कांग्रेस और प्रियंका गांधी

सियासतदानों की एक तारीफ़ ये है कि वो अपने अवाम की छोटी बड़ी ख़िदमत करके नेकियां और ख़ुशीयां हासिल करें। माज़ी में सियासतदां यही चाहते थे कि वो अवाम की ख़िदमत करके नेकियां हासिल करें। इंसाफ़, मुसावात के ख़ाब को पूरा किया जाय। मगर आज के दौर का सियासतदां ज़ाती मुफ़ादात के आईना मैं ख़ुद को इतना ख़ूबसूरत बनाने की कोशिश करता है कि इस का ज़मीर और दिल स्याह हो जाता है।

अवाम की ख़िदमत का जज़बा काफ़ूर होता है। सदर कांग्रेस सोनीया गांधी की दुख्तर प्रियंका गांधी ने अपने वालिद राजीव गांधी या दादी इंदिरा गांधी के नक़श-ए-क़दम पर चलने का बहुत पहले मंसूबा बना लिया है। मगर वो सरगर्म सियासत में क़दम रखने के लिए हमेशा पस-ओ-पेश करने का मुज़ाहरा करती रही हैं।

अब उन्हों ने ये इशारा दिया है कि अगर उन से भाई राहुल गांधी सरगर्म सियासत में क़दम रखने की इजाज़त दे तो वो बिलाशुबा सियासत के मैदान की दर्जा अव्वल की खिलाड़ी साबित होंगी। हिंदूस्तान में सयासी जद्द-ओ-जहद, नौवारिद सियासतदानों की छलांगें लगाती हुई तारीख़ में प्रियंका गांधी अपना गोशा क़ायम करना चाहती हैं जब मुअर्रिख़ हकूमत-ए-हिन्द की तारीख़ी दास्तानों का ज़िक्र करेगा तो प्रियंका गांधी के बारे में भी राय ज़नी के बगै़र नहीं रह सकेगा।

अवाम की सयासी जद्द-ओ-जहद समाजी हालात, और हिंदूस्तान की बदलती हुई सयासी सूरत-ए-हाल के बाइस प्रियंका गांधी को सरगर्म सियासत में हिस्सा लेने के लिए ग़ौर करना पड़ रहा है। कांग्रेस को इन का खोया हुआ मुक़ाम दिलाने की जद्द-ओ-जहद एक अर्सा से जारी है ख़ासकर 6 दिसम्बर 1992 को बाबरी मस्जिद की शहादत के बाद मुस्लमानों के दिलों से उतर जाने वाली कांग्रेस को मुस्लिम वोटों की महरूमी का सब से शदीद और अफ़सोसनाक ग़म है।

मुस्लमानों को अब तक तालीम से महरूमी, फ़ाक़ा कशी, बीमारी, भूक इफ़लास, तंगदस्ती, समाजी ऊंच नीच की नज़र करने वाली कांग्रेस के लिए प्रियंका गांधी की आमद बिलाशुबा एक ख़ुश आइंद बात होगी। कांग्रेस को जिस हालात का सामना करना पड़ रहा है इस को दूर करने के लिए प्रियंका गांधी मैदान सियासत में क़दम रखना चाहती हैं।

सियासत करने का आफ़ाक़ी ख़्याल यूं ही एक कोने में बैठ कर स्टीम बाथ लेने या मुराक़बा करने के दौरान आने वाले ख़्यालात का हिस्सा नहीं हो सकता बल्कि ये ख़्याल बरसों की रयाज़ीत और मशक़्क़त और गांधी ख़ानदान की ख़ानदानी सियासत का हिस्सा है। यूपी के राय बरेली और अमेठी हलक़ों में अपनी वालिदा और भाई के लिए मुहिम चलाने वाली प्रियंका गांधी को इस मर्तबा यूपी इंतेख़ाबात के लिए भी इन हलक़ों में सरगर्म और कामयाब मुहिम चलानी है।

उन्हों ने राहुल गांधी के हलक़ा अमेठी में कहा कि अगर मेरा भाई मुझे सरगर्म सियासत में हिस्सा लेने और उन की मदद करने के लिए कहे तो में अपने भाई की मदद करने के लिए कुछ भी करने तैयार हूँ। अमेठी में मेरी आमद यही ख़ाहिश का हिस्सा है। अगर चीका उन्हों ने अपने सरगर्म सियासत में हिस्सा लेने का हनूज़ क़तई फ़ैसला ना करने का इद्दिआ किया है लेकिन उन की एक अर्सा बाद अमेठी और राय बरेली में आमद और इस तरह का ब्यान देना ग़ैरमामूली तबदीली का इशारा है वो राहुल गांधी के 10 हलक़ों में अपनी इंतेख़ाबी मुहिम चलाएँगी।

यूपी में कांग्रेस को एक मज़बूत मौक़िफ़ देने के लिए प्रियंका को अपने सयासी सलाहीयतों का मुज़ाहरा करना पड़ेगा। अगर प्रियंका गांधी कांग्रेस के हक़ में वोट ख़ासकर मुस्लमानों के वोट हासिल करने में कामयाब हुईं तो फिर ये तजुर्बा मुल्क भर में किया जाएगा इस तरह वो यूपी इंतेख़ाबात के ज़रीया अपने मंसूबों को कामयाब साबित करके दिखाएंगी।

लेकिन कांग्रेस में ग्रुप बंदी, गिरोह वारीयत और आपसी दुश्मनी इस क़दर पढ़ गई है कि उन्हें कई महाज़ों पर अपनों ही से ख़तरा और धक्का पहूंचेगा। कांग्रेस के अंदर माज़ी की तरह दयानतदार, ग़ैर जांबदार मुख़लिस क़ियादत और क़ाइदीन नज़र नहीं आते। दाख़िली इंतिशार को दूर करने में नाकाम कांग्रेस यूपी और क़ौमी सतह पर पार्टी को मज़बूत बनाने में भी कामयाब ना होगी।

लेकिन प्रियंका गांधी ने अपनी पार्टी की भारी ज़महदारी क़बूल कर ली तो फिर शायद कोई रंग-ओ-नूर की कैफ़ीयत पैदा हो जाय और पार्टी कैडरस में हौसले बुलंद हो जाएं। उन्हों ने इस से क़बल भी कहा था कि पार्टी वर्कर्स को आपस में मुत्तहिद रह कर काम करने की ज़रूरत है। अब भी वो पार्टी क़ाइदीन, कारकुनों और वर्कर्स से कह रही हैं कि ग्रुप अज़म को ख़तम् करके यूपी में पार्टी के नामज़द तमाम अरकान को मुंतख़ब कराने के लिए मिल जल कर जद्द-ओ-जहद करें।

बहरहाल कांग्रेस को अपने कैडरस में नया जोश-ओ-जज़बा पैदा करने के लिए मुल्क और इलाक़ाई सतह पर बदलती सूरत-ए-हाल के पेशे नज़र तैयारी करनी होगी। अवाम की उमंगों और आरज़ोओं को कुचल कर मुस्लमानों को फ़रेब गोई के सहारे नुक़्सान पहूँचा कर आगे बढ़ने का इस का पुराना ख़ाब बरक़रार रहे तो प्रियंका गांधी या इस तरह की दीगर शख्सियतें कांग्रेस के गिरते हुए मयार और मौक़िफ़ को बचा नहीं सकेंगी।

कांग्रेस यूं ही क़ाइदीन की एक तरफ़ आमद को दूसरी तरफ़ रुख़स्त के सिलसिला के साथ अपनी सयासी सरगर्मीयां जारी रखेगी। क़ौम के मुस्तक़बिल को तरक़्क़ी और रोशनी से महरूम करने वाली कोई भी पार्टी मुल्क में अपना सिक्का चलाने और हाकिमीयत का मुज़ाहरा करने में कामयाब नहीं होगी।