क़दीम-ओ-बावक़ार तालीमी इदारा निज़ाम कालेज की तारीख़ी बावली ख़तरे में!

सरज़मीन दक्कन को एज़ाज़ हासिल है कि यहां हमेशा से इल्म की क़दर की गई आलिमों , दानिश्वरों और मुख़्तलिफ़ शोबों के माहिरीन की पज़ीराई के दीगर अरकान ने कोई कसर बाक़ी नहीं रखी । यही वजह थी कि बर्र-ए-सग़ीर के दानिश्वर और माहिरीन-ओ-क़ाबिल तरीन शख्सियतें हैदराबाद का रुख़ करती थीं। उन्हें अंदाज़ा था कि ये ऐसी सरज़मीन है जहां बा सलाहियत लोगों की क़दर की जाती है उन की हौसला अफ़्ज़ाई यहां का वतीरा है ।

आसिफ़जाही हुकमरानों को सारे हिन्दुस्तान‌ में ये एज़ाज़ हासिल है कि उन लोगों ने हमेशा जो भी फ़लाही काम किए इन में बिला लिहाज़ मज़हब-ओ-मिल्लत रंग-ओ-नसल अपनी रियाया का ख़ास ख़्याल रखा । तालीमी शोबा में इन हुकमरानों और शाही ख़ानदान के दीगर अरकान की ख़िदमात नाक़ाबिल फ़रामोश और बेनज़ीर हैं । उन लोगों ने फ़रोग़ तालीम के लिए महलात बाग़ात और जायदादें तक वक़्फ़ कर दीं यह उन्हें बतौर अतियात मुख़्तलिफ़ तालीमी इदारों के हवाले कर दिया।

ऐसी ही शख्सियतों में नवाब सफदरजंग मुशीरुद्दौला फ़ख़र-उल-मुल्क दोम भी शामिल हैं जिन्होंने बावक़ार तालीमी इदारे निज़ाम कालेज के लिए अपने अजीमुश्शान वसीअ-ओ-अरीज़ और फ़न तामीर के शाहकार महल अज़ीज़ मंज़िल पैलेस को माहिरीन के हवाले कर दिया। कहते हैं कि जो काम नेक मक़सद के लिए किया जाता है वो कामयाबी-ओ-कामरानी से ज़रूर हमकिनार होता है । ऐसा ही कुछ निज़ाम कालेज के साथ हुआ । हैदराबाद स्कूल और मुदर्रिसा आलाया के इंतिज़ामीया की जानिब से 1887 में क़ाएम किए गए इस कालेज का शुमार ना सिर्फ़ शहर , आंधरा प्रदेश़ या जुनूबी हिंद बल्कि हिंदूस्तान के इंतिहाई क़दीम ऐसे तालीमी इदारे में होता है जो नई नसल को आला तालीम फ़राहम करने में कोई कसर बाक़ी नहीं रखता है।

शहर में जहां भी महलात-ओ-बाग़ात तामीर किए जाते सब से पहले वहां बावली की खुदाई होती और उस की तामीर पर ख़ुसूसी तवज्जा दी जाती । यही वजह है कि शहर में आज बाग़ात-ओ-महलात का वजूद मिटाए जाने के बावजूद बावलियों के निशानात अपने ग़ैरमामूली माज़ी की याद दिलाते हैं । निज़ाम कालेज में भी एक ऐसी ही बावली है जिसे हम फ़न तामीर की शाहकार बावली क़रार दे सकते हैं लेकिन आज दक्कन के इस क़दीम तारीख़ी-ओ-तामीरी विरसा की बक़ा को ख़तरा लाहक़ है । हुकूमत से लेकर महिकमा आसार क़दीमा और तारीख़ी आसार के तहफ़्फ़ुज़ के दावे करके अख़बारात की ज़ीनत बनने वाले इदारों-ओ-उनके ओहदेदारों किसी को भी इस ख़ूबसूरत बावली को बचाने और उस की अज़मत रफ़्ता बहाल करने में कोई दिलचस्पी नहीं ।

इसी लिए वो इस जानिब तवज्जा देने से क़ासिर हैं । यहां इस बात का तज़किरा ज़रूरी होगा कि निज़ाम कालेज यानी अज़ीज़ महल पैलेस की सारी तामीर इसी बावली के पानी से की गई लेकिन अफ़सोस के इस तारीख़ी बावली के वजूद को मिटाने की भरपूर कोशिश की जा रही हैं । बावली के अतराफ़ एक 4 मंज़िला इमारत तामीर कर दी गई है और बैत-उल-ख़ुला बावली से लगाकर तामीर किया गया है कम अज़ कम इंजीनियर्स को इस बात का ख़्याल रखना चाहीए था कि चार मंज़िला इमारत की तामीर से बावली का वजूद ख़तरा में ना पड़े । 5 कमानों वाली बावली को देख कर अंदाज़ होता है कि उसे मंसूबा बंदी के साथ तामीर किया गया था लेकिन अफ़सोस के कालेज के बानियों के मक़ासिद से पहलू तही करते हुए तारीख़ी आसार को यके बाद दीगरे मिटाया जा रहा है ।

जब हमारी नज़र निज़ाम कालेज की बावली पर पड़ी तो ऐसा लगा जैसे वो बड़ी ख़ामोशी से अपनी दास्तान अलम बयान कर रही हो और अपनी घटती हुई आवाज़ में कह रही हो कि देखो तारीख़ी आसार के दुश्मनों ने मेरी क्या हालत बना डाली एक वक़्त ऐसा था जब डोल की आवाज़ों से मेरे वजूद को एहसास सुकूं हासिल होता और ये जान कर ख़ुशी होती कि मेरे दामन में जमा पानी इंसानों के काम आ रहा है।

काश मेरे हमदर्द मेरे चाहने वाले आगे बढ़ें और हुकूमत वो महकमा आसार क़दीमा को मेरी तारीख़ी अहमियत-ओ-अफादियत से वाक़िफ़ करवाएं तो हो सकता है कि में महफ़ूज़ रहूं वर्ना हैदराबाद की दीगर तारीख़ी बावलियों की तरह मेरा भी किसी रिपोर्ट या फीचर में ज़िक्र आएगा।