क़ुरआन-ओ-सीरत के पैग़ाम को आम करने का मश्वरा

हैदराबाद 28दिसंबर : ( प्रैस नोट ) : एक दौर था जब उम्मत मुस्लिमा क़ुरआन-ओ-सुन्नत को थाम कर बाम उरूज पर पहुंची । नौजवान सहाबा करामओ और सहाबयात ओ की सीरत आज की नौख़ेज़ नसल के लिए रहनुमाई है । लेकिन अफ़सोस के साथ कहना पड़ता है कि आज की नई नसल लड़के और लड़कीयां , बेहयाई , फ़ह्हाशी , उरयानीत और जिन्सी आवरगी में मुबतला हैं । वालदैन और सरपरस्त कंट्रोल करने से क़ासिर हैं , ये नतीजा है मग़रिबी असरात की यलग़ार का जो इंटरनैट के ज़रीया फैलाई जा रही हैं । इंटरनैट जो कई एक लिहाज़ से फ़ायदेमंद होना चाहीए था लेकिन नौजवान नसल में नंगा पन पैवस्त कररहा है ।

आख़िरत में जवाबदेही का एहसास और दोज़ख़ के अज़ाब से बेखौफ कररहा है । इन हालात में क़ुरआन-ओ-सीरत के पैग़ाम को आम करने की अशद ज़रूरत है । इन ख़्यालात का इज़हार मुहतरमा बदर फ़ातिमा सदर मुस्लिम वीमन वीलफ़ीयर एसोसी एष्ण ने गार्डन पलाज़ा फंक्शन हाल में मुनाक़िदा ख़वातीन-ओ-तालिबात के इजतिमा में क्या । उन्हों ने कहा कि इलम-ए-दीन से दूरी और नमाज़ से दूरी के नतीजे में बेहयाई और ऐशपरस्ती से छुटकारा पाना मुश्किल होजाता है ।

उन्हों ने यूसुफ़ आ के किरदार से सबक़हासिल करने पर नौजवानों को ज़ोर दिया । इस सिलसिला में क़ुरआन की आयात और अहादीस पेश कीं और तौबा-ओ-इस्तिग़फ़ार और ज़िक्र-ओ-अज़कार की तलक़ीन की ।मुहतरमा बदर फ़ातिमा ने ख़वातीन-ओ-तालिबात पर ज़ोर दे कर कहा कि उठिए आगे बढ़िए और बुराई के इस तूफ़ान को रोकने के लिए क़ुरआन और सीरत उन्नबी(सल.) के पैग़ाम को एक एक ख़ातून और एक एक तालिबा तक मूसिर अंदाज़ में पेश करने की जद्द-ओ-जहद शुरू करदें ।

अपने अपने ख़ानदान के लड़कों की तर्बीयत उसी तड़प से करें जिस तरह नबी करीम ई किया करते थे । वक़्त का तक़ाज़ा है कि सिर्फ सुनने वाले ना बनें बल्कि अमलीसबूत पेश करने वाले बनें ताकि आख़िरत की नजात और अल्लाह की रज़ा ही हासिल होजाए । मुहतरमा तसनीम सालहा ने दरस हदीस के ज़रीया अमल सालिह इख़तियार करने की तरग़ीब दिलाई । ।