कश्मीर में मुसल्लह अफ़्वाज क़ानून

चीफ़ मिनिस्टर जम्मू-ओ-कश्मीर उम्र अबदुल्लाह ने रियासत में मुसल्लह अफ़्वाज ख़ुसूसी इख़्तयारात क़ानून से दसतबरदारी के लिए मुहिम शुरू की है वो मर्कज़ी क़ाइदीन से मुसलसल रब्त रखे हुए थे अब दिल्ली पहुंचकर वज़ीर-ए-आज़म मनमोहन सिंह और वज़ीर-ए-दाख़िला पी चदमरबम से मुलाक़ात की मगर नतीजा कुछ बरामद नहीं हुआ।

कश्मीर के इन इलाक़ों में जहां अस्करीयत पसंदी, तशद्दुद और बदअमनी के वाक़ियात में कमी आई है या ऐसे वाक़ियात बिलकुल ही ख़तम होगए हैं , मुसल्लह अफ़्वाज की ताय्युनाती बरख़ास्त करने पर ज़ोर दिया जा रहा है। फ़ौज को इन इलाक़ों में ग़ैर ज़रूरी ताय्युनात किया गया है जहां कोई ख़तरात पाए नहीं जाती। सलामती को यक़ीनी बनाना हुकूमत की ज़िम्मेदारी होती है और जब चीफ़ मिनिस्टर की हैसियत से उम्र अबदुल्लाह इस बात की ज़द कररहे हैं कि कश्मीर के बाअज़ इलाक़ों से मुसल्लह अफ़्वाज ख़ुसूसी इख़्तयारात क़ानून हटा लिया जाय तो इस के दीगर सलामती तक़ाज़ों पर भी तवज्जा दीनी ज़रूरी है। बलाशशबा उम्र अबदुल्लाह को एक रियासत के मुंतख़ब रहनुमा की हैसियत से फ़ैसला साज़ी का इख़तियार हासिल है और उन्हें अपने अवाम की सलामती की भी फ़िक्र लाहक़ है।

इस मौज़ू को मर्कज़ी क़ाइदीन से रुजू करने उन की कोशिश का मतलब यही है कि रियासत पर फ़ौजी अख़राजात का बोझ कम किया जाए। सदर कांग्रेस सोनीया गांधी से दो बद्दू मुलाक़ात और मर्कज़ी वुज़रा चिदम़्बरम और परनब मुकर्जी से बातचीत के बाद भी इस मसला की यकसूई की उम्मीद पैदा नहीं हुई। उम्र अबदुल्लाह ने इस वक़्त ये मसला उठाया है जब वादी कश्मीर में मौसमी हालात अस्करीयत पसंदों के मुवाफ़िक़ होते हैं फ़ौज को हटा लेने का मसला हस्सास नौईयत का होता है। इस पर उजलत बाज़ी में कोई फ़ैसला आइन्दा के लिए ख़राब मिसाल या भयानक ग़लती बन कर हुकमरानों का तआक़ुब करता रहेगा। इस मसला पर ध्यान देने के लिए सयासी जज़बा से ज़्यादा क़ौमी वस्सलामती उसूलों को मल्हूज़ रखना चाहिए।

उम्र अबदुल्लाह ने दिल्ली में मुख़्तलिफ़ क़ाइदीन से मुलाक़ात के बाद बज़ाहिर ये तास्सुर देने की कोशिश की कि इन की मुहिम और मुसल्लह अफ़्वाज की दसतबरदारी मसला के दरमयान कोई सयासी मक़ासिद कारफ़रमा नहीं हैं। उम्र अबदुल्लाह कोई ग़ैर रिवायती सियासतदां नहीं हैं उन्हें सयासी समझ विरसा में मिली है उन्हें अपनी रियासत के अवाम की सलामती और अमन-ओ-अमान की बरक़रारी की फ़िक्र लाज़िमन होनी चाहिए। वो पुरजोश पुर अज़म और अपनी बात मनवाने की ज़द के साथ किसी के मश्वरों को क़बूल करने की सलाहीयत से बहरावर भी होसकते हैं। मुसल्लह अफ़्वाज की ताय्युनाती के पस-ए-मंज़र में वाक़ियात और हालात या क़ाअदे क़ानून की पासदारी करना भी चाहते हैं। लेकिन जम्मू-ओ-कश्मीर में सीकोरीटी का मसला ख़ालिस फ़ौज के इख़तियार में है।

सलामती नुक्ता-ए-नज़र से सीकोरीटी इंतिज़ामात की ज़िम्मेदारी फ़ौज को ही अदा करनी है और वो ही बेहतर जानती है कि किस मोरचा पर कहां और कैसे सीकोरीटी इंतिज़ामात किए जाएं। इस लिए फ़ौज ने जम्मू-ओ-कश्मीर के बाअज़ इलाक़ों से मुसल्लह अफ़्वाज ख़ुसूसी इख़्तयारात क़ानून हटा लेने की मुख़ालिफ़त की है।

पड़ोसी मुल्क से दरअंदाज़ी के वाक़ियात, दहश्तगर्द कैम्पों की मौजूदगी की रिपोटर्स पाकिस्तान की सरज़मीन को हनूज़ दहश्तगर्द सरगर्मीयों के लिए इस्तिमाल किए जाने की ख़बरों ने हिंदूस्तानी फ़ौज की ज़िम्मेदारीयों और चौकसी को मज़ीद बढ़ा दिया है। फ़ौज ने चीफ़ मिनिस्टर अबदुल्लाह को ये बताने की भी कोशिश की है कि मुसल्लह अफ़्वाज ख़ुसूसी इख़्तयारात क़ानून (AFSPA) को वादी कश्मीर से हटा लेने के लिए पाकिस्तान की आई ऐस आई दहश्तगर्द तंज़ीमें और अलैहदगी पसंदों ने ऐन ख़ाहिश ज़ाहिर की है ऐसे में फ़ौज को हटा लेना एक भयानक ग़लती होगी।

फ़ौज की ब्रीफिंग के बावजूद उम्र अबदुल्लाह को अपनी हुकूमत की कारकर्दगी और रियासत में अमन-ओ-अमान की बरक़रारी में अब तक मिलने वाली कामयाबी का फ़ख़र है इस लिए वो रियासत के कुछ हिस्सों से फ़ौज को हटाकर मर्कज़ को ये बताना चाहते हैं कि रियासत में अस्करीयत पसंदी का कोई असर नहीं है और मुसल्लह अफ़्वाज की दसतबरदारी के बावजूद कोई सानिहा रौनुमा नहीं हुआ।

होसकता है कि उन्हें वादी के हालात पर ज़रूरत से ज़्यादा इतमीनान हो लेकिन सीकोरीटी के बुनियादी तक़ाज़ों और उसूलों की रोशनी में किसी को भी खुली छूट देने का मतलब अस्करीयत पसंदों के हौसलों का बढ़ाना है। उम्र अबदुल्लाह की रयाज़त और कोशिश अपनी जगह बजा है लेकिन इस क़ानून से वादी कश्मीर में आला सतह पर सयासी हलक़ों में भवें चढ़ा रही हैं। इस तनाज़ा को तूल दे कर हुकूमत और फ़ौज के दरमयान शदीद इख़तिलाफ़ात पैदा करने से गुरेज़ करना चाहिए। फ़ौजी इंतिज़ामात का मुआमला ख़ालिस अवामी सलामती से मरबूत है।

का बीनी कमेटी बराए सलामती उमूर ने जो फ़ैसले किए हैं इस को मद्द-ए-नज़र रख कर मुसल्लह अफ़्वाज से ताल्लुक़ रियास्ती हुकूमत की तशवीश को दूर कर दिया जाना चाहिए। आने वाले दिनों में पार्लीमैंट का सरमाई सैशन शुरू होगा इस मौक़ा पर मसला को पेचीदा बनाने के लिए बजाय कोई हल दरयाफ़त करलिया जाए। कांग्रेस कोर ग्रुप ने भी मसला का कोई हल नहीं निकाला। मुसल्लह अफ़्वाज क़ानून की दसतबरदारी से मुताल्लिक़ जिन सियासतदानों को मसला है इस पर ध्यान देने से ज़्यादा वादी कश्मीर की हक़ीक़ी सूरत-ए-हाल पर तवज्जा देनी होगी।

ताकि रियास्ती अवाम के जान-ओ-माल के तहफ़्फ़ुज़ के इलावा रियासत में अमन-ओ-अमान के माहौल को बरक़रार रखने में मदद मिल सकी। अफ़्वाज की राय को भी मल्हूज़ रखा जाना ज़रूरी है। इस के इलावा फ़ौज को भी अपना मुहासिबा करना चाहीए कि आख़िर उस की मौजूदगी को इंसानी हुक़ूक़ के तहफ़्फ़ुज़ के बजाय ख़िलाफ़वरज़ी का अंदेशा क्यों पैदा हो रहा है।