क़ुतुब शाही हुकमरानों के तालाब और कुंटे ख़सताहाली का शिकार

दक्कन के हुकमरानों को चाहे वो क़ुतुब शाही होया फिर आसिफ़ जाहि हमेशा ही से अपनी रियाया की फ़िक्र रहा करती थी इन हुकमरानों ने रियाया के लिये रोटी कपड़ा और मकान को यक़ीनी बनाने के साथ साथ पानी की सरबराही को काफ़ी अहमियत दी । यही वजह है कि आज भी रियासत भर में उस वक़्त तामीर किए गए आबी(पानी) ज़ख़ाइर-ओ-आबपाशी प्रोजेक्ट से भरपूर इस्तिफ़ादा किया जा रहा है ।

जहां तक हैदराबाद के लिये पानी की सरबराही के इंतिज़ाम की बात है क़ुतुब शाही हुकमरानों से लेकर आसिफ़ जाहि हुकमरानों ने उसे अव्वलीन तरजीह दी और शहर-ओ-मज़ाफ़ाती इलाक़ों में आबी ज़ख़ाइर (पानी)तालाब और कुंटे तय्यार करवाए लेकिन अफ़सोस के इन तालाबों कुनटों में से कई का वजूद सफ़ा हस्ती से मिट चुका है और सिर्फ तारीख के औराक़ में इन का ज़िक्र बाक़ी रह गया ।

नई नसल को शायद ही ये मालूम होगा कि हज़रत हुसैन शाह वली र के नाम से मानून हुसेन सागर हैदराबाद का सब से क़दीम तालाब है । जज़बा ख़िदमत-ए-ख़लक़ के तहत इब्राहीम क़ुतुब शाह ने उसे अपने दामाद हज़रत हुसैन शाह वली (र) की निगरानी में तामीर करवाया था अगरचे इस का नाम इब्राहीम क़ुतुब शाह के नाम पर इब्राहीम सागर रखा गया लेकिन ये तालाब हुसेन सागर के नाम से ही मशहूर-ओ-मारूफ़ हुआ और इस का नाम बदलने की लाख कोशिशों के बावजूद आज भी ये इसी नाम से मशहूर है ।

शहर के दीगर (दूसरे) मशहूर तालाबों में तालाब माँ साहिबा , सुरूर नगर तालाब , तालाब मीर आलम , नवाब साहिब कुनटा , अफ़ज़ल सागर तालाब , शाह हातिम का तालाब के इलावा मुसा नदी , उसमान सागर , हिमायत सागर जैसे आबी ज़ख़ाइर शामिल हैं । अफ़सोस तो इस बात का है कि अब कोई भी तालाब अपनी असली हालत में मौजूद नहीं किसी तालाब पर बुलंद-ओ-बाला इमारतों का जंगल नज़र आता है तो किसी तालाब को तफ़रीही मुक़ाम में तब्दील कर दिया गया । इसी तरह बाअज़ कुंटे नदियां और तालाब लैंड गिरा बरस की नज़र हो चुके हैं जहां तक लैंड गिरा बरस का सवाल है उन्हें अवाम को पानी की बाआसानी फ़राहमी से कोई दिलचस्पी नहीं ।

उन्हें तो बस अपने पेट की फ़िक्र लगी रहती है । आज जो तालाब यह कुंटे बराए नाम मौजूद हैं । वो इन ही लैंड गरा बरस की लालची फ़ित्रत का शिकार हुए हैं । यहां ये कहा जाय तो बेजा ना होगा कि शहर के तालाब तो सिमट कर रह गए हैं लेकिन लैंड गिरा बरस के पेट वुसअत (फैलाव)इख़तियार कर गए हैं और एसा लगता है कि तालाबों पर नाजायज़ क़बज़ा करने वाले इन लैंड गिरा बरस ने अपने पेटों में सारे तालाबों का पानी ज़ख़ीरा कर लिया है फिर भी वो बच्चे कुच तालाबों को भी मंज़रे आम से हटाने की कोशिशों में मसरूफ़ हैं ।

क़ुतुब शाही और आसिफ़ जाहि हुक्मराँ हमेशा इस बात के ख़ाहां रहा करते थे कि शहरी कभी प्यासे ना रहें , भूक उन के करीब ना आए । उन्हें कभी मकान की कमी महसूस ना हो और ये शहरी ख़ुशलिबास-ओ-ख़ुशपोशाक रहे । यही वजह थी कि ये हुक्मराँ ना सिर्फ तालाब या कुंटे बनाते रहे बल्कि शहर के मुख़्तलिफ़ मुक़ामात पर सबीलें भी क़ायम किया करते ताकि मोसाफ़रिन को पीने का पानी बाआसानी दस्तयाब हो ।

बहुत कम ही लोग इस बात से वाक़िफ़ हैं कि हैदराबाद के क़ियाम के साथ ही क़ुतुब शाही हुकमरानों ने इस के अतराफ़-ओ-अकनाफ़ कई तालाब बनवाए जिन में पट्टन चीरू भी शामिल है । पट्टन चीरू के मानी ही शहर का तालाब है । आप को बतादें कि उसमान सागर जो कभी हैदराबाद की पीने के पानी की ज़रूरत पूरी किया करता था आज वो भी सिमटता जा रहा है और एसा लगता है कि उसमान सागर के पानी के बारे में जो रिवायत चली आरही है कि उसे पीने वाला कभी शहर छोड़कर नहीं जाता अपनी तास्सुर खोती जा रही है ।

क़ारईन आप ने उम्दा सागर तालाब के बारे में भी सुना होगा लेकिन वो भी अपना वजूद खो चुका है अरा कुनटा का तालाब भी कभी मशहूर था लेकिन धीरे धीरे इस के वजूद को भी तक़रीबा मिटा दिया गया । अफ़सोस तो इस बात का है कि इन तालाबों को अवाम की नज़रों के सामने ही मिटा दिया गया यह मिटाया जा रहा है लेकिन किसी ने उफ़ करना तक गवारा नहीं किया ।

अगर हम घर बैठे ही कफ़ अफ़सोस मिलते रहें यह ब्रहमी का इज़हार करते हुए अपना ख़ून जलाते रहें तो क्या इन बाक़ीमांदा(बचे हुवे) तालाबों का तहफ़्फ़ुज़ किया जा सकता है ? हरगिज़ नहीं । वैसे इस सिलसिला में अवामी शऊर की कमी का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि शहर में तालाबों की हिफ़ाज़त के लिये सिर्फ एक दो गैर सरकारी तनज़ीमें साक़ी वाटर और सिवल सरगर्म दिखाई देती हैं लेकिन इतने अहम मसला पर सिर्फ एक दो तनज़ीमों का सरगर्म रहना कोई अहमियत नहीं रखता ।

इस लिये कि ये मसला पानी से जुड़ा हुआ है और पानी इंसान की बुनियादी ज़रूरत है जिस के बगैर कोई भी इंसान ज़िंदा रहने का तसव्वुर भी नहीं कर सकता । पानी दरअसल अल्लाह ताला की बंदों के लिये एक नेअमत है । हमारा मज़हब दीन इस्लाम भी इस नेअमत को एहतियात से इस्तिमाल करने की हिदायत देता है । तालाबों की हिफ़ाज़त के लिये अगर अवाम उठ खड़े होते हैं तो यक़ीनन ये एक नेकी का काम होगा क्यों कि अवामी ताक़त के सामने लैंड गिरा बरस या गुंडा अनासिर(अफराद) कभी टिक नहीं सकते ।

आप कोय भी बतादें कि अवाम की ख़ामोशी के बाइस ही आज मूसा नदी सिकुड़ कर एक नाले में तब्दील होगई है । ओहदेदारों की मुजरिमाना ग़फ़लत-ओ-ख़ामोशी और अवाम की अदमे तवज्जो के बाइस उस की कई एकड़ अराज़ी (जमीन) पर नाजायज़ क़ाबज़ेन क़ाबिज़ हो चुके हैं । हैदराबाद और इस के अतराफ़-ओ-अकनाफ़ की झीलों , आबी ज़ख़ाइर तालाबों और कुनटों के बारे मैं हम ने एक गैर सरकारी तंज़ीम साक़ी वाटर के डायरैक्टर अंजल प्रकाश से बात की अगरचे वो बैरून मुल्क में थे लेकिन पानी के मसला पर उन्हों ने काफ़ी देर तक हम से बात चीत की ।

उन्हों ने बताया कि हमारे आबा-ओ-अजदाद ने 400-500 साल क़ब्ल शहर और अतराफ़-ओ-अकनाफ़ के इलाक़ों में तालाब और झील बनाए लेकिन बड़ी अफ़सोस की बात है कि गुज़शता 50 ता 60 साल के दौरान हमारी अपनी ग़फ़लत ने इन में अक्सर-ओ-बेशतर तालाबों कुनटों और झीलों का नाम-ओ-निशान मिटा दिया । साक़ी वाटर के डायरैक्टर ने मज़ीद कहा कि अवाम माहौलयात पर तवज्जा नहीं देती और माहोलयाती तवाज़ुन (बैलेन्स)बिगड़ जाने के नतीजा में जब क़हत(सुखा) की सूरत-ए-हाल पैदा होती है तो शोर मचाया जाता है ।

उन्हों ने ये भी कहा कि शहर-ओ-मज़ाफ़ाती इलाक़ों में आज पानी की जो क़िल्लत महसूस की जा रही है वो हुकूमत की नाक़िस मंसूबा बंदी ,दीगर (दूसरे) मुक़ामात से अवाम की हैदराबाद नक़्ल-ए-मकानी और तालाबों की आराज़ीयात(जमीन) पर नाजायज़ क़ब्ज़ों का नतीजा है । मिस्टर अंजल प्रकाश ने इन्किशाफ़ किया कि इन की तंज़ीम हैदराबाद की झीलों पर स्टडी कर रही है और सटलाइट के ज़रीया 15 साल का डाटा हासिल किया जाएगा और इस से अंदाज़ा होगा कि शहर के किन किन मुक़ामात पर पानी के ज़ख़ाइर यानी तालाब झील नदियां और कुंटे मौजूद थे ।

दूसरी जानिब शहर को आलमी सतह का क़रार देने से मुताल्लिक़ हुकूमत के दावों की हिमायत करने वाली अज़ीम तर मजलिस बलदिया का कहना है कि वो शहर और मज़ाफ़ाती इलाक़ों के 11 तालाबों की फैंसिंग करेगी और उन की हदबंदी की जाएगी । बहर हाल अवाम को ये जान लेना चाहीए कि शहर बसाना आसान है लेकिन उन्हें पानी की सहूलत फ़राहम करना बहुत मुश्किल है एसे में हम सब का फ़र्ज़ बनता है कि जो तालाब कुंटे झील या नदियां बच गएं हैं उन की हिफ़ाज़त के लिए उठ खड़े हूँ काश एसा होता तो कितना बेहतर होता ।।