नई दिल्ली। कश्मीर घाटी वर्षो बाद अशांति के भीषण दौर से गुजर रहा है और शायद ही किसी को आश्चर्य हुआ होगा जब समस्या के समाधान और घाटी में शांति बहाली के उद्देश्य से घाटी आए सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल को खाली हाथ लौटना पड़ा। अलगाववादी नेताओं ने इस प्रतिनिधिमंडल से बातचीत करने से साफ मना कर दिया और अब जम्मू एवं कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती के लिए लगभग सभी रास्ते बंद नजर आ रहे हैं। इसके बाद अब कश्मीर घाटी की जटिल परिस्थितियों के और पेचीदा होने की आशंका बढ़ गई है। अब तक यह तो स्पष्ट हो गया है कि केंद्र सरकार अलगाववादियों के आगे नर्म नहीं पड़ने वाली, जो आठ जुलाई को हिजबुल मुजाहिदीन के आतंकवादी बुरहान वानी की सुरक्षा बलों के हाथों मौत के बाद से घाटी में अशांति भड़काने में लगे हुए हैं। राज्य की पहली महिला मुख्यमंत्री महबूबा ने सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल के साथ बातचीत के लिए अलगाववादी नेताओं को आमंत्रित किया था। लेकिन अलगाववादी नेताओं ने उनका आमंत्रण ठुकरा दिया। अलगववादी नेताओं का कहना है कि जब तक कश्मीर के नागरिक इलाकों से सेना नहीं हटाई जाती और कश्मीर को अंतर्राष्ट्रीय समस्या नहीं माना जाता बातचीत का कोई मतलब नहीं है।
गौरतलब है कि कश्मीर में अधिकतर अलगाववादी नेता या तो जेलों में बंद हैं या अपने घरों में नजरबंद। महबूबा के पास जहां अलगाववादी नेताओं की यह मांगे पूरी करने का अधिकार नहीं है, वहीं केंद्र सरकार किसी भी तरह स्वीकार नहीं कर सकती। अहम की इस लड़ाई में महबूबा और उनकी पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) जैसे किसी चट्टान के नीचे फंस गई है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि पीडीपी कश्मीर घाटी में बीते दो महीने से चल रही अस्थिरता के दौरान आम नागरिकों की मौतों और अन्य क्षतियों के कारण जनता में विश्वास खो रही है।