दोहा की काबीना में कल क़ानून मेहनत की बाअज़ अहम दफ़आत में तरमीम की ज़रूरत पर ज़ोर दिया ताकि उजरतों के तहफ़्फ़ुज़ के निज़ाम पर अमल आवरी में मदद मिल सके जिस से मुल्क में काम करने वाले तमाम अफ़राद को तनख़्वाहें बैंकों के ज़रीए अदा की जाएंगी।
काबीना ने अपने हफ़्तावार इजलास में सिफ़ारिश की कि क़ानून मेहनत की दफ़आत 1, 66 और 145 (2004 का दफ़ा 4) में तरमीम की जाए ताकि उजरतें बर्क़ी अदाएगी निज़ाम के तहत अदा की जा सकें।
क़ानून मेहनत की दफ़ा 66 गुंजाइश फ़राहम करती है कि मुलाज़मीन को नक़द रक़म और शख़्सी तौर पर अदा की जाए ताकि फ़ौरी अदाएगी मुम्किन हो सके।