है, तो फिर इन कशमीरयो से इतनी नफ़रत क्यू, यह क्यूँ आँख का काँटा हैं? अगर कश्मीर हिन्दुस्तान का अभिन्न अंग है, तो फिर यह कश्मीरी हिन्दुस्तानी क्यूँ नही?

क्या आप ऐसे कश्मीर की कल्पना करते हैं जहाँ धरती तो हो लेकिन इंसान नही, क्यूँ आप वहाँ ज़ुल्म की इबारत लिख रहे हैं! क्या कश्मीर का कोई घर ऐसा बाकी है जहाँ कोई लापता, कोई विधवा और कोई अनाथ ना हो, या किसी की आँख मैं आँसू ना हो!

अगर एक उग्रवादी के जनाज़े मैं हज़ारो की भीड़ उमड़ती है तो इसका ज़िम्मेदार कौन है! किसने वहाँ ऐसे हालात बनाए और क्यूँ हमारी सरकारे उन रस्तो पर जाते हुए युवाओ को नही बता पाती की, तुम्हारे हीरो बुरहान वानी नही बल्कि शाह फ़ैसल और रुबेदा सलाम जैसे कश्मीरी हैं!

प्रधानमंत्री कश्मीरियों के हाथ मैं लेपटॉप तो देने की बात करते हैं, लेकिन उन सुरक्षा बलो को हिदायत देने की ज़हमत तक नही उठाते जो एक कश्मीरी युवा प्रोफेसर को घर से उठा लाते हैं, और पीट पीट कर मार डालते हैं! सुरक्षा बल एम्बुलेंस तक को निशाना बना रहे हैं! क्या इसी तरह युवाओ के हाथ से पत्थर लेकर उन्हे लेपटॉप थमाएँगे?

 

कश्मीर के हालात बेकाबू हैं और प्रधानमंत्री जी बलूचिस्तान पर बयान देते हैं, बेहतर होता पहले वह कश्मीर मैं अमन लाने की कोशिश करते फिर बलूचिस्तान पर बात करते !
ऐसा नही है कि कश्मीर मैं शांति बहाली की उम्मीद करना बेमानी है! एक तरफ पत्थरबाजी और प्रदर्शन की ख़बरे आ रही हैं, तो दूसरी तरफ बहुत कुछ अच्छी खबरें भी निकल कर आ रही हैं! कर्फ्यू के बीच कश्मीरी मुसलमान दुर्घटना के शिकार अमरनाथ यात्रीयो को बचाने के लिए कर्फ्यू तोड़कर बाहर आए, तो दूसरी तरफ कर्फ्यू के दौरान ही एक मुस्लिम महिला अपने हिंदू पड़ोसी के लिए राशन ले जाती दिखाई दी! कर्फ्यू मैं ही एक कश्मीरी पंडित के जनाज़े को मुस्लिमो के कंधा देने की खबरें भी कश्मीर से ही आईं !अगर कश्मीर मैं हर तरफ अंधेरा है, तो उम्मीद की एक किरण भी कही ना कही दिखाई देती है! बारूद की गंध के बीच मुहब्बत और भाईचारे की यह खुश्बू कश्मीर मैं शांति बहाली और कश्मीरीयो के लिए मुख्य धारा मैं वापस लोटने का एक रास्ता बन सकती है!मगर ज़रूरत है इस बात की, कि सरकारें पूरी ईमानदारी से अपना काम करे! कश्मीरीयो से भी इतनी ही मोहब्बत की जाए जितनी कश्मीर से!तब ही इस जन्नत की पुरानी रौनक वापस आ पाएगी

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वसीम अख़्तर बरकती

(लेखक उत्तर प्रदेश के संभल से मुस्लिम स्टूडेंट्स आर्गनाइज़ेशन के जिला सदर हैं)