26/11 के दहश्तगर्द अजमल क़साब की पूने की जेल में फांसी एक रोज़ बाद वाक़ै हुई जबकि हिंदूस्तान ने अक़वाम-ए-मुत्तहिदा जनरल असेंबली की एक मुसव्वदा क़रारदाद की मुख़ालिफ़त की थी जिस में सज़ाए मौत को बरख़ास्त करदेने पर ज़ोर दिया गया है ,
जब कि नई दिल्ली ने दलील पेश किया कि हिंदूस्तान में सज़ाए मौत पर उसी सूरत में अमल किया जाता है जब जुर्म इतना घिनाउना हो कि वो समाज के ज़मीर को झंजोड़ कर रख दे ।
26/11 के वाक़िया में वाहिद ज़िंदा बच जाने वाले दहश्तगर्द क़साब ने 9 दूसरे पाकिस्तानी बंदूक़ बर्दारों के साथ मिल कर नवंबर 2008 में मुंबई में हिंदूस्तानी तारीख के एक बदतरीन दहश्त गरदाना हमले में ज़ाइद अज़ 160 अफ़राद को हलाक करदिया था ।
उन्हों ने मज़ीद कहा कि हिंदूस्तानी क़ानून तमाम ज़रूरी तहफ़्फुज़ात फ़राहम करता है जिस में आज़ाद अदालत की जानिब से मुंसिफ़ाना समाअत का हक़ ,
मुक़द्दमा के फैसला से क़बल तक मुल्ज़िम को बेक़सूर समझने का गुमान , दिफ़ा के लिए अक़ल तरीन ज़मानत का ख़्याल रखना और बरतर अदालत की जानिब से नज़रसानी का हक़ शामिल है।
हिंदूस्तान में किसी अदालत की जानिब से सज़ाए मौत के ख़िलाफ़ हाइकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में अपील की जा सकती है ।