क़बायलियों को तरबियत मिला, बकरियां नहीं

रांची 19 अप्रैल : रियासती हुकूमत क़बायलियों की आमदनी बढ़ाने के लिए मुख्तलिफ़ किस्म की मनसूबे चलाती है। इन मंसूबों का मुकम्मिल अखराज़ात हुकूमत से खुसूसी मर्क़ज़ी इमदाद के तौर पर मिलता है।

महालेखाकार (पीएजी) ने खुसूसी मर्क़ज़ी रक़म से चलायी गयी बकरी पालन, गाय पालन, रेशम कीट पालन और फलदार दरख्त लगाने की मंसूबा बंदी की जांच की और अपनी रिपोर्ट हुकूमत को भेजी। भेजी गयी रिपोर्ट के मुताबिक़, 286 कबायली खानदानो (एससी, एसटी) को आमदनी बढ़ाने के लिए बकरी पालन का तरतीब तो दिया गया, लेकिन बकरियां नहीं दी गयीं। वहीं 88 कबायली खानदानो (एससी, एसटी) को दो-दो के बदले एक-एक गाय ही दी गयी, जिनमें से 54 मर गयीं। 2.63 करोड़ रुपये की लागत से लगाये गये आम और शहतूत के दरख्त भी नहीं बचे।

दो गाय की जगह एक मिली : रांची जिले के क़बायलियों (एससी, एसटी) की माली हालत में बेहतरी के लिए डेयरी से उन्हें शामिल की मंसूबा बंदी थी। इसके तहत चुनिन्दा 100 कबायली खानदानो को मुफ्त में दो-दो गाय देनी थी। शेड बनाना था और गायों का इन्सुरेंस कराना था। ऑडिट में पाया गया कि इस मंसूबा के तहत चुने गये 100 में 12 कबायली खानदानो को गाय दी ही नहीं गयी।

शेष 88 कबायली खानदानो को एक-एक गाय ही दी गयी। शेड नहीं बनाये गये। इन्सुरेंस नहीं कराया गया और दवा की भी इन्तेजाम नहीं की गयी। वहीं इनमें से 54 गाय मर गयीं।