कहानी को बुनियाद बना कर फिल्में बनाने के लिए जिगर चाहिए: चंद्रचूड़ सिंह

हैदराबाद, 13 फ़रवरी- `कहानी को बुनियाद बना कर फिल्में बनाने के लिए जिगर चाहिए। इसमें बड़ा जोखम होता है। इसलिए ज्यादातर फिल्में फार्मुला पर बनाई जाती हैं।’यह खयाल अभिनेता चंद्रचूड़ सिंह के हैं।

चंद्रचूड़ सिंह अपनी नयी फिल्म ज़िला ग़ाज़ियाबाद की एक पार्टी में हिस्स लेने हैदराबाद आये थे। हालांकि उन्होंने अपने फिल्मी केरियर की शुरूआत फिल्म `तेरे मेरे सपने’ से की थी, लेकिन उन्हें उसी साल रिलीज़ हुई फिल्म `माचिस’ के लिए फिल्मफेयर अवार्ड दिया गया था।

बातचीत के दौरान चंद्रचूड़ सिंह ने कहा कि लीक से हटकर फिल्में बनाना आसान काम नहीं है। करोड़ों रुपये लगाकर फिल्म बनाएँ और फिर वह न चलें तो लोग बर्बाद हो जाते हैं। इसलिए ऐसा जोखम उठाने के लिए कम ही लोग तैयार होते हैं। `मोग़ले आज़म’ जैसी फिल्में बहुत कम बनती हैं।

चंद्रचूड़ का ताल्लुक़ अलीगढ़ से है। वालिद सियासत राजनीति में हैं और वालिदा का ताल्लुक़ ओडिशा के एक राजघराने से है। फिल्मों का श़ौक उन्हें बॉलिउड ले आया, लेकिन बहुत कम सफल फिल्में हाथ लगीं। कुछ नासाज़ी ए तबीयत की वजह से भी वे ज्यादा ध्यान नहीं दे पाये, लेकिन आज भी टेलीविजन और फिल्मों में मशगूल हैं। वे बताते हैं कि एक्शन मसाला फिल्में और कहानी को बुनियाद बनाकर बनाई गई फिल्में दोनों भी ज़रूरी हैं, दोनों के तमाशबीन अलग-अलग हैं। कभी अमिताभ और राजेश खन्ना जैसे नायकों के लिए फिल्में बनायी जाती थीं, तो दूसरी जानिब ऋषि दा, बासूदा और गुलज़ार जैसे फिल्मसाजों ने हटकर फिल्में बनाई और सफल भी रहे।

चंद्रचूड़ मानते हैं कि हिन्दी फिल्मों की कहानियाँ कमज़ोर होती जा रही हैं, हालांकि यहाँ अच्छे लिखने वालों की कमी नहीं है, लेकिन फ़िल्मसाज़-हिदायातकर और दूसरे जुज़ भी इसमें शामिल रहते हैं। सभी पहलुओं से कहानी के मियार में सुधार लाने की ज़रूरत है।

चंद्रचूड़ इन दिनों मीरा नायर की एक अंग्रेज़ी फिल्म में काम कर रहे हैं और चाहते हैं कि कुछ चुनौतिभरी भूमिकाओं को निभाएँ।