हिंदुस्तान के मशहूर शहर हैदराबाद की बुनियाद रखने वाले उर्दू के पहले साहिबे दीवान शायर क़ुली क़ुतुब शाह ने चारमीनार की तामीर करवाई थी। क़ुली क़ुतुब शाह रियासते गोलकुंडा के फ़रमांरवा थे। वो बडे इलमदोस्त , अरबी और फ़ारसी के माहिर थे। आप के मजमूआ कलाम में ग़ज़लियात , रुबाईयाँ कसीदे और मुख़्तलिफ़ कितात वग़ैरा शामिल है। क़ुली क़ुतुब शाह का कलाम दक्कनी उर्दू अदब को पेश करता है उन के दौर में उर्दू फ़रोग़ पा रही थी। उनके कलाम का एक नमूना यहा पेश है।
सब इख़तियार मेरा तज हात है प्यारा
जिस हाल सूं रखेगा है ओ ख़ुशी हमारा
नैनां अनझूं सूं धोऊं पग अप पलक सूं झाड़ूं
जे कोई ख़बर सौ ल्यावे मुख फूलों का तुम्हारा
बुतख़ाना नैन तेरे हो रब्त नैन किया पुतलियां
मुझ नैन हैं पूजारी पूजा अधान हमारा
इस पुतलियां की सूरत कई ख़ाब में जो देखे
रशक आए मुझ, करे मत कोई सजदा इस द्वारा
तुज आशिक़ां में होता जंग-ओ-जदल सौ सब दिन
है शरअ अहमदी तुज इंसाफ़ कर ख़ुदारा
तुज ख़्याल की हवस थे है जीव हमन सू ज़िंदा
ओ ख़्याल कद नज्जा वे हम सरथे टिक बहारा
जब तूं लखिया कुतुब शहे महर मुहम्मद आप दिल
है शश जिहत में तुझको हैदर की तवा दहारा