क़िस्तों में मरना चाहते हो तो गुटखे की आदत डालो

नुमाइंदा ख़ुसूसी एक ऐसा चेहरा जो इंतिहाई ख़ूबसूरत था इस चेहरे पर हमेशा ताज़गी हंसी और मुस्कुराहट फैली रहती थी । आँखों में इतनी चमक कि लोग देख कर मुतास्सिर हुए बगैर नहीं रह सकते थे । बात करता तो जैसे मुंह से फूल झड़ रहे हूँ लेकिन आज ये चेहरा मुतास्सिर होचुका है । ताज़गी उस चेहरे से ग़ायब होगई है । मुस्कुराहट ने इस से नाता तोड़ लिया है । और ज़बान पर ताला लग चुका है । ये कौन है और इस के साथ ये सब क्यों और कैसे हुआ । ये ओटकूर का 30 साला नौजवान है जिस को बीवी और दो बच्चे हैं । चार साल से मुसलसल गुटखा ख़ोरी की वजह से जबड़े के कैंसर में मुबतला हो चुका है । जिस की वजह से इस की भी ज़िंदगी तबाह होचुकी है और इस की बीवी और दो मासूम बच्चों की ज़िंदगी भी बर्बाद हो रही है ।

ऑपरेशन के ज़रीया इस का जबड़ा निकाल दिया गया है और सिना से गोश्त लेकर लगा दिया गया है । इस मर्ज़ की वजह से इस का आधा चेहरा बिलकुल स्याह होचुका है । ये मरीज़ अब एक लफ़्ज़ भी बोलने पर क़ादिर नहीं । सिर्फ जूस और दवा पर उस की ज़िंदगी बसर हो रही है । वो ना अब कोई काम कर सकता है ना अपना दुख किसी को सुना सकता है । माहाना सात हज़ार रुपये उस की दवाओं पर ख़र्च हो रहे हैं । ये शख़्स आज गुटखा ख़ोर नौजवानों के लिए निशान-ए-इबरत बन चुका है । तंबाकू ख़ाह किसी भी सूरत में हो सेहत के लिए सख़्त नुक़्सानदेह और मज़र्रत रसाँ (नोकसानदह) है ।

आलमी सेहत तंज़ीम की रिपोर्ट के मुताबिक़ हर साल तंबाकू ख़ोरी की वजह से तक़रीबन 30 लाख अफ़राद की अम्वात (मौत)वाक़ै होती है जिन में 20 लाख अम्वात का ताल्लुक़ तरक़्क़ी याफ़ता ममालिक से है । ये 20 वीं सदी के 10 विं दहे के वस्त की रिपोर्ट है । अंदाज़ा लगाया गया है कि अगर तंबाकू नोशी का ये रुजहान बाक़ी रहा तो 2025 तक दुनिया भर में सालाना एक करोड़ अम्वात हो सकती हैं । ये एसा भयानक ख़तरा है जो किसी ख़ूँ रेज़ जंग के ख़तरे से भी बढ़ कर है । कहा जाता है कि तंबाकू की इबतदा-ए-अमरीका से हुई है । एशिया , यूरोप और अफ्रीका के लोग इस से क़तअन नावाक़िफ़ थे फिर ये अमरीका से एस्पेन , पुर्तगाल और पुर्तगाल से फ़्रांस पहुंची । फ़्रांस ने इस की काशत को फ़रोग़ और उसे मक़बूल आम करने में अहम किरदार अदा किया । यूरोप ही के ज़रीया एशिया-ए-तक उस की रसाई हुई और इस वक़्त तक़रीबन 100 ममालिक में तंबाकू की बाज़ाबता काशत की जाती है ।

चीन और अमरीका के बाद तंबाकू की सब से ज़्यादा काशत हमारे मुल्क हिंदूस्तान में होती है । हुकूमत को तंबाकू के टैक्स से सालाना एक अरब पच्चास करोड़ डालर मिलते हैं ।एक अंदाज़ा के मुताबिक़ हमारे मुल्क में 52 करोड़ किलो ग्राम तंबाकू पैदा किया जाता है । इस में से निस्फ़ मिक़दार बरामद करदी जाती है और बाक़ी हिंदूस्तान ही में मुख़्तलिफ़ सूरतों में इस्तिमाल की जाती है । 15 लाख किसान तंबाकू उगाते हैं , 10 लाख तंबाकू फ़ार्म में हैं । जिन में 50 लाख अफ़राद काम करते हैं । हिंदूस्तान में कहा जाता है कि तंबाकू की इबतदा-ए-जुनूब के इलाक़ा से हुई है । क्यों कि अंग्रेज़ हिंदूस्तान में इसी तरफ़ से दाख़िल हुए थे ।

सरकारी तौर पर इस के मुज़िर सेहत होने का ऐलान पहली दफ़ा 1604 –में फ़र्मा नर वाय बर्तानिया जेम्स अव्वल ने किया और फिर इस के नुक़्सानात दिन बा दिन लोगों पर वाज़ेह होते चले गए । 1859 -में फ़्रांस की वो रिपोर्ट सामने आई है जिस में एक हॉस्पिटल में कैंसर के मरीज़ों के बारे में मालूमात हासिल की गई जिस के मुताबिक़ पेट , गले और मुँह के कैंसर के कुल मरीज़ों की तादाद 66 थी और ये सभी तंबाकू इस्तिमाल करने वाले लोग थे । पहली और दूसरी जंग अज़ीम के बाद सिगरेट नोशी में बहुत ज़्यादा इज़ाफ़ा होगया और इस आदत ने पूरी दुनिया को अपनी लपेट में ले लिया । 1964 में अमरीका की एक तंज़ीम की जानिब से दो साला तहकीकात का नतीजा पेश किया गया ।

जिस में बताया गया कि अमरीकी मर्दों में 1950 से 1960 तक फेफड़े के कैंसर के मरीज़ों में 70 फीसद शरह अम्वात का इज़ाफ़ा होगया है । अमरीका में तंबाकू नोशी की रोक थाम के लिए बहुत सी कोशिशें भी की गई हैं । सब से पहले अमरीका ही में 1966 – में सिगरेट के पैकटों पर तंबाकू के मुज़िर सेहत होने की इबारत लिखनी लाज़िम क़रार दी गई और यक्म जनवरी 1966 -से इस का नेफ़ाज़ हुआ । यक्म जनवरी 1971 -से सिगरेट का इश्तिहार टी वी पर बंद कर दिया गया । लेकिन इन कोशिशों के बावजूद सूरत-ए-हाल ये है कि अमरीका जैसे तरक़्क़ी याफ़ता मुल्क में 1991 में तंबाकू नोशी की वजह से साढे़ तीन लाख अफ़राद की मौत वाक़ै हुई और ख़ुद हिंदूस्तान में हर साल 8 लाख अफ़राद तंबाकू नोशी की वजह से लुकमा-ए-अजल बन जाते हैं । फरवरी 2002 में हुकूमत आंधरा प्रदेश ने गुटखा पर पाबंदी आइद की थी , कोई भी पान मसालिहा गुटखा की महर के साथ ममनू क़रार दिया गया था । हुकूमत के आलामीया में बतलाया गया कि 1997 -ए-में 8.56 फीसद मुँह के कैंसर के मरीज़ थे 2000 – में ये तादाद बढ़ कर 21.43 फीसद होगई ।

जो दर असल गुटखा की ख़राब आदत का नतीजा है । गुटखा ख़ोरी की आदत इसी होती है कि इस को छोड़ना आसान नहीं होता है और ये आदत कितने ही लोगों के ख़ून से अपनी प्यास बुझा रही है । इन तमाम तफ़ासील और भयानक नताइज सामने आने के बावजूद गुटखा ख़ोरी की तादाद में रोज़ बरोज़ इज़ाफ़ा ही होरहा है । इस में कमी नहीं आरही है । नौजवानों की ज़िंदगियां तबाह-ओ-बर्बाद होरही है और उन के साथ उन के अफ़राद ख़ानदान भी इस की लपेट से महफ़ूज़ नहीं हैं । लेकिन गुटखा तय्यार करने वालों और फ़रोख़त करने वालों को ज़रा फ़िक्र नहीं है कि वो लोगों में सामान मौत क्यों तक़सीम कर रहे हैं । इस बात के इलम के बावजूद कि ये कैंसर जैसे मुहलिक मर्ज़ का बाइस है फिर भी छोटे से पाकेट की शक्ल में ज़हर फ़रोख़त कररहे हैं । इस गुटखे की बुरी आदत की वजह से हज़ारों वालदैन को अपने नौजवान बेटों की नाशों पर रोना पड़ा । सैंकड़ों नौजवान लड़कियां बेवा होगईं । बच्चे यतीम होगए ।

गुटखे के ताजरिन गोया समाज में मौत बांट रहे हैं । नौजवानों को दावत दी जाती है कि वो ओटकोर के इस शख़्स की हालत-ए-ज़ार से इबरत हासिल करें और गुटखा ख़ोरी जैसी मुहलिक जान आदत से तौबा करें वर्ना वो भी कैंसर जैसी जान लेवा और इबरत अंगेज़ बीमारी का शिकार हो कर दुनिया के लिए नमूना इबरत बन सकते हैं ।नीज़ गुटखे के ब्योपारियों को इंसानी नुक़्ता-ए-नज़र से इस मसला पर ग़ौर करना चाहीए ताकि एक सेहत मंद और ख़ुशहाल मुआशरा तशकील पा सके ।

हाल ही में मुमताज़ माहिर नफ़सियात डाक्टर मजीद ख़ां ने अपने एक लेकचर में बड़ी अच्छी बात कहा कि मुझे हैरत होती है कि उलमाए दीन गुटखे को हराम क़रार क्यों नहीं देते , जब कि सब जानते हैं कि गुटखा सेहत के लिए इंतिहाई मुज़िर है । ये वो शए है जो इंसान को क़ब्र के गढ़े तक बहुत जल्द पहुंचा देती है । बहरहाल ! ये सिर्फ़ उल्मा ही की नहीं बल्कि समाज के हर फ़र्द की ज़िम्मेदारी है कि वो मुआशरे को गुटखे की लानत से पाक रखें , क्यों कि ओटकूर के इस मरीज़ जैसे कई नौजवानों की इबरत अंगेज़ मिसालें हमारे सामने मौजूद हैं।